भारत के विस्फोट पर खड़का जर्मन प्रेस
९ सितम्बर २०११नई दिल्ली में हाई कोर्ट के सामने बुधवार को एक बम धमाका हुआ. धमाके में 12 लोग मारे गए और करीब 50 लोग घायल हो गए. इस घटना पर टिप्पणी करने हुए बर्लिन से प्रकाशित वामपंथी देनिक नॉयस डॉयचलैंड ने लिखा है,
हमला ऐसे समय में हुआ है जबकि यूपीए की सरकार भ्रष्टाचार के अनगिनत मामलों के चलते यूं भी जनमत के दबाव में है और उसे अन्ना हजारे के नेतृत्व में चल रहे इंडिया एगेंस्ट करप्शन आंदोलन को सख्त भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनाते समय रियायतें देनी पड़ी है. विपक्ष इस सरकारी गठबंधन पर आतंकी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई में बहुत ढील देने का आरोप लगाता है.
फ्रैंकफर्ट से प्रकाशित दैनिक फ्रांकफर्टर अलगेमाइने साइटुंग ने लिखा है कि समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश से सक्रिय आतंकी गुट हरकत उल जिहादी ए इस्लाम (हूजी) ने हमले की जिम्मेदारी ली है.
हूजी की चिट्ठी में मौत की सजा पाए कश्मीरी मोहम्मद अफजल गुरु का जिक्र है. गुरु को दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले के बाद पकड़ा गया था. उस पर चले मुकदमे की कुछ ने आलोचना की थी. कश्मीरी गुटों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने भी पिछले सालों में मुकदमे की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे. इस समय भारतीय राष्ट्रपति के सामने माफीनामा विचाराधीन है. गृह मंत्री चिदंबरम ने अगस्त में एक टिप्पणी में मौत की सजा खत्म किए जाने का विरोध किया था.
भारत ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता की लड़ाई में पूर्वी बंगाल की मदद की थी और बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. नॉय ज्यूरिषर साइटुंग ने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि स्वतंत्रता आंदोलन के अगुआ शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद दोनों के रिश्ते ठंडे पड़ गए.
शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना के चुनाव के बाद से संबंध स्पष्ट रूप से बेहतर हुए हैं. उनकी अवामी लीग ने इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है और भारतीय अलगाववादियों से दूरी बनाई है. इसका नतीजा यह हुआ है कि बांग्लादेश को नई दिल्ली समस्याजनक पड़ोसी से ज्यादा लाभदायक सहयोगी समझने लगा है. भारत की बड़ी चिंता है कि चीन ने पिछले सालों में इलाके में अपना प्रभाव बहुत बढ़ा लिया है. बीजिंग बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और हथियारों का महत्वपूर्ण सप्लायर है. इसके अलावा नई दिल्ली ने समझ लिया लगता है कि 16 करोड़ आबादी के साथ बांग्लादेश एक दिलचस्प बाजार भी है.
विश्व में और कहीं कारों की बिक्री इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है, जितनी भारत में. इसके बावजूद जर्मन कार निर्माताओं की भारत में मौजूदगी कम है. प्रतिद्वंद्वी जापान की स्थिति इसके विपरीत है. सफलता की वजह यह है कि जापानियों ने हमेशा अपने उत्पादों को भारतीय बाजार के हिसाब से ढाला है. आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट ने भारतीय उपभोक्ताओं पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि कारें उतनी सस्ती होनी चाहिए जितनी हो सकती हैं.
उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि जरूरत पड़ने पर पांच लोगों वाली गाड़ी में सात या आठ लोग भी बैठ सकें और साथ में बहुत सारा सामान भी. लक्जरी, सुरक्षा और सुविधा ज्यादातर लोगों के लिए दूसरे दर्जे की बात है, वह यूं भी शहर में कम दूरी तक जाता है. फोल्क्सवैगन पोलो इस लिहाज से बहुत महंगा है. 9000 यूरो यानी छह लाख रुपये की कीमत के साथ जर्मनी में सस्ती समझी जाने वाली कार भारत में मझौले कीमत वाले सेगमेंट में आती है. मारुति सुजूकी जैसे प्रतिद्वंद्वी कई हजार सस्ते में छोड़ी गाड़ी ऑफर करते हैं और इसीलिए बाजार पर एकछत्र राज करते हैं.
भारत के आर्थिक दैनिक ने खबर दी है कि टाटा कंसलटेंसी सर्विस टीसीएस ने लुफ्तहंसा सिस्टम्स को खरीदने की पेशकश की है. फाइनैंशियल टाइम्स डॉयचलैंड का कहना है कि भारत का मार्केट लीडर लुफ्तहंसा सिस्टम्स में बहुमत शेयर के लिए 50 करोड़ डॉलर देने को तैयार है.
लुफ्तहंसा सिस्टम्स हालांकि बाजार की बड़ी कंपनी है लेकिन दूरगामी रूप से अकेले प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए बहुत छोटी. विमानन उद्योग में यह कंपनी विश्व भर में अगुआ है. 200 विमान कंपनियों के लिए जो उसके ग्राहक हैं, कंपनी चेक इन का पूरा काम निबटाती है, ऑनलाइन बुकिंग से लेकर सामान जमा करने तक. टीसीएस के लिए कंपनी का अधिग्रहण विमानन उद्योग और जर्मन बाजार में पांव जमाने की संभावना देता है. उसके ग्राहकों में अभी ही ब्रिटिश एयरवेज और सिंगापुर एयरलाइंस जैसे नाम शामिल हैं. टीसीएस हालांकि भारत का सबसे बड़ा आईटी सर्विस प्रोवाइडर है , लेकिन पश्चिम यूरोप में भारतीय आईटी कंपनियों का हिस्सा बहुत कम है. मार्केट सर्वे करने वाली संस्था आईडीसी के अनुसार उनका हिस्सा बस 2.7 प्रतिशत है.
वामपंथी दैनिक नॉयस डॉयचलैंड ने माओवादी आंदोलन पर अपने एक लेख में लिखा है कि 40 साल से माओवादी गुट अवामी क्रांति के लिए लड़ रहे हैं.
पिछले दिनों में भारत के कई प्रांतों में घरेलू स्थिति बहुत बिगड़ गई है. मारे जाने वाले किसानों की संख्या बढ़ रही है. भारतीय अधिकारी औपचारिक रूप से कहते हैं कि मरने वाले नक्सल हैं. कई प्रांत, जहां माओवादी आंदोलन मजबूत है, भारतीय और विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ रही है. वहां महत्वपूर्ण खनिज हैं जिसका फायदेमंद इस्तेमाल हो सकता है. इन योजनाओं में स्थानीय निवासी और पूंजीवादी घुसपैठ के खिलाफ काम कर रहे सामाजिक आंदोलन बाधा डालते हैं. नक्सलों के खिलाफ लड़ने के नाम पर समूचे सामाजिक आंदोलन के खिलाफ भारतीय कार्रवाई में तेजी आ सकती है.
संकलन: प्रिया एसेलबॉर्न/मझा
संपादन: ए जमाल