बर्फी पर नकल का दाग
२९ सितम्बर २०१२भारत में आलोचकों और सिनेमा प्रेमियों के दिल में बर्फी ने जगह बना ली है. यह प्रेम त्रिकोण की कहानी है जो मूक और बधिर बर्फी और दो महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है. इन दो महिलाओं में से एक ऑटिज्म का शिकार है. यह सामान्य हिन्दी फिल्मों के लिए असामान्य सी कहानी है.
बर्फी यानी रणबीर कपूर का चरित्र चार्ली चैप्लिन की नकल करता सा लगता है. दो सप्ताह पहले इसकी रिलीज के बाद सोशल मीडिया साइटों और यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो डाले गए जो दिखाते हैं कि फिल्म के कई दृश्य अंतरराष्ट्रीय फिल्मों से चुराए गए हैं.
फिल्म के दीवाने लोगों ने ऐसे कई वीडियो शेयर किए हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि बर्फी के कई दृश्य जेन केली की मशहूर फिल्म सिंगिंग इन द रेन (1952), जैकी चेन के प्रोजेक्ट ए (1983), बस्टर कीटन की कॉप्स (1922) और द नोटबुक (2004) से वैसे के वैसे उठाए गए हैं.
इतना ही नहीं कहा जा रहा है कि फिल्म का प्लॉट भी बेनी एंड जून फिल्म जैसा है. यह फिल्म 1993 में बनी थी और इसमें जॉनी डेप ने काम किया था. फिल्म का साउंडट्रैक एमेली के संगीत जैसा कहा जा रहा है.
इस फिल्म पर चार्ली चैप्लिन की साफ छवि दिखती है. एक सीन में बर्फी पुलिसकर्मी को सरकने वाले दरवाजे से झांसा देता है, ठीक उसी तरह, जैसे 1917 में बनी फिल्म द एडवेंचर में किंग ऑफ कॉमेडी चार्ली चैपलिन ने किया था.
बर्फी फिल्म के निर्देशक अनुराग बासु ने आलोचकों को जवाब देते हुए कहा कि फिल्म के जरिए चार्ली चैप्लिन को श्रद्धांजली दी गई है. बसु ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, "मैं शॉट बदल सकता था. चीजों को घूमा सकता था और इसे अपना बना लेता.... लेकिन वह चोरी हो जाती. मैंने शॉट पूरा पूरा का वैसा उठाया क्योंकि यह मशहूर शॉट और सीन हैं जो मास्टरपीस हैं. उन्हें हर फिल्म निर्माता जानता है."
बॉलीवुड पहले भी अमेरिकी फिल्मों की नकल करने के लिए आलोचना का शिकार होता रहा है, गानों की धुनों के तो कहने ही क्या. लेकिन पुराने मास्टरपीस शॉट्स को इस फिल्म के शूट करने के बाद इसे ऑस्कर में भेजा जाना और जीतने की उम्मीद करना क्या सही है. भारत ने अभी तक एक भी बार विदेशी फिल्म की श्रेणी में ऑस्कर नहीं जीता है. 1957 में मदर इंडिया, 1988 में सलाम बॉम्बे, 2001 में लगान ऑस्कर के लिए नामांकित हुई और आखिरी चरण तक पहुंची, लेकिन कोई फिल्म जीत नहीं पाई.
इमेज कंसल्टेंट दिलीप चेरियन को चिंता है कि बर्फी के ऑस्कर में जाने से भारत को लंबे समय तक शर्मिंदगी उठानी होगी, "तथ्य यह है कि आलोचक सोचने लगेंगे की भारत में साहित्यिक चोरी कहां खत्म होती है और कहां यह प्रेरणा बनती है."
ऑस्कर के लिए चुनाव करने वाली कमेटी की अध्यक्ष मंजू बोरा ने इस चयन को सही बताया है, "हमने फिल्म का चुनाव इसलिए किया क्योंकि यह फ्रेश है और कहानी नई तरह से कहती है. हर मामले में ही फिल्मकार किसी न किसी सिनेमा से प्रभावित होता है."
वहीं ऑस्कर के लिए जिन फिल्मों का नामांकन किया जाता है, उसमें देश की समाज और संस्कृति की झलक ढूंढी जाती है. मास्टरपीस को फिर से दिखाने के लिए इस फिल्म को शायद ऑस्कर में आगे जाने का मौका मिल जाए.
रिपोर्टः आभा मोंढे (एएफपी)
संपादनः ए जमाल