बदल गया फुटबॉल, कोचों को मिली कोचिंग
१२ जुलाई २०१०अर्जेंटीना के कोच डियागो मैराडोना और ब्राजील को कोचिंग देने वाले डुंगा इस वर्ल्ड कप में नाकाम रहे. अर्जेंटीना को उम्मीद थी कि मेसी और टावेज विपक्ष पर कहर बनकर टूटेंगे, ब्राजील काका, फाबियानो और रॉबिनिह्यो को त्रिदेव समझ रहा था. लेकिन जर्मनी, हॉलैंड और स्पेन ने दिखा दिया कि तारे जमीन पर कैसे लाए जाते हैं. ब्राजील और अर्जेंटीना को एहसास ही नहीं हुआ कि वर्ल्ड कप में इन खास विपक्षी टीमों के सभी खिलाड़ी उसके गोलपोस्ट पर आ धमकेंगे और भीड़ भाड़ के बीच कभी तो गेंद अंदर घुस ही जाएगी. नतीजे गवाह हैं यही हुआ भी.
जर्मनी, हॉलैंड और स्पेन ने शुरुआत से अलग रणनीति अपनाई. जर्मनी और हॉलैंड के ज्यादातर खिलाड़ी स्ट्राइकर, मिडफील्डर और डिफेंडर बने. गोल किए. साथी खिलाड़ियों के लिए मौके बनाए और गोलपोस्ट की रक्षा में भी डटे रहे. इन दो टीमों ने जब भी विपक्षी टीम पर हल्ला बोला, आसानी से तीन डिफेंडरों और एक गोलकीपर को मात दे दी. लेकिन जब गोल खाने की बारी आई तो जर्मनी और हॉलैंड के आठ खिलाड़ी अपने गोली की मदद में जुटे रहे.
विश्वविजेता बनने वाला स्पेन इन दोनों के एक कदम और आगे रहा. स्पेन ने जर्मनी और हॉलैंड की तरह रणनीति अपनाई लेकिन एक चीज और बदल डाली. स्पैनिश कोच ने खिलाड़ियों को बता दिया कि गेंद अपने पास ही रखो, दूसरी टीम को दो ही मत. यह हैरानी की ही बात है कि सात मैचों में सिर्फ आठ गोल दागकर स्पेन वर्ल्ड चैंपियन बन गया.
हर नॉक आउट मुकाबले में टीम ने सिर्फ एक गोल किया. कोई गोल खाया नहीं. दरअसल इन सभी मुकाबलों में ज्यादातर वक्त गेंद स्पेन ने अपने पास रखी, इसकी वजह से गोलों की बारिश करने वाली जर्मनी जैसी टीम गेंद के लिए तरस कर रह गई. हॉलैंड ने इस रणनीति में सेंध लगाई लेकिन एक मायाजाल टूटते ही डच टीम के सामने उसी का जैसा चक्रव्यूह था. उसे अपने जैसी रणनीति वाली टीम के दर्शन हो गए और हॉलैंड समझ ही नहीं पाया कि अब क्या किया जाए.
वैसे यह बात छुपी नहीं है कि फ्री किक, पेनल्टी और कॉर्नर जैसे अहम मौकों पर स्पेन की टीम बुरी तरह नाकाम रही, लेकिन जीत फिर भी उसी की हुई. स्पेन की जीत का दावा करने वाले कई विशेषज्ञ तो पहले ही यह तक कह चुके थे कि अगर गेंद स्पेन को मिली तो कम से कम पांच मिनट तक दूसरी टीम पीछा ही करती रहेगी. विशेषज्ञों की बात ऑक्टोपस पॉल की तरह सच निकली. विपक्षी टीमें पीछा करती ही रह गईं, स्पेन वर्ल्ड कप ले उड़ा.
ऐसा ही अगला मौका अब 2014 में ब्राजील में आएगा. कहा जा रहा है कि तब तक सभी टीमें यह रणनीति अपना चुकी होंगी. इसके लक्षण भी दिखने लगे हैं. इसी वर्ल्ड कप में ही मेसी, रोनाल्डो और काका जैसे खिलाड़ी खुद गोल करने के बजाए दूसरों को पास देते नजर आए. स्ट्राइकर मिडफील्डर बन गए.
फुटबॉल में बदलाव का जो दौर फ्रांस के महान खिलाड़ी जिनेडिन जिदान ने शुरू किया, वह देर सबेर सबकी समझ में आया. इत्तेफाक यह रहा कि फ्रांस, इटली और इंग्लैंड समेत ज्यादातर टीमों को वर्ल्ड कप से बाहर होने के बाद इसका एहसास हुआ.