बर्फ में दबे बदलाव के राज
१८ जनवरी २०१३हिमालय के ग्लेशियर भी पिछले तीस सालों में काफी प्रभावित हुए हैं. गंगोत्री जैसी जगहों पर हिमनदों का पीछे खिसकना साफ देखा जा रहा है. यूरोप का सबसे बड़ा ग्लेशियर फिनलैंड में है, इसकी बर्फ की कुछ परतें तो दो हजार साल पुरानी है. लेकिन बढ़ता तापमान इस पूरे हिस्से को तहस नहस कर सकता है. पर्यावरण विज्ञानी इस खतरे को रोकने के लिए ग्लेशियर की गहराई में झांक रहे हैं. बर्फ की परतें बता रही हैं कि बीती दो शताब्दियों में समय के साथ धरती ने तापमान में कैसे उतार चढ़ाव देखे.
बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की वजह से पूरा चक्र गड़बड़ा रहा है. नदियां लबालब हो रही है, हल्की सी बारिश होने पर भी बाढ़ की नौबत आ रही है. कई इलाके सूखे का सामना कर रहे हैं. समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. इससे बांग्लादेश, मालदीव और पापुआ न्यू गिनी जैसे कई देशों के डूबने का खतरा खड़ा हो रहा है. हालात बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं.
बीते एक दशक में यह चेतावनी लगातार दी जा रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है. भारत में हर व्यक्ति प्रति दिन औसतन 125 लीटर पानी इस्तेमाल करता है. अमेरिका में यह मात्रा करीब 550 लीटर है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है. भारत दुनिया का वह देश है जो सबसे ज्यादा पानी जमीन से निकालता है. देश में करीब दो करोड़ कुएं हैं.
लेकिन पहाड़ी इलाकों में कुएं खोदना मुश्किल काम है. वहां पानी बहुत ज्यादा गहराई में होता है. पहाड़ी इलाके नदियों, धाराओं, झरनों या प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर रहते हैं. खेती में बारिश बड़ी मददगार होती है, लेकिन अगर बरसात का सही इस्तेमाल किया जाए तो बादलों के पानी का इस्तेमाल सूखे के दिनों में भी अच्छे ढंग से किया जा सकता है. दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया में रेन वॉटर हारवेस्टिंग के जरिए बारिश के पानी को बचाने की कोशिशें चल रही हैं. जर्मनी की टीम यहां बारिश के पानी से खेती करना सिखा रही है. पहाड़ की ढलानों में बनाए गए तालाबों में हर सेकेंड 15 लीटर पानी जमा होता है. बारिश खत्म होने पर भी इस पानी से खेत लहलहाते हैं.
इंसानी सभ्यता के विकास में पानी और नदियों को बड़ा योगदान है. लेकिन बीती दो सदियों में औद्योगिकीकरण की वजह से कई देशों में नदियां दूषित हो चुकी हैं. जहरीले तत्व जमीन के भीतर मौजूद पानी में घुल रहे हैं. भारत में आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा दो करोड़ से ज्यादा कुओं के पानी पर निर्भर है. लेकिन जमीन के अंदर का गंदा पानी इस्तेमाल लायक नहीं होता. जर्मनी में ऐसे पौधों पर रिसर्च चल रही है, जिनसे जमीन के अंदर का पानी साफ किया जा सके.
शनिवार सुबह साढ़े दस बजे डीडी नेशनल पर प्रसारित होने वाले मंथन में इस बार आपको कुछ खास कैमरे भी दिखेंगे. विज्ञापनों में जिस बारीकी से और खूबसूरती से चीजें दिखाई जाती हैं वह हमें बहुत आकर्षित करती हैं. कुछ सेकेंड के विज्ञापन को बनाने में ऐसी तकनीक इस्तेमाल होती है कि खर्च लाखों में बैठता है. शूटिंग के लिए हाई स्पीड फोटोग्राफी और रोबोट्स का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक के जरिए चॉकलेट या कॉफी में पैदा की गई हल्की हलचल भी गजब का अनुभव देती है और विज्ञापन की अहम कड़ी साबित होती है.
कैमरे की तकनीक पर ही मंथन में एक और रिपोर्ट भी है. राजधानी बर्लिन में एक कंप्यूटर इंजीनियर ने एक ऐसी गेंद बनाई है जो 360 डिग्री की तस्वीर ले सकती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पैनोरमा फोटोग्राफी किस तरह से काम करती है.
आईबी/ओएसजे