भारत ने जॉब्स को अंतर्ज्ञान सिखाया
२४ अक्टूबर २०११आईपॉड, आईफोन, आईपैड और मैकबुक जैसी मशीनें बनाने वाले स्टीव जॉब्स मौत से कभी नहीं घबराए. उनके व्यक्तित्व में बड़ा बदलाव 1970 के दशक में की गई भारत यात्रा के बाद आया. छह अक्टूबर को जॉब्स का निधन हुआ और अब उनकी जीवनी से एप्पल के सह संस्थापक के जीवन के बारे में काफी कुछ पता चल रहा है.
जीवनी में भारत यात्रा का विस्तार से जिक्र है. कहा गया है, "भारत में आधात्मिक ज्ञान पाने के लिए बिताए सात महीने समय की बर्बादी नहीं थे. भारत ने अंतर्ज्ञान सिखाया."
जॉब्स की जीवनी के लेखक वाल्टर इसाकसन के मुताबिक भारत से लौटने के बाद जॉब्स ने कहा, "मैंने मुख्य रूप से जो बात सीखी है वह है अंतर्ज्ञान. भारत के लोग न सिर्फ तार्किक सोच वाले हैं बल्कि वहां के बड़े आध्यात्मिक लोगों को अंतर्ज्ञान भी हैं."
जॉब्स ने आध्यात्म को काम करने तरीके और मशीनों में डाला. उन्होंने हमेशा मशीनों को लोगों के लिए बेहद सरल बनाने की कोशिश की. इसाकसन कहते हैं, "बौद्ध धर्म की सरलता ने उनके डिजायन सेंस पर असर डाला. यह ख्याल आया कि सरलता की परम विशेषता है."
भारत से लौटने के बाद ही जॉब्स ने अपने मित्र स्टीव वोजनियाक के साथ मिलकर एप्पल कंपनी की स्थापना की. अपने पिता के गैराज में 1,300 अमेरिकी डॉलर के साथ एप्पल की नींव रखी.
जॉब्स जवानी में एक हिप्पी थे और कॉलेज से निकाले गए थे. एक हिप्पी का भारत जाना और फिर लौट कर बिजनेस मैन बनने की सोच के साथ लौटना हैरान करने वाला है. इसाकसन कहते हैं, "जॉब्स के भीतर खुद यह लड़ाई चल रही थी. लेकिन इसे वह एक हिप्पी और गैर भौतिकतावादी की लड़ाई की तरह नहीं देख रहे थे. वह चाहते थे कि वह वोजनियाक के बोर्ड के तरह वह भी चीजें बेंचे. एक धंधा शुरू करना चाहते थे. मुझे लगता है कि उन दिनों सिलीकॉन वेली ऐसी ही हुआ करती थी. चलो घरवालों के गैरेज में बिजनेस खड़ा करने की शुरुआत की जाए, जैसे विचार की तरह."
लेकिन भारत के प्रति प्रेम जल्द टूट गया. बौद्ध धर्म से गहरा लगाव होने के बावजूद जॉब्स को लगा कि भारत में ऐसे स्थान ही नहीं बचे हैं जहां कोई महीना भर रह कर आध्यात्मिक ज्ञान तक पहुंच सके. भारत यात्रा के दौरान वह आध्यात्म के नाम ढोल पीटने वाले कुछ लोगों के संपर्क में आए. यह उनके लिए कड़वा अनुभव रहा.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ए कुमार