भारत में बढ़ रहे हैं अफगानी छात्र
२९ जनवरी २०११इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन अफगानी स्टूडेंट्स को उनकी शिक्षा के लिए पूरा वजीफा भी उपलब्ध करवा रहा है. जिससे की उन्हें भारत में पढ़ाई पूरी करने में कोई परेशानी न हो.
नजारी और सईद दिल्ली की पांच मंजिला इमारत में उन सैकड़ों अफगानी स्टूडेंट्स के साथ रहते हैं जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं. आप जैसे जैसे इस इमारत की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे आपको अफगानी तहजीब का अहसास होता जाता है. कभी आपको अफगानी संगीत सुनाई देता है तो कभी अफगानी चिकन और पुलाव की खुशबू से आपकी भूख बढ़ने लगती है.
मुहवल्लाह नजारी यहां रहकर बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रहे हैं. नजारी ने पढ़ाई के लिए भारत को ही क्यों चुना. इस सवाल के जवाब में नजारी कहते हैं कि भारतीय शिक्षा पद्धति की अफगानिस्तान में बहुत कद्र है और इसके अलावा यहां की शिक्षा दूसरे देशों के मुकाबले महंगी नहीं है. नजारी कहते हैं कि अन्य भाषाओं की तुलना में भारत की भाषा हिन्दी समझने में आसान है, क्योंकि हम अफगानी लोग उर्दू समझते हैं और हिन्दी और उर्दू में आपस में बहुत समानताएं हैं.
अफगानी स्टूडेंट्स भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा से खासे परिचित हैं, क्योंकि वे हिन्दी फिल्में और टीवी सीरियल बहुत पसंद करते हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई कर रहे मोहम्मद आरिफ जमशेदी के मुताबिक भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है और इससे काफी स्टूडेंट्स भारत में शिक्षा लेने आते हैं.
जमशेदी ने बताया कि अफगानिस्तान में कई विदेशी संस्थाएं और एनजीओ अंग्रेजी और कम्प्यूटर जानने वाले लोगों को अच्छी तनख्वाह देती हैं. इसके अलावा किसी कोर्स में ग्रेजुएशन के बाद स्टूडेंट्स को वहां अच्छी नौकरी मिल जाती है.
हालांकि पॉलिटिकल साइंस के एक अन्य स्टूडेंट मोहम्मद साफा सरवारी के मुताबिक अफगानियों के लिए भारतीय खानों से सामंजस्य बैठा पाना मुश्किल होता है. साफा ने कहा कि शुरुआत में मुझे भारत के मसालेदार व्यंजनों से परेशानी हुई, इसलिए पहले कुछ दिनों तक मैंने सिर्फ केले खाए. जब में एक भारतीय के साथ रहा तो शाकाहार और मांसाहार वाली समस्या सामने आई. इसके अलावा कुछ भारतीय मंगलवार औऱ गुरुवार को खाना ही नहीं खाते. इस तरह खाने को लेकर कई समस्याएं रहीं.
लाजपत नगर के साप्ताहिक बाजार में अफगानी नांद और ब्रेड मिलती हैं और यही वजह है कि साफा यहां हर सप्ताह आते हैं. इस बाजार में अफगानी सामान मिलने की वजह से कुछ अफगानी स्टूडेंट्स इसे अफगान मार्केट कहते हैं.
साफा ने बताया कि अफगानिस्तान से इलाज, पढ़ाई और घूमने-फिरने के लिए आने वाले लोग लाजपत नगर को अफगान नगर कहते हैं और सबसे पहले यहीं आते हैं. साफा ने कहा कि मैं लाजपत नगर नान लेने जाता हूं, क्योंकि यह शहर के किसी और हिस्से में नहीं मिलता. लाजपत नगर में पहले एक भी बेकरी नहीं थीं लेकिन अब यहां तीन बेकरियां हैं.
पूना यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई कर रहे अहमद रेशाद आरिफी के मुताबिक कुछ साल पहले तक बहुत से अफगानी स्टूडेंट्स उच्च शिक्षा के लिए पाकिस्तान और ईरान जाते थे, लेकिन फिलहाल ईरान का वीजा मिलना आसान नहीं और पाकिस्तान शिक्षा के मामले में इतना मशहूर नहीं रहा.
अहमद रेशाद आरिफी ने कहा कि पाकिस्तान के हालात ठीक हैं, लेकिन अफगान सरकार भी अपने लोगों को शिक्षा के लिए पाकिस्तान नहीं जाने देना चाहती क्योंकि वे वहां जाकर कुछ सीखने के बजाय आतंकवादी बन सकते हैं और कहीं वे वहां पढ़ भी लिए तो पाकिस्तान में हासिल की गई डिग्री से वे नौकरी नहीं पा सकते.
भारत में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने का फायदा यह है कि स्टूडेंट्स के पास मौका होता है कि वह अमेरिका, यूरोप या कनाडा जाकर आगे की पढ़ाई या नौकरी कर सकता है.
अहमद रेशाद आरिफी ने बताया कि दूसरे देश में शिक्षा लेने के बाद मैं अफगानिस्तान लौट जाऊंगा, क्योंकि मेरा परिवार वहीं है. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में सरकारी कार्यालयों के अलावा निजी बैंक और विदेशी संस्थानों में नौकरियां हैं. वहां मुझे अच्छी तनख्वाह मिल सकती है और अगर अफगानिस्तान के राजनीतिक हालात ठीक रहे तो मैं वहां लौटकर अपने देश की उन्नत में जरूर सहयोग करूंगा.
अहमद रेशाद आरिफी की तरह और भी अफगानी स्टूडेंट्स हैं जो अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद स्वदेश लौटना चाहते हैं.
रिपोर्ट: बिजोयेता दास/ शराफत खान
संपादन: ओ सिंह