ब्लॉगिंग पर चाबुक और ट्वीट पर हमला
३ मार्च २०१२एमनेस्टी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. संस्था का कहना है कि संसदीय चुनावों के दौरान किसी तरह का कोई विरोध नहीं हो इसलिए सरकार इस तरह की कोशिश कर रही है. साइबर पुलिस पिछले एक महीने से इंटरनेट कैफे के मालिकों को कैमरा लगाने को कह रही है और साथ ही इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की पहचान भी सेव करके रखने के आदेश दिए गए हैं.
पहले ईरान के गृह मंत्री मुहम्मद मुस्तफा नजार ने ऑनलाइन और सोशल नेटवर्किंग में सक्रिय सभी कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे चुनाव का बहिष्कार करना रोक दें नहीं तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी. तेहरान में रहने वाले वेब कार्यकर्ताओं को पूरा यकीन है कि सरकार पूरी कोशिश करेगी कि इंटरनेट विरोध का सबब न बन सके.
हलाल इंटरनेट
2009 में विवादित राष्ट्रपति चुनाव और अरब देशों में हुई क्रांति ने सरकार को इंटरनेट की ताकत का संकेत तो दे ही दिया है. ईरान में कई साल से जटिल फिल्टरिंग सिस्टम जारी है. इसमें वेबसाइटों पर रोक, इंटरनेट की गति धीमी कर देना और वेब एक्टिविस्टों को गिरफ्तार करना शामिल है.
लेकिन कुछ तेज लोगों ने सरकार की इन पाबंदियों से बचने के लिए एंटी फिल्टरिंग और किसी विदेशी इंटरनेट पते से अपना काम करना शुरू किया. अब इस तरह की तरकीबें भी नाकाम हो रही हैं. ईरान ने अब यूट्यूब, गूगल और याहू जैसी वेबसाइटों पर भी प्रतिबंध लगा दिये हैं. 2011 की शुरुआत में ही कट्टरपंथियों ने इंटरनेट को "हलाल नेट" का करार दे दिया था.
तेहरान में इंटरनेट कार्यकर्ता रहे अहसान नूरोजी का कहना है कि 2009 के चुनावों के बाद से ही हालात बिगड़ गए थे. लेकिन इस वक्त जिस तरह का रोक लग रहा है, इतिहास में इसके मुकाबले की कोई मिसाल नहीं. सरकार चाहती है कि लोगों को इंटरनेट से पूरी तरह अलग कर दिया जाए.
विरोध पर चर्चा नहीं
लेकिन इसके बावजूद इंटरनेट पर विरोध को रोका नहीं जा सका है. ब्लॉग, फेसबुक या ट्विटर के जरिए लोग किसी न किसी तरह से अपनी बात कह देते हैं. हालांकि ब्लॉग लिखने वालों को इससे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. अरश अबादपुर ईरान के एक ब्लॉगर हैं. उनका कहना है कि ब्लॉग लिखने वालों को सरकार ने गिरफ्तार किया है औऱ उन्हें कड़ी सजा भी मिली है. इसलिए ब्लॉग में आजकल सरकार के विरोध में कम ही लिखा जाता है. ईरान के छात्र आमिर शफीजादे भी एक वेबसाइट के सदस्य हैं जिसमें राजनीतिक मुद्दों पर बात होती है. उनका कहना है कि उनके वेबसाइट में आने वाले लोगों की संख्या घट गई है. ईरान में 30 लाख लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और इसमें से ज्यादातर 25 और 35 की उम्र में है. विरोधी नेता इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं लेकिन वे भी पूरे देश के लोगों की बात नहीं कहते हैं. शफीजादे के मुताबिक ज्यादातर नेताओं की बात आम लोगों को समझ में नहीं आती.
पश्चिमी देश अब अपनी तरफ से ईरान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिका और यूरोपीय देश शैडो नेटवर्क स्थापित कर रहे हैं जिससे इंटरनेट का इस्तेमाल भी हो सके और ईरान के सेंसर को पता भी न चले. लेकिन सरकार और सेंसर का दबाव उनके खुद के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है. वेब पर काम कर रहे आमिर कहते हैं कि अगर युवाओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिली, तो वे सड़कों पर उतर जाएंगे.
रिपोर्टः कियानी याल्दा/एमजी
संपादनः आभा मोंढे