बॉलीवुड में बदलाव की हवा
११ सितम्बर २०१०द्रोण, युवराज, काइट्स, लव स्टोरी 2050 और कर्ज ऐसी कुछ फिल्में हैं जो बड़े बजट और बैनर के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ गईं. दूसरी तरफ वेलकम टू सज्जनपुर, ए वेडनेसडे, देव डी, मुंबई मेरी जान, रॉक ऑन, भेजा फ्राई और आमिर जैसी कम बजट की लेकिन अच्छी फिल्मों को लोगों ने पसंद किया.
तो वाकई बालीवुड बदल रहा है. बीइंग साइरस जैसी कुछ अलग सी फिल्म बनाने वाले निर्देशक होमी अदजानिया कहते हैं, “मसाला बहुत देख लिया. मसाला तो चाहिए ही, लेकिन अब हमारे दर्शक स्मार्ट हो गए है. उन्हें पता है कि क्या देखना है. इसलिए सिर्फ नाच गाना डालकर एक कामयाब फिल्म नहीं बनाई जा सकती.”
सिर्फ नाच गाने के साथ कामयाब फिल्म नहीं बन सकती. यह बात चांदनी चौक टू चाइना और दिल बोले हड़िप्पा जैसी फिल्में बखूबी साबित करती हैं. अब लगता है जमाना नई सोच वाले निर्देशकों का है. ऐसे निर्देशक जो कुछ नया पेश कर सकें. वरिष्ठ फिल्म समीक्षक चंद्र मोहन शर्मा कहते हैं कि दर्शकों की क्लास में भी बदलाव आया, जिसकी वजह से अब बॉलीवुड को अपने परंपरागत विषयों से हटकर कुछ करना पड़ रहा है. उनके मुताबिक, “पहले फैमिली ऑडियंस फिल्म देखने आती थी, लेकिन अब सिनेमा आने वालों में 18 से 25 साल के ही लोग ज्यादातर शामिल हैं. इसीलिए फिल्मकारों के ऊपर कुछ नया पेश करने की चुनौती है. ”
अब बॉलीवुड में फिल्म मेकिंग की यह धारणा टूट रही है कि एक हीरो, एक हीरोइन दोनों का प्यार और फिर विलेन आ जाए. इसके बाद मारधाड़ और भागमभाग, बीच में कुछ अलग दिखाने के लिए गाने. इन सबसे होता हुआ आखिर में रटा रटाया अंत. अब फिल्म का हीरो एक गरीब किसान भी हो सकता है, जो घर की हालत सुधारने के लिए मुआवजे की उम्मीद में आत्महत्या करने को तैयार हो जाता है. पीपली लाइव के जरिए इस कहानी को पेश करने वाली निर्देशक अनुषा रिजवी कहती हैं कि यह कहानी दुनिया के किसी भी हिस्से की हो सकती है.
कई और निर्देशक भी दिलचस्प कहानियों की तलाश में गांवों का रुख कर रहे हैं. इश्किया की कृष्णा और ओमकारा का लंगड़ा त्यागी सबको पसंद आए. लगान में सूखे से लड़ते किसान का क्रिकेट खेलना हो या स्वदेस में नासा के वैज्ञानिक का गांव की फिजा में घुलमिल जाना, हर कहानी हिट है. इसीलिए बॉलीवुड में नया ट्रेंड उभर रहा है.
रिपोर्टः अशोक कुमार
संपादनः ए जमाल