बेनगाजी के बच्चों को एड्स का मरीज किसने बनाया
२४ अप्रैल २०११माना जाता रहा है कि सरकार को यह राज पता है और इस बात का पूरा ख्याल रखा गया कि चश्मदीद अपनी जबान पर ताला लगा लें. उन्हें डरा कर रखा गया और अस्पताल में हमेशा एक खुफिया अधिकारी भी मौजूद रहा. लेकिन जब से बेनगाजी में विद्रोह शुरू हुआ तब से हालात कुछ बदल गए हैं. माना जा रहा है कि यह खुफिया अधिकारी विद्रोह के पहले दिन ही अस्पताल छोड़ कर भाग गया. उम्मीद है कि अब सरकार की बेनगाजी पर पहले जैसी पकड़ नहीं रही इसलिए अब सच्चाई के सामने आने की उम्मीद है.
गद्दाफी सरकार का काला राज
जब 1998 में मामला सामने आया तो एक फलीस्तीनी डॉक्टर और पांच बुल्गारियाई नरसों को इस के लिए जिम्मेदार बताया गया. उस वक्त आई रिपोर्ट के अनुसार इन सब ने मिल कर संक्रमित खून को बच्चों के शरीर में इंजेक्ट किया. वजह यह बताई गई कि या तो ये लीबियाई लोगों से नफरत करते थे या फिर इन्हें विदेशी ताकतों द्वारा इस मिशन पर भेजा गया था. लेकिन पश्चिमी देशों के जानकारों ने इन सब को बलि का बकरा कहा जो सरकारी भेद को छुपाने के लिए फंसाए गए.
अस्पताल की प्रयोगशाला में काम करने वाली आमेल अल साइदी कहती हैं कि उन्हें पूरा यकीन है कि यह हरकत जानबूझ कर ही की गई थी, लेकिन वो यह नहीं जानती कि ऐसा दुष्कर्म कौन कर सकता है और क्यों, "इस अपराध की योजना ऊंचे स्तर पर ही रची गई होगी." आमेल ने डॉक्टरों की लापरवाही की संभावना को भी खारिज किया, "अगर एक दर्जन बच्चों के साथ ऐसा हुआ होता, तो शायद इस बात की संभावना होती, लेकिन 400 से ज्यादा. यह नामुमकिन है." आमेल के अनुसार घटना के बाद कई सालों तक इस अस्पताल में मरीज नहीं आते थे, क्योंकि उन्हें डर था कि उनके साथ भी ऐसा हो सकता है. बेहद गरीब लोग, जिनके पास और कोई चारा नहीं था, बस वही इस अस्पताल में जाया करते थे.
"गद्दाफी शहर को सबक सिखाना चाहते थे"
इनमें से कई बच्चों की मौत हो चुकी है, और कइयों को एक खास सेंटर में परिवार से अलग रखा गया है. अस्पताल की एक नर्स ने बताया, "मैं एक लड़की को जानती हूं जो अब 17 साल की हो गई है. वो दवा भी नहीं लेती, क्योंकि वो कहती है कि वो ऐसे समाज में नहीं जीना चाहती जहां उसका कोई भविष्य ही नहीं है, वो मरना चाहती है." उस समय अस्पताल में काम करने वाले अली अल तुवैती ने बताया कि कई लोगों को अपने बच्चों को छोड़ना पड़ा क्योंकि समाज में एड्स को लेकर जो धारणाएं हैं, वो उनका सामना नहीं कर सकते थे. अली ने बताया कि उस समय लोगों में बहुत गुस्सा था और गुस्साई भीड़ ने उन्हें भी पीटा था.
जिन छह लोगों पर मुकदमा चला उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, लेकिन 2007 में अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण उन्हें छोड़ दिया गया और बुल्गारिया भेज दिया गया. यह विदेशी नर्सें अस्पताल के कई विभागों में काम करती थीं, लेकिन संक्रमण केवल तीन ही विभागों में इलाज करा रहे बच्चों में हुआ. इसलिए भी ऐसा माना जाता है कि यह किसी गलती का नहीं, बल्कि सोची समझी साजिश का नतीजा था. अस्पताल के एक डॉक्टर ने यहां तक कहा कि गद्दाफी ने शहर को सबक सिखाने के लिए ऐसा करवाया होगा. शहर के लोगों में यह धारणा फैली हुई है और अब विरोध के बीच उनमें यह डर भी है कि शायद गद्दाफी फिर उनके साथ ऐसा कुछ बुरा और कर सकते हैं. बहरहाल मामले की पूरी जांच तभी हो पाएगी जब गद्दाफी केवल बेनगाजी नहीं, लीबिया को छोड़ देंगे.
रिपोर्ट: डीपीए/ईशा भाटिया
संपादन: ओ सिंह