बढ़ती सूचना, सिकुड़ती स्टोरेज क्षमता
१९ मार्च २०११हमारी यह दुनिया कितनी तेजी से बदली है. कंप्यूटर, मोबाइल फोन, सीडी, डिजिटल विडियो - इतना सभी कुछ और विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक पल भर में पहुंचते संदेश - लिखे हुए, बोले जाने वाले या स्थिर और चल छवियों के रूप में. दुनिया भर में इतना डिजिटल ब्योरा एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचता रहता है कि जो लोग उसका मापतोल करने की कोशिश करते हैं, उन्हें उसके लिए अब एक नए शब्द का इस्तेमाल करना पड़ता है. यह नया शब्द है ऐक्साबाइट. सवाल उठता है कि कि एक ऐक्साबाइट में कितना डाटा होता है? जवाब है, एक अरब गीगाबाइट्स. तो इससे साफ है कि दुनिया किस कदर डिजिटल हो गई है और कितनी जानकारी से कितनी सराबोर.
एक नई रिपोर्ट के अनुसार 2007 में विश्व के कंप्यूटर की हार्ड डिस्कों, स्मार्टफ़ोन्स, सीडी डिस्कों और अन्य डिज़िटल साधनों में जमा डाटा की कुल मात्रा 276 ऐक्साबाइट्स थी और इस समय यह लगभग 295 ऐक्साबाइट्स है. यह कितनी मात्रा हुई? सीडी डिस्कों के एक ऐसे ढेर की कल्पना कीजिए, जिनमें से हर एक में एक एल्बम के बराबर डिजिटल संगीत मौजूद हो. एक के ऊपर एक रखी इन सी सीडी डिस्कों के ढेर में आपकी मेज से लेकर चंद्रमा तक जानते हैं, कितनी डिस्कें होंगी? 50,000.
जिस व्यक्ति ने हमारी आज की सभ्यता की पूरी जानकारी और कंप्यूटर क्षमता का जोड़ लगाने के इस जीवट भरे प्रयास का संचालन किया है, वह हैं यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के मार्टिन हिल्बर्ट. हिल्बर्ट और उनकी सहयोगी प्रिसिला लोपेज ने 1986 से 2007 तक के दो दशकों में विश्व की, जानकारी भंडारित करने, उसे औरों तक पहुंचाने और उसके डिजिटीकरण का लेखाजोखा किया.
डिजिटीकरण की कुलांचें लेती क्षमता
अपने इस काम के बारे में चर्चा करते हुए हिल्बर्ट ने बताया, "हमने दिलचस्प बात यह पाई कि जब हम अपने इस सूचना-युग के और डिजिटल क्रांति के बारे में सोचते हैं, तो जो सबसे पहली जो चीजें ख्याल में आती हैं, वह हैं इंटरनेट और मोबाइल फोन, क्योंकि ये चीजें हर कहीं मौजूद हैं, और हम उनका प्रतिदिन इस्तेमाल करते हैं. पर हमने पाया कि सूचना और जानकारी के जिस क्षेत्र में सबसे तेजी से प्रगति हो रही है, वह है जानकारी का कंप्यूटरीकरण. जानकारी को कंप्यूटर डाटा का रूप देने की तकनीकी क्षमता में 50-60 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होती रही है. यह गति विश्व की अर्थव्यवस्था के विकास की गति से नौगुना तेज है.”
1986 में जब सीडी डिस्कों की बड़े पैमाने पर शुरुआत हुई, दुनिया भर के डाटा का 14 प्रतिशत वाइनल रिकॉर्डों यानी एलपी रिकॉर्डों के रूप में था, जबकि 12 प्रतिशत और ऑडियो कैसेट्स के रूप में. 2000 तक डिजिटल साधनों में मौजूद जानकारी दुनिया की कुल जानकारी का केवल 25 प्रतिशत थी. डिजिटल साधनों की बड़े पैमाने पर शुरुआत 2002 से कही जा सकती है, जब जानकारी के डिजिटल भंडारण की मात्रा, गैर-डिजिटल जानकारी से कहीं अधिक हो गई.
बढ़ती डिजिटल खाई
हिल्बर्ट कहते हैं कि डिजिटल भंडारण के इन संसाधनों तक सभी को बराबर पहुंच हासिल नहीं है. उनका कहना है कि वास्तव में समृद्ध और गरीब देशों के बीच की डिजिटल खाई बढ़ती जा रही है. हिल्बर्ट का यह भी कहना है कि डिजिटीकरण की रफ्तार जानकारी-भंडारण के सभी क्षेत्रों में बराबर नहीं रही है. वह बताते हैं, "जानकारी को डिजिटल रूप देने की दर बहुत तेज है, लेकिन वह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रही है. डिजिटल रेडियो और डिजिटल टेलीविजजन के वजूद में आने के साथ-साथ डिजिटीकरण की गति में तेजी से बदलाव आ रहा है. यह भी एक कारण है कि प्रसारण के क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कम तेजी से विकास हुआ है, क्योंकि प्रसारण का रूप अब तक अधिकांश में ऐनालॉग तकनीकी का है. दूसरी ओर एक स्थल से दूसरे स्थल तक के दूरसंचार के मामले में डिजिटीकरण की प्रगति सबसे अधिक तेज रही है. "
2007 तक दुनिया की कुल डिजिटल जानकारी भंडारण क्षमता 94 प्रतिशत पर पहुंच चुकी थी - यानी केवल 6 प्रतिशत पुस्तकों, पत्रिकाओं और विडियोटेप जैसे साधनों में थी. जहां तक दूरसंचार की बात है - जिसका एक बड़ा भाग मोबाइल टेलीफोनों के रूप में है, उसमें 1990 के बाद से डिजिटल तकीनीकों का प्रभुत्व रहा है. 2007 में 99.9 प्रतिशत दूरसंचार डिजिटल हो चुका था.
प्रकृति से होड़
आज के कंप्यूटर सूचना के संसाधन का काम जिस तेजी के साथ करने में सक्षम हो गए हैं, उसे देखते हुए यह कोई हैरत की बात नहीं है. हिल्बर्ट का कहना है, "बेशक, हम सीखने की गति के मामले में प्रकृति से होड़ नहीं कर सकते, लेकिन कंप्यूटरों के निर्माता हम मनुष्य इतने पिछड़े हुए भी नहीं हैं. हम आशा कर सकते हैं कि इस शताब्दी के मध्य या अंत तक अपने तकनीकी साधनों में इतनी जानकारी भंडारित कर सकेंगे, जितनी कुल मिलाकर पूरी मनुष्यजाति के डीएनए में मौजूद है."
हिल्बर्ट कहते हैं कि यह एक दिलचस्प स्थिति है कि हम एक ऐसे युग में हैं, जब हम धीरे-धीरे, लेकिन बाक़ायदा, जानकारी के भंडारण की विराटता की उस सीमा तक पहुंच रहे हैं, जिस स्तर पर प्रकृति कार्यशील है.
रिपोर्टः गुलशन मधुर, वॉशिंगटन
संपादनः ए कुमार