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भारत ईयू मुक्त व्यापार के मायने

१ जनवरी २०११

जर्मन भाषी अखबारों में पाकिस्तान हमेशा की तरह चर्चा में बना हुआ है. पर इस बार कुछ अखबारों ने भूटान की बदलती तस्वीर और भारत व यूरोपीय संघ के संभावित मुक्त व्यापार समझौते पर भी टिप्पणियां की हैं.

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ब्रसेल्स में भारत यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलनतस्वीर: AP

भारत और यूरोपीय संघ सालों से मुक्त व्यापार समझौते पर बात कर रहे हैं. यदि इस समझौते को लागू किया जाता है तब दोनों पक्षों के बीच व्यापार करों से जुड़ी बाधाओं को कम किया जा सकता है. लेकिन इस तरह के समझौते से भारत में सस्ती दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को नुकसान होगा. साथ ही दुनियाभर के उन मरीजों पर भी असर पड़ेगा जो यूरोपीय देशों से नहीं बल्कि भारत से नॉन ब्रैंडेड दवाएं खरीदते हैं. फ्रांकफुर्टर रुंडशाउ का कहना है

इस समझौते से बहुत से गरीब देशों खासकर अफ्रीकी देशों में दवाओं की आपूर्ति को भारी नुक्सान होगा. अफ्रीका में एड्स जैसे रोगों से निपटने की दवाएं भारत से ही आती हैं. 2008 में जो दवाइयां अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों ने इस काम के लिए खरीदी थीं, उनमें से 20 फीसदी भारत से ली गईं. इसीलिए भारत को गरीबों की फार्मेसी का नाम तक दिया गया है.

यूरोपीय संघ का कहना है कि जो कंपनियां भारत में सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराती है, उन्हें पहले साबित करना होगा कि उनकी दवाएं उनती ही कारगर हैं जितनी यूरोपीय कंपनियों की महंगी दवाएं. साथ ही पेटेंटों को और सुरक्षित करने की भी बात चल रही है. यदि भारतीय दवा उद्योग पर इतनी शर्तें और पाबंदियां लगेंगी, तब दवाइयां महंगी होंगी और सस्ती दवाओं को बाजार में लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

किसके साथ है पाकिस्तान

पाकिस्तान सरकार लंबे समय से पश्चिमी देशों से सहयोग का वादा करती रही है, लेकिन वह देश के भीतर पश्चिम के खिलाफ मुहिम भी चला रही है. उदाहरण के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अमेरिका को बताती है कि कबायली इलाकों में कहां ड्रोन हमले करने हैं. लेकिन सरकार साथ ही इन हमलों की आलोचना भी करती है. सेना उन्हीं कबायली इलाकों में तालिबान लडाकों को खत्म करने की कोशिश करती है और साथ ही उन्हें समर्थन भी देती है. जर्मनी के सबसे प्रसिद्ध दैनिकों में से एक फ्रांकफुर्टर आलगमाइने त्साइटुंग का कहना है कि यह सब जानते हुए भी पश्चिमी देश लाखों और करोड़ों डॉलर एक भ्रष्ट एलीट और सेना को देते हैं, जिसके बारे में यह भी नहीं पता है कि वे लोग हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ लड़ रहे हैं.

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पाकिस्तान में बढ़ता चरमपंथतस्वीर: AP

पाकिस्तान को नागरिक और सैनिक सहायता के तौर पर दो अरब डॉलर मिल चुके हैं. इसके बावजूद पाकिस्तान यह नहीं सीख पाया है कि किस तरह का व्यवहार उसे इनाम का हकदार बना सकता है. सबसे बडी समस्या यह है कि पाकिस्तान भारत के साथ चल रहे विवाद की खातिर इस्लामी आतंकवादियों को पालना जरूरी समझता है. वह यह भी सोचता है कि ये आतंकवादी ताकतवर बने रहेंगे तो एक दिन शायद पश्चिम को पूरी तरह से अफगानिस्तान छोड़ना होगा, जो पाकिस्तान के हित में है.

महिला आत्मघाती हमलावर

अब तक सुरक्षा एजेंसियां यही सोचती थीं कि इस्लामी आतंकवादियों की हिंसा में पुरुष ही शामिल होते हैं. लेकिन अब महिलाएं भी आत्मघाती हमलावर बन रही हैं. पिछले हफ्ते पाकिस्तान में एक महिला ने खुद को उड़ा कर खार शहर में 45 लोगों की जान ले ली और सैंकड़ों को घायल कर दिया. ये लोग संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत राशन लेने के लिए कतार में खड़े थे.

बर्लिन के दैनिक बर्लिनर त्साइटुंग का कहना है कि खार बाजौड़ एजेंसी का सबसे बड़ा शहर है जो अफगानिस्तान की सीमा के निकट है. इस शहर में ज्यादातर पश्तून रहते हैं. पाकिस्तानी सेना दावा कर रही है कि इस इलाके में अब कोई लड़ाके या आतंकवादी नहीं हैं. लेकिन इस इलाके से पडोसी देश अफगानिस्तान में कई हमले होते हैं. अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक वहां विशेष तरह के अमेरिकी सैनिक भेजने की योजना है. लेकिन अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में नेटो के प्रतिनिधि हमेशा इस तरह की योजना को खारिज करते हैं. वैसे पाकिस्तान खुद 2007 से लगभग 200 आत्मघाती हमलों का शिकार हुआ है. इन हमलों में अब तक करीब 4000 लोगों की मौतें हुई है.

बदलता भूटान

1972 तक भूटान दुनिया के सबसे गरीब देशों में गिना जाता था. लेकिन अब यह तस्वीर बदल गई है. वहां अनपढ़ लोगों की संख्या काफी कम हुई है. दुनियाभर में भूटान ऐसा देश माना जाता था जहां नवजात शिशुओं की मृत्युदर सबसे ज्यादा संख्या है. लेकिन अब इस स्थिति में भी काफी सुधार आया है. लोगों की औसतन उम्र 1982 में 43 साल से बढ़कर 66 साल हो गई है. काफी दूर दराज के इलाके में स्थित मशहूर मठ चिमनी के बौद्ध भिक्षुओँ के अध्यक्ष भी मोबाइल से फोन करते हैं. भूटान में बदलाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि आधुनिकरण से बौद्धों को दिक्कत नहीं है.

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परंपराओं के संरक्षण के लिए जाना जाता है भूटानतस्वीर: AP

फ्रांकफर्ट के दैनिक फ्रांकफुर्टर रुंडशाऊ कहता है कि देश पर 1907 से राज करने वाले शाही वंश के चौथे नरेश जिग्मे सिग्ये वांचुक ने बहुत बुद्धिमत्ता से सड़क बनाने, देश में बिजली लाने और ऊर्जा में निवेश किया. वह 1974 से 2004 तक भूटान नरेश रहे. जल से जो ऊर्जा विकसित होती है उसका बडा हिस्सा भारत पहुंचता है जिससे भूटान को खूब फायदा होता है. वैसे भारत पर ही भूटान राजनीतिक रूप से ही नहीं, आर्थिक रूप से भी सबसे ज्यादा निर्भर है.

भूटान की अर्थव्यवस्था इस वक्त तेजी से बढ़ रही है और दो साल पहले देश में पहला विश्वविद्यालय भी खोला गया है. लेकिन देश में आधुनिकरण के चलते पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. कूड़े की समस्या बढ़ रही है. हालांकि भारत और नेपाल को देखते हुए यह अभी काफी छोटी समस्या है. देश में कुशल कर्मियों की संख्या भी कम हो रही है. सड़कें बनाने के लिए भारत से सस्ते मजदूर लाए जा रहे हैं. यह मजदूर बहुत ही दयनीय स्थिति में भूटान में जीते हैं. अब तक आधुनिकीकरण में सड़कें, भवन और एयरपोर्ट बनाने के लिए लकड़ी का भी आयात किया जा रहा है. लेकिन जब आधुनिक जीवन शैली के मुताबिक घरों और होटलों को बनाया जाएगा तब तब देश के वनों को नष्ट होने से बचाने का कोई विकल्प नजर नहीं आता.

संकलनः प्रिया एसेलबोर्न

संपादनः ए कुमार

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