भारत के डायनोसोर
२४ मई २०१४भारत में डायनोसोरों की कई नई प्रजातियां मिली हैं. चंडीगढ़ नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के मुताबिक कई लोग ये तथ्य नहीं जानते कि डायनोसोर के जीवाश्म के रूप में पहचाने गए पहले जीवाश्म भारत में ही मिले थे. 1928 में कैप्टन विलियम सीलमैन को मध्यप्रदेश के जबलपुर कैंटोनमेंट में डायनोसोर के जीवाश्म मिले.
भारत में मिले डायनोसोरों के जीवाश्म ट्रायसिक, जुरासिक और क्रेटैशियस दौर के हैं यानि 22 करोड़ पचास लाख से लेकर साढ़े छह लाख साल पुराने. कई अहम जीवाश्म पुराने आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात में मिले हैं. 1982 और 1984 के बीच मांसभक्षी राजासॉरस के जीवाश्म भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के सुरेश श्रीवास्तव ने खोज निकाले. इसे गुजरात के खेडा जिले की नर्मदा नदी घाटी से निकाला गया. अमेरिकी और भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे 13 अगस्त 2003 के दिन नई प्रजाति के तौर पर पहचाना.
शिकागो यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी पॉल सेरेनो, मिशिगन यूनिवर्सिटी के जेफ विल्सन और श्रीवास्तव ने इस जीवाश्म का अध्ययन किया. यह प्रजाति राजासॉरस नर्मदेंसिस के तौर पर जानी गई. इस नाम का मतलब है नर्मदा घाटी की शाही छिपकली. इस प्रजाति की अश्मीभूत हड्डियां नर्मदा घाटी के ऊपरी हिस्से यानि जबलपुर में भी मिली हैं.
राजासॉरस नाम का ये डायनोसोर सिर्फ भारतीय प्रायद्वीप में मिलता था. जिस समय यह भारत के हिस्से पर राज करता था उस समय भारतीय प्रायद्वीप का भूभाग गोंडवाना से अलग हुआ ही था और उत्तर की ओर बढ़ रहा था. राजासॉरस वैसे खुद अलग विकसित हुए लेकिन ये मैडागास्कर के मायुंगसोरस और दक्षिण अमेरिका के कार्नोटॉरस से मिलते जुलते थे.
राजासॉरस ऐसे पत्थर से मिला है जो ज्वालामुखी फटने के बीच बनी नदियों और झीलों के कारण बनता है. इन ज्वालामुखीय पत्थरों को अब डेक्कन ट्रैप्स के नाम से जाना जाता है.
भारत में करीब 23 अलग अलग डायनोसोर की प्रजातियों के जीवाश्म मिले बताए जाते हैं.
रिपोर्टः आभा मोंढे
संपादनः ईशा भाटिया