भारत में ही रहेंगी मदर टेरेसा की अस्थियां
१३ अक्टूबर २००९अल्बेनिया के प्रधानमंत्री सालि बारिशा ने शनिवार कहा कि उनकी सरकार भारत के साथ बातचीत कर रही है कि अगस्त 2010 में मदर टेरेसा की जन्म शताब्दी के पहले उनके अवशेष अल्बेनिया लाए जा सकें.
मदर टेरेसा यानी आग्नेस कोन्या बोज्येज्यीव का जन्म स्कोप्ये मर्सेडोनिया में रहने वाले एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था. 1929 में 18 साल की उम्र में वह रोमन कैथोलिक नन बन कर कोलकाता आ गईं. 1950 में उन्होंने कोलकाता में मिशनरी संस्थाओं की स्थापना की और वहीं रहने लगी. उन्होंने बुज़ुर्ग लोगों, अनाथों के लिये काफ़ी काम किया और अपनी मृत्यु तक करती रहीं.
मदर भारतीय नागरिक
मदर टेरेसा ने 1948 में भारतीय नागरिकता ली. 1997 में निधन के बाद उन्हें कोलकाता के मदर हाउस में दफ़नाया गया है. अल्बेनियाई प्रधानमंत्री के बयान के बाद भारत में मदर टेरेसा के चाहने वालों के बीच रोष फैल गया. लेखिका महाश्वेता देवी का कहना है कि "वह अल्बेनियाई रही होंगी लेकिन वह मदर टेरेसा भारत में अपने काम के कारण बनी हैं. वह यहां अपनी इच्छा से रहीं. इसलिये मेरा मानना है कि उनकी याद को सम्मान देने के लिये उनके अवशेषों को भी यहां रखने की अनुमति मिलनी चाहिए."
जबकि मदर टेरेसा पर एक पुस्तक लिखने वाली सुनीता कुमार का कहना है कि "मदर ने भारत को हमेशा अपने घर के तौर पर देखा. जब भी यात्राओं के दौरान वह बीमार होती और मैं उनसे पूछती कि आप कहां जाना चाहती हैं तो वह कहती मैं घर जाना चाहती हूं."
मशहूर फोटोग्राफ़र रघु राय कहते हैं कि "वह हमारी मदर हैं. अपनी मां को आप कैसे किसी को दे देंगे." उनका यह भी कहना था कि सरकार इस बारे में कोई निर्णय नहीं ले सकती इस बारे में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी को सोचना होगा.
मिशनरीज़ को जानकारी नहीं
मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी संस्था की प्रवक्ता सिस्टर क्रिस्टी का कहना है कि "हमें इस मामले में कोई सूचना नहीं मिली है, इसलिए हम कुछ नहीं बता सकते."
जबकि भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने साफ़ कर दिया है कि मदर टेरेसा भारतीय नागरिक थीं, और वे अपने ही देश में हैं. इस बारे में कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.
1979 में मदर टेरेसा को नोबल शांति पुरस्कार दिया गया था और 1980 में भारत रत्न. 2003 में वेटिकन ने उन्हें संत का दर्जा दिया था. मदर टेरसा की संस्था मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी में फ़िलहाल साढ़े चार हज़ार सिस्टर्स काम करती हैं और यह संस्था 133 देशों में सक्रिय है.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे
संपादनः ओ सिंह