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भारत-चीन जलवायु संधि

२१ अक्टूबर २००९

कई एक द्विपक्षीय सवालों पर तनाव के बीच भारत और चीन ने बुधवार को जलवायु परिवर्तन से निपटने के सवाल पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है. कोपेनहेगेन सम्मेलन से पहले इसे काफ़ी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

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बदलती आबोहवा, सूखती धरतीतस्वीर: picture-alliance / chromorange

भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश और चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग के उपाध्यक्ष खी ज़ेनहुआ ने नई दिल्ली में इस समझौते पर हस्ताक्षर किया. इस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए दोनों देशों की नीतियों के बीच समन्वय तथा संयुक्त परियोजनाओं पर अमल के लिए एक संयुक्त कार्यदल का गठन किया जाएगा.

भारत और चीन के बीच यह इस प्रकार का पहला समझौता है. दोनों देशों में तेज़ आर्थिक और औद्योगिक विकास के फलस्वरूप कांचघर प्रभाव उत्पन्न करने वाले गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है. पश्चिमी देशों की ओर से मांग की जा रही है कि विकसित औद्योगिक देशों की तरह इन दोनों देशों के लिए भी गैस उत्सर्जन की अधिकतम सीमा तय की जाए. भारत और चीन ऐसी मांगों को दृढ़ता के साथ ठुकराते रहे हैं.

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में विश्व में चीन का पहला स्थान है. वह अकेले ही 20 प्रतिशत गैसों के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है. भारत का अनुपात पांच प्रतिशत है, जिसके साथ वह चीन, अमेरिका और रूस के बाद चौथे स्थान पर है.

दिसंबर में कोपेनहेगेन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन होने जा रहा है. वहां ग्रीनहाउस उत्सर्जन की सीमा तय करने के लिए क्योटो प्रोटोकोल के उत्तराधिकारी समझौते पर विचार किया जाएगा. सन 2012 में क्योटो प्रोटोकोल की अवधि समाप्त होने जा रही है.

समझौते पर हस्ताक्षर के बाद भारतीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के सवाल पर भारत और चीन के रुख में कोई अंतर नहीं है. दोनों देश इस पर विचार कर रहे हैं कि कोपेनहेगेन सम्मेलन को सफल रूप से संपन्न करने के लिए वे कौन से क़दम उठा सकते हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: राम यादव