बेतुकेपन की पराकाष्ठा
२० मार्च २०१७जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल बातचीत के बाद दरवाजे से बाहर निकली ही थीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने मेहमान के नाम बेतुके दावों वाला एक ट्वीट भेज दिया. कुछ ही समय पहले दोनों नेताओं ने व्हाइट हाउस में जर्मन रक्षा बजट में इजाफे पर बातचीत की थी, तभी ट्रंप ने ट्वीट किया कि जर्मनी को अमेरिका और नाटो का कर्ज फौरन चुकाना चाहिए. जैसे कि सैनिक सहबंध नाटो कोई कंपनी हो, सुरक्षा कोई प्रोडक्ट हो और अमेरिका के सैनिक किराये पर लिये जा सकने वाले मजदूर. ट्रंप ने दावा किया कि जर्मनी के नाम कोई बकाया है. उन्होंने सचमुच नहीं समझा है कि राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंध और नाटो किस तरह काम करते हैं. पश्चिमी देशों की महाशक्ति और सहबंध की प्रमुख सत्ता होने के कारण अमेरिका के बहुत से अधिकार हैं तो कर्तव्य भी. उनमें से एक यह है कि अमेरिका यूरोप, मध्यपूर्व और एशिया में अपनी उपस्थिति दिखाता है ताकि वह दुश्मनों पर काबू रख सके और दोस्तों को साथ रख सके. और यह काम अमेरिका भू राजनीतिक कारणों से स्वैच्छिक रूप से करता है ताकि उसका प्रभुत्व बना रहे. उसकी कभी कोई कीमत नहीं थी और न ही हो सकती है.
जर्मनी के रामश्टाइन या काबुल और सोल में तैनात अमेरिकी सेना अपने सैनिकों, पनडुब्बियों या हेलिकॉप्टरों के लिए कोई किराया नहीं वसूलती. नाटो में 1949 में उसकी स्थापना के बाद से ही सिद्धांत है कि खर्च वह उठाता है जो उसे करता है. हर देश अपनी सेना, हथियारों और उनकी तैनाती का खर्च वहन करता है. नाटो का एक छोटा सा साझा बजट है, अंतरराष्ट्रीय कमानों और गतिविधियों पर खर्च करने के लिए. नाटो पर किसी देश का कर्ज हो ही नहीं सकता क्योंकि हर सदस्य देश अपना खर्च खुद उठाता है.
अरबों की हिस्सेदारी
नाटो के सदस्य देशों में रक्षा बजट बढ़ाकर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 2 प्रतिशत करने की सहमति का फायदा सदस्य देशों की सेना को ही होगा. यह फैसला न तो नाटो को और न ही अमेरिका को किसी तरह का भुगतान करने से जुड़ा है. उम्मीद है कि जर्मन चांसलर ने अनजान अमेरिकी राष्ट्रपति को बताया है कि जर्मनी सालों से कई सैनिक अड्डों पर अमेरिका के सैनिकों की तैनाती के खर्च में हिस्सेदारी कर रहा है. पिछले दशकों में अरबों का भुगतान किया गया है. इसके अलावा जर्मन एकीकरण के बाद से जर्मनी में अमेरिका के सैनिक खर्च में कमी आ रही है क्योंकि सैनिकों को हटाया जा रहा है. रामश्टाइन, श्टुटगार्ट या दूसरे सैनिक अड्डों पर बहुत सारा खर्च इसलिए हो रहा है कि अमेरिका मध्यपूर्व में अपने सैनिकों का नेतृत्व जर्मनी से कर रहा है. ट्रंप के लॉजिक के हिसाब से क्या जर्मन करदाताओं को इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियानों का भी खर्च उठाना होगा?
ये सब बातें या तो अमेरिकी राष्ट्रपति को नहीं पता हैं या वे इन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं. उनका यह दावा भी कि अमेरिका के साथ अनुचित व्यवहार हुआ है, बेतुका है. किसी ने अमेरिका को दुनिया में कहीं भी अपने सैनिकों को तैनात करने, युद्ध शुरू करने या समाप्त करने के लिए मजबूर नहीं किया है. खर्च वही उठायेगा जो उसकी वजह है. यदि अपनी दुनिया में खोये राष्ट्रपति इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं तो नाटो में आमूल परिवर्तन करने होंगे. पोलैंड, बाल्टिक देशों और दूसरे कई देशों को अमेरिकी सैनिकों की तैनाती का खर्च वहन करने के लिए तैयार होना होगा. उसके बाद फिर कीमत पर भी सौदेबाजी होगी. अमेरिकी सेना कुछ ऐसी चीजें भी कर रही है जो बेतुके ढंग से महंगी और गैरजरूरी है. यदि पोलैंड, जर्मनी और लिथुआनिया को फीस देनी है तो जैसा कि कारोबार में होता है, तो वही तय करेंगे कि उन्हें क्या चाहिए. और अमेरिका के परमाणु रक्षा कवच की एक दिन की कीमत क्या है?
भूल कर रहे हैं राष्ट्रपति
नहीं राष्ट्रपति जी, जितना आप सोच रहे हैं दुनिया उतनी अमेरिका केंद्रित या ट्रंप केंद्रित नहीं है. यह इच्छा समझ में आती है कि यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा और अपने हथियारों के लिए ज्यादा खर्च करना चाहिए और उसे स्वीकार भी किया गया है. उस पर काम चल रहा है. ट्रंप को अपनी कैबिनेट में बैठे अपने बहुत सारे जनरलों में से किसी एक से पूछना चाहिए. कम से कम उन्हें ज्यादा पता होगा. यह मुद्दा कोई नया भी नहीं है. राष्ट्रपति निक्सन और चांसलर विली ब्रांट भी 1970 के दशक में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती के खर्च पर झगड़ चुके हैं. लेकिन ट्रंप जैसी बेतुकी मांगे निक्सन ने नहीं की थी.
हाल ही में डॉनल्ड ट्रंप मे दावा किया था कि धन आ रहा है क्योंकि उन्होंने सहयोगियों पर दबाव डाला है. अमेरिकी कांग्रेस में उन्होंने कहा था, "मनी इज पोरिंग इन." आपका यह दावा भी सरासर झूठ है राष्ट्रपति जी. यूरोपीय देशों में रक्षा बजट में इजाफे का एक भी सेंट अमेरिका नहीं पहुंचेगा.