भूकंप के साल भर बाद नेपाल
25 अप्रैल 2015 की दोपहर, नेपाल में 7.8 तीव्रता वाले उस भूकंप ने करीब 9,000 लोगों की जिंदगी छीन ली. जो बच गए, वो आज भी स्तब्ध से हैं. ऐसा दिखता है नेपाल साल भर बाद.
सिरहीन स्तूप
नेपाल की राजधानी काठमांडू का बुद्धनाथ विश्व सांस्कृतिक विरासत है. यहां का स्तूप हिमालय आने वाले बौद्धों के लिए धार्मिक आस्था से भरा है. अप्रैल 2015 में आए भूकंप ने स्तूप के सिरे को ध्वस्त कर दिया. अब इसके पुर्ननिर्माण का काम चल रहा है.
मंदिर ध्वस्त
दरबार चौक भी यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर है. इस मंदिर को भी काफी नुकसान पहुंचा. ज्यादातर मंदिर ध्वस्त हो गए, जो बचे, उनकी हालत भी जर्जर है.
अवशेषों के बीच जिंदगी
भूकंप के बाद से ही काठमांडू के लोग इस तरह के हालात में जी रहे हैं. फिलहाल अतिआवश्यक चीजों को ही ठीक किया जा रहा है.
साल भर पहले का वो दिन
काठमांडू के पूर्व में बसे सिंधुपालचौक जिले ने खासतौर पर सबसे ज्यादा मार झेली. चौतारा के 15,000 लोगों को आज भी बहुत कम राहत मिली है, ऐसा लगता है जैसे भूकंप हाल ही में उनकी जिंदगी बर्बाद करके गया हो.
टेंट में अस्पताल
चौतारा में यह अस्पताल का इमरजेंसी रूम है. डॉक्टरों को हमेशा टेंट में ही ऑपरेशन करने पड़ रहे हैं. अस्पताल की पुरानी इमारत को इतना ज्यादा नुकसान पहुंचा है कि बड़े पैमाने पर पुर्ननिर्माण करना पड़ेगा.
शहर का यह मंजर
अब सिंधुपालचौक के ज्यादातर लोग ऐसे जीवन बिता रहे हैं. 80 फीसदी से ज्यादा घर भूकंप में तबाह हो गए. दूर दराज के इलाकों में भूचाल की मार झेलने वाले लोग भी यहीं आ गए हैं.
संक्रामक बीमारियां
केबिन एक दूसरे से सटे हुए हैं. लोगों को बड़ी संख्या में तंग जगहों पर रहना पड़ रहा है. ऐसे में सक्रांमक बीमारियां भी काफी आसानी से फैलती है.
खुद की मदद
भूकंप प्रभावित इलाकों के लोग सरकार से मायूस हो चुके हैं. अब वह खुद से जो कुछ बन रहा है, वह कर रहे हैं.
बेखबर खंडहर
सिंधुपालचौक के करीब सभी स्कूल या तो पूरी तरह ध्वस्त हो गए या कभी भी ढहने की कगार पर हैं. इक्का दुक्का स्कूल ही ऐसे हैं जिनकी मरम्मत मुमकिन है.
सर्दी और शोरगुल
पढ़ाई लिखाई का काम टिनशेडों या लोहे के केबिनों में हो रहा है. इनके भीतर कड़ाके की सर्दी और काफी ज्यादा शोरगुल बना रहता है.
मलबा ही मलबा
चलते फिरते समय हर वक्त इस बात का अहसास होता है कि साल भर पहले यहां क्या हुआ था. मलबा उस विनाशकारी भूकंप की लगातार गवाही देता है. थुलोसिरुबाड़ी के स्कूल का मैदान बीते एक साल से ऐसा दिखता है.
एवरेस्ट इलाके में कम नुकसान
खुम्बू इलाका भी भूकंप से प्रभावित तो हुआ लेकिन सिंधुपालचौक जैसी तबाही यहां नहीं हुई. इसके बावजूद इन इलाकों में बहुत कम सैलानी पहुंच रहे हैं.