बटन दबाकर हर नागरिक की पहचान
२९ अप्रैल २०१०भारत में दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक डाटाबेस बनाने की तैयारियां चल रही हैं, जिसका लक्ष्य है अंततः एक अरब 20 करोड़ की आबादी के लिए अनोखा परिचय, या यूनिक आइडेंटिफ़िकेशन प्रस्तुत करना. इसके ज़रिये हर नागरिक की पहचान की जा सकेगी, और ये आंकड़े एक केंद्रीय डाटाबेस में दर्ज किए जाएंगे.
इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने के लिए ज़िम्मेदार है यूआईडी ऑथरिटी ऑफ़ इंडिया. अगले पांच सालों में लगभग 60 करोड़ लोगों को इसमें दर्ज कर लिया जाएगा. पलक झपकते ही किसी भी व्यक्ति के बारे में सारी आधारभूत जानकारियां प्राप्त कर ली जाएंगी, और इस तरह विभिन्न कंपनियों या सरकारी एजेंसियों को अपने बूते पर उन्हें हासिल करने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी, जिसमें अक्सर काफ़ी वक्त और पैसा लग जाता है. कहा जा सकता है कि हर नागरिक की एक हिस्ट्रीशीट तैयार हो जाएगी.
इस परियोजना का नाम दिया गया है आधार. बैंक एकाउंट खोलने के लिए या मोबाईल फ़ोन का कनेक्शन प्राप्त करने के लिए ऐसी जानकारियों की ज़रूरत पड़ती है. अब तक एक लंबी प्रक्रिया के ज़रिये इन्हें प्राप्त करना पड़ता था, या फिर संबद्ध व्यक्ति को उनकी विश्वसनीयता का सबूत देना पड़ता था. सामाजिक कल्याण की सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भी ये जानकारियां महत्वपूर्ण हैं. अक्सर इन्हें मुहैया न करा पाने की वजह से ज़रूरतमंद लोगों को ऐसी सुविधाएं नहीं मिल पाती थीं.
ख़ासकर मोबाईल सर्विस प्रदान करने वाली या कंप्यूटर तकनीक से जुड़ी फ़र्मों की इस सेवा में गहरी दिलचस्पी है. इनमें शामिल हैं टाटा कंसलटेंसी या आदित्य बिरला ग्रुप जैसी राष्ट्रीय संस्थाएं, व साथ ही माइक्रोसॉफ़्ट या गूगल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां.
सरकार की ओर से इस परियोजना के लिए फ़िलहाल लगभग 20 अरब रुपये मुहैया कराए जा रहे हैं. पूरी योजना की पूर्ति के लिए 100 से 200 अरब रुपये तक खर्च हो सकते हैं. स्टैंडर्ड चार्टर्ड संस्था के शोध विभाग के प्रधान समीरन चक्रवर्ती का कहना है कि बचत का परिमाण भी लगभग इतना ही होगा. उनकी राय में देश में आर्थिक वृद्धि पर इसका अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
नंदन नीलेकनी इस सरकारी प्राधिकरण के प्रधान हैं. वह इस तथ्य के प्रति पूरी तरह से सचेत हैं कि देश में लगभग साढ़े सात करोड़ लोग बेघर हैं व करोड़ों लोग काम की तलाश में घूमते रहते हैं. उनका कहना है कि भारत में इस समय आठ प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि हो रही है. अगर हाशिए पर रह रहे लोगों को इस वृद्धि का फ़ायदा दिलाना है, तो सबसे पहले उनकी पहचान करनी होगी.
बहरहाल, सिर्फ़ सरकार व राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय संस्थाओं को ही नहीं, आम लोगों को भी इस नई तकनीक से काफ़ी उम्मीदें हैं. चंद्रा मुंबई में घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करती हैं, बचत के पैसे वह मालकिन के पास जमा करती हैं. वह कहती हैं, ''अब मेरे पास भी मोबाईल फ़ोन होगा, एक बैंक एकाउंट होगा. ''
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: ओ सिंह