बीपी पर एंटी माफिया एक्ट के तहत मुकदमा
२० जुलाई २०१०यह मुकदमा माफ़िया विरोधी कानून के आधार पर दायर किया गया है. इस धारा में अपराध साबित होने से तिगुने हर्ज़ाने की व्यवस्था है. अमेरिका में हर्ज़ाने के मुकदमे बदनाम हैं. बड़े और छोटे नुकसान के लिए ज़िम्मेदार लोगों को अदालतें अक्सर भारी हर्ज़ाने की सज़ा देती हैं. अब बीपी को भी चिंता करने की ज़रूरत है. तेल रिसाव से प्रभावित होने वालों के वकीलों ने बीपी के ख़िलाफ़ कम से कम तीन ऐसे मुकदमे किए हैं जो एंटी माफ़िया कानून पर आधारित हैं.
यह कानून दरअसल कभी अपराधी और भ्रष्ट संगठनों के ख़िलाफ़ बनाया गया था. इसका असल नाम है रैकेटियर इंफ़्लुएंस्ड एंड करप्ट ऑरगेनाइज़ेशन एक्ट, संक्षेप में रीको एक्ट. बीपी और तेल निकासी प्लेटफॉर्म के मालिक ट्रांसओसियन के ख़िलाफ़ दायर दीवानी मुकदमों का मकसद भारी हर्ज़ाना पाना है. रीको एक्ट के तहत तय होने वाले हर्ज़ाने की रकम तीन गुनी कर दी जाती है. इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई नुकसान की रकम दस लाख कहता है तो तीस लाख तक का हर्ज़ाना संभव है.
अगर ये मुकदमे सफल होते हैं तो बीपी के लिए तेल संकट का कुल खर्च उस 20 अरब डॉलर से कहीं अधिक हो सकता है जो उसने अब तक नुकसान की भरपाई और हर्ज़ाने के लिए तय कर रखा है. मुकदमे में बीपी और ट्रांसओसियन पर अधिकारियों को जाली दस्तावेज़ देने और निवेशकों को बहकाने के आरोप हैं.
अतीत में रीको एक्ट के तहत होने वाले मुकदमों के साथ सरकारी स्तर पर आपराधिक जांच भी शुरू हो जाती थी, जिसका परिणाम लंबी क़ैद की सज़ाओं और जुर्माने तथा अवैध रूप से अर्जित मुनाफे की मान्यता वापस लेने के रूप में सामने आ सकता था.
लेकिन अमेरिकी कानून मंत्रालय ने अब तक यह तय नहीं किया है कि क्या वह अपनी जांच के सिलसिले में रीको एक्ट के तहत आपराधिक जांच भी शुरू करेगा. सरकारी वकीलों को इसके लिए इस बात के सबूत की ज़रूरत होगी कि उद्यम ने आपराधिक इरादे से क़दम उठाया है न कि ग़ैरज़िम्मेदाराना व्यावहार किया है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: वी कुमार