भरोसे की तलाश में अफगान पुलिस
३१ दिसम्बर २०१२एएलपी का गठन 2010 में हुआ उसे अफगानिस्तान के कुछ बेहद खतरनाक और हिंसा से प्रभावित दूर दराज के इलाकों में सामुदायिक स्तर पर पुलिस का काम संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई. एएलपी का विरोध करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन फिर भी इसने कुछ सफलताएं हासिल की है. पूर्वी शहर जलालाबाद से करीब दो घंटे की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा से 40 किलोमीटर दूर गोश्ता जिले में एएलपी के 200 जवानों वाली एक यूनिट पिछले दो महीने से तैनात है और इतने कम समय में ही इसकी मौजूदगी का असर दिखने लगा है.
अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 2012 में अफगान सेना के 1056 जवान अलग अलग हमलों में मारे गए हैं. इनमें 75 फीसदी से ज्यादा बारुदी सुरंगों और सड़क के किनारे बम हमलों के शिकार हुए. ऐसी स्थिति में एएलपी मददगार साबित हो सकती है. स्थानीय नेताओं के चुने इसके सदस्यों को अमेरिकी सेना महज तीन हफ्ते का प्रशिक्षण देती है और इसके बाद अफगान नेशनल पुलिस उन्हें कुछ नियम कायदे सिखाती है. 40 साल के शिनाक अपनी मशीनगन दिखाते हुए मजाक करते हैं, "यह पाकिस्तान से आने का रास्ता है लेकिन अब तालिबानियों का स्वागत है." शिनाक ने कहा, "मैं अपने समुदाय के लिए कुछ बेहतर करना चाहता हूं. मुझे इस सेवा के लिए मेरे इलाके के नेताओं ने चुना क्योंकि मेरा कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं और मैं नशीली दवा का इस्तेमाल नहीं करता."
एएलपी पर अकसर ठगी करने और कानून के बाहर जा कर काम करने के आरोप लगते हैं. इसी साल 24 दिसंबर को जब एक अधिकारी ने अपने पांच साथियों को गोली मार दी तो इसकी छवि और खराब हुई. एएलपी पर नजर रखने वाले अमेरिकी सुपरवाइजरों का कहना है कि 18,000 जवान पूरे देश में कम खर्च में चरमपंथियों से व्यावहारिक सुरक्षा दे रहे हैं. इसके साथ ही वे इन जवानों के अपराधी होने, आधे अधूरे मन से काम करने या तालिबान से सहानुभूति रखने के आरोपों को खारिज करते हैं. अमेरिकी सेना की तरफ से एएलपी के प्रशिक्षण का जिम्मा संभालने वाले कर्नल डॉन बॉल्डक कहते हैं, "दुश्मन ने एएलपी को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा माना है. सेना उन्हें संपत्ति मानती है. लोग पहले से ही यह मान लेते हैं कि स्थानीय सुरक्षा बल बेलगाम, सरकार के प्रति गैरजिम्मेदार और हिंसक होंगे."
बाल्डक ने बताया कि हाल ही में चार अधिकारियों को जब कुंदूज प्रांत में बलात्कार के आरोप में जेल में डाला गया तो यह साबित हुआ कि कानूनी मानकों का पालन हो रहा है. अफगानिस्तान के भविष्य के प्रति एएलपी की प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि 2010 से अब तक कार्रवाई के दौरान एएलपी के 353 जवान मारे गए हैं. गोश्ता में बहाल हुए 30 नए रंगरूट कम उम्र के, बेढंग और कम अनुभवी मालूम पड़ते हैं लेकिन गोश्ता जिले के प्रमुख शकरुल्लाह अमनजई डागरवाल का कहना है, "जब वे लड़ते हैं तो अच्छा लड़ते हैं. ये अपने स्थानीय समुदाय में काम करते हैं इसलिए इन्हें लोगों का समर्थन मिलता है."
एएलपी की योजना अमेरिकी सेना के पूर्व कमांडर जनरल डेविड पैट्रेयस की प्रमुख नीतियों में से थी जिन्होंने स्थानीय स्तर पर तालिबान से लोहा लेने के लिए इसे खड़ा किया. उन्हें खासतौर से उन इलाकों में बनाया गया जहां राष्ट्रीय पुलिस और सेना की मौजूदगी कम है. एएलपी के प्रमुख अली शाह अहमदजई ने बताया, "एएलपी के गठन के बाद से सुरक्षा की समस्या में हम लोगों ने 60 फीसदी तक की कमी देखी है." हालांकि कुछ और लोग भी हैं जो इतने संतुष्ट नहीं. अफगानिस्तान इंडिपेंडेंट ह्यूमन राइट्स कमीशन की हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया, "एएलपी में भर्ती किए गए कई सदस्यों का तालिबान और गैरकानूनी हथियारबंद गुटों में सदस्यता का ब्यौरा मौजूद है. इनमें से कई अपराधिक गतिविधियों में भी शामिल रहे हैं. यहां तक कि कुछ जंग में शामिल और सीरियल किलर जैसे लोग भी हैं." रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया कि एएलपी हथियारबंद विरोधियों का गुट बन सकता है जो सरकार को ही चुनौती देगा. अफगानिस्तान एनालिसिस नेटवर्क से जुड़े फाबिरित्सियो फोशिनी का कहना है, "एएलपी का मतलब है ज्यादा संख्या में हथियारबंद लोगों की मौजूदगी जो स्थानीय मुद्दों पर हरकत में आएंगे और अफगान संस्थाओं के साथ मिल काम नहीं करेंगे."
एनआर/एमजे (एएफपी)