बर्लुस्कोनी पर क़ानूनी शिकंजा
८ अक्टूबर २००९बर्लुस्कोनी ने अदालत के आदेश को राजनीति से प्रेरित बताते हुए सीधे देश के राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ ही मोर्चा खोल दिया है.
बुधवार को रोम में देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ चल रहे मुक़दमों को जिस क़ानून के ज़रिए रोका गया है वह संवैधानिक नहीं है. इस आदेश के बाद बर्लुस्कोनी के ख़िलाफ़ दर्ज कई मुक़दमों की सुनवाई फिर से शुरू हो सकती है. अपने रंगीन मिज़ाज के चलते अक्सर चर्चा में रहने वाले 73 साल के इतालवी प्रधानमंत्री ने अदालत के इस फ़ैसले को राजनीति से प्रेरित बताया है.
बर्लुस्कोनी पर आरोप है कि उन्होंने अपने कारोबार को बचाने के लिए ब्रिटेन के एक वकील से झूठी गवाही दिलवाई. इसके अलावा उन पर टैक्स संबंधी घोटाले और फ़र्ज़ी एकाउंटिंग करवाने के भी आरोप हैं. संवैधानिक अदालत ने इन्ही मुक़दमों की सुनवाई पर लगी रोक हटाई है. अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि कानून सबके लिए एक समान है चाहे वो आम आदमी हो या प्रधानमंत्री.
तीसरी बार इटली के प्रधानमंत्री बने सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने अदालती फ़ैसले के बाद राष्ट्रपति ज़ॉर्जियो नेपोलिटानो के ख़िलाफ़ सीधा मोर्चा खोलते हुए कहा कि, ''मैं इस बात की परवाह नहीं करता कि राष्ट्रपति क्या कहते हैं. मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे बेवकूफ़ बनाया जा रहा है.'' उन्होंने ये भी कहा कि संवैधानिक अदालत एक राजनीतिक संस्था है, लेकिन हम अपना काम जारी रखेंगे. प्रधानमंत्री के मुताबिक 15 जजों वाली बेंच के पांच जज राष्ट्रपति ने चुने, पांच अदालत ने जबकि पांच जजों का चयन संसद ने किया.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस फ़ैसले से प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी कमज़ोर पड़ेंगे. साथ ही यह भी अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के बीच नोक झोंक और तीखी होगी. बर्लुस्कोनी के अंदाज़ से भी इस बात का इशारा मिल रहा है.
इस बीच बर्लुस्कोनी के वकीलों ने कहा है कि इस अदालती फरमान के बाद प्रधानमंत्री अपना कामकाज सहज ढंग से नहीं कर सकेंगे. इटली में 2013 में आम चुनाव होने हैं लेकिन अब उनका समर्थन कर रहे दक्षिण पंथी गठबंधन का कहना है कि अगर उनकी निज़ी ज़िंदगी को लेकर बदनामी भरे हमले होते रहे तो समय से पहले ही चुनाव होंगे.
हालांकि बर्लुस्कोनी और इटली में उद्योगपतियों की लॉबी समय से पहले आम चुनाव के पक्ष में नहीं है. देश अब भी बुरी तरह आर्थिक मंदी की चपेट में हैं ऐसे में माना जा रहा है कि अगर राजनीतिक संकट पैदा हुआ तो हालात और बिगड़ सकते हैं.
रिपोर्ट-एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन- एस जोशी