भारत में भ्रष्टाचार से भिड़ने की दस्तक
१ अगस्त २०११पुणे के इंजीनियर विवेक पई के लिए वह रात किसी भयानक सपने से कम नहीं थी. दुर्घटना में मारे गए उनके सबसे करीबी दोस्त की लाश को दोस्त के माता पिता के पास विमान से दिल्ली ले जाना था. उसके लिए शव पर लेप लगवाना था. लेकिन अस्पताल में ऐसा करने के लिए कोई तैयार नहीं था. पई कहते हैं, "मुझे लेप लगा होने का सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए अस्पताल में क्लर्क को रिश्वत के पांच सौ रुपये देने पड़े ताकि मेरे दोस्त के मां बाप अपने बेटे की लाश देख सकें."
पई ने उस रात देखा कि अपनों की लाशों को लेने के लिए किस तरह गरीब लोगों को रिश्वत कम कराने के लिए अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है. वह कहते हैं, "मैं अपने देश की भ्रष्ट व्यवस्था पर शर्मिंदा हूं."
बैंगलोर के व्यापारी पुष्कर शर्मा की कहानी कुछ अलग है लेकिन दर्द वही है. उन्होंने अपना मैरिज सर्टिफिकेट पाने के लिए एक हजार रुपये की "एक्स्ट्रा फीस" देने से इनकार कर दिया. बदले में उनसे कई महीनों तक मैरिज ब्यूरो के चक्कर कटवाए गए. संबंधित अधिकारी हर बार किसी नए दस्तावेज की मांग कर देता या किसी पुराने दस्तावेज में कमी बताकर उसे खारिज कर देता.
रग रग में भ्रष्टाचार
इन किस्सों को सुनकर लगता है कि भारत में भ्रष्टाचार जिंदगी की राह यहां वहां थामने वाला एक अवरोधक बन चुका है. लोगों को अपना व्यापार शुरू करने से लेकर लाइसेंस लेने, फ्लैट की रजिस्ट्री कराने, पासपोर्ट बनवाने और यहां तक कि यूनिवर्सिटी की डिग्री लेने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है.
कुछ जानकार कहते हैं कि भ्रष्टाचार नाम की इस बीमारी की जड़ लाइसेंस राज में है जिसने लालफीताशाही की मदद से भ्रष्टाचार को देश की रगों में बहा दिया. लेकिन 1991 में आर्थिक सुधारों के बावजूद भारत दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की पिछले साल की रिपोर्ट में उसे 178 देशों की सूची में 78वां नंबर मिला था.
दर्द जब हद से गुजरता है...
रिसर्च करने वाली संस्था इंडियाफोरेंसिक के आंकड़ों के मुताबिक एक अनुमान के आधार पर पिछले एक दशक में भारत को 345 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. इसका एक बड़ा हिस्सा अवैध तरीकों से देश से बाहर भेज दिया गया.
एक अन्य अनुमान के मुताबिक 2009 में हर आदमी को भ्रष्टाचार की वजह से औसतन दो हजार रुपये की चपत लगी. यह दस साल पहले की तुलना में 260 फीसदी ज्यादा है. इसकी हताशा अब भारतीयों के भीतर दिखने लगी है. यही वजह है कि हाल के दिनों में कम से कम दो मौके ऐसे आए जब भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी संख्या में भारतीय एकजुट दिखाई दिए. पहले अप्रैल में अन्ना हजारे के आंदोलन में और फिर बाबा रामदेव के आंदोलन में.
भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के प्रमुख इस हताशा की वजह तलाशने की कोशिश करते हैं. वह कहते हैं, "भ्रष्टाचार और खराब शासन में सीधा संबंध है. भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र को नष्ट कर दिया है."
लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक करने का काम करने के लिए एक वेबसाइट आईपेडब्राइबडॉटकॉम देश में रिश्वत का हिसाब किताब लगाने की कोशिश करती है. इस वेबसाइट पर 13 हजार लोगों ने अपने अनुभव बांटे हैं कि उन्हें कब कब रिश्वत देनी पड़ी. वेबसाइट के संयोजक टीआर रघुनंदन कहते हैं कि यह भ्रष्टाचार के उदाहरणों का सबसे बड़ा लेखाजोखा है जिसने सेवाओं को सुधारने में बड़ा योगदान दिया है.
बदलाव की दस्तक
ऐसा लगने लगा है कि अब राजनीतिज्ञ लोगों की इस जागरूकता से परेशान होने लगे हैं. इसलिए वे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को कुचलने की कोशिश करते भी नजर आते हैं. समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन कहते हैं, "मुझे डर है कि वे लोग चेतावनी को समझ नहीं रहे हैं. अगर सरकार सही तरह से इसे नहीं संभालती है तो यह आंदोलन हिंसक भी हो सकता है."
लेकिन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के पीएस बावा अब भी उम्मीद की किरण देख रहे हैं. उनका कहना है कि अगर ताकतवर लोगों को मिसाल बनाया जाए तो आंदोलन लय पकड़ सकता है. बावा कहते हैं कि बड़ा बदलाव तब आएगा जब लोग रिश्वत देने का विरोध निजी स्तर पर करने लगेंगे और धीरे धीरे ही सही, ऐसा होने लगा है. खासतौर पर नौजवान इसके लिए आगे आ रहे हैं.
अन्ना हजारे के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले मेडिकल स्टूडेंट रोहित सिंह कहते हैं, "नौजवान भारतीय सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए एकजुट हो रहे हैं. हम सभी दोस्तों ने फैसला किया है कि वे कभी रिश्वत नहीं देंगे."
रिपोर्टः डीपीए/वी कुमार
संपादनः एन रंजन