भूटान की नसीहतः माया मोह छोड़ो, खुश रहो
२१ सितम्बर २०१०सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों पर बुलाए गए संयुक्त राष्ट्र के शिखर सम्मेलन में भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मी थिनले ने "पागलों की तरह" दौलत के पीछे भागने की प्रवृत्ति की निंदा की. इन देशों में भूटान के पडो़सी भारत और चीन भी शामिल हैं.
हिमालय की गोद में बसे भूटान में ज्यादा सुविधाएं नहीं है, लेकिन फिर भी वहां के लोग खुश रहते हैं. इसीलिए भूटानी प्रधानमंत्री इस आशावादी विचारधारा को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहते हैं. वह मानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र ने 2000 में जो आठ सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तय किए, वे सब खुशी से ही जुड़े हैं. थिनले के मुताबिक, "हो सकता हैं कि ये विकास लक्ष्य 2015 की निश्चित समयसीमा तक पूरे न हों, इसलिए मेरा प्रतिनिधिमंडल दुनिया के इस सबसे बड़े मंच से कहना चाहता है कि खुशी को भी नौंवे सहस्राब्दी विकास लक्ष्य में शामिल किया जाए."
ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) से ज्यादा ग्रॉस नैशनल हैप्पीनेस इंडेक्स पर चलने वाले भूटान को खुशी का यह पाठ मौजूदा नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के पिता और पूर्व नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगंचुक ने पढ़ाया. इसे आधिकारिक नीति के तौर पर अपनाया भी गया है. भौतिकवादी विकास की बजाय ग्रॉस नैशनल हैप्पीनेस के चार मापदंड हैं. सतत विकास, सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण और प्रोत्साहन, पर्यावरण का संरक्षण और अच्छा प्रशासन. साथ ही इसमें आर्थिक विकास की अनदेखी भी नहीं की जाती है.
सैकड़ों साल तक भूटान दुनिया से अलग थलग रहा, लेकिन अब वह दुनिया के जुड़ रहा है. भूटान में 1991 में ही टीवी प्रसारण की अनुमित दी गई. लेकिन हाल के सालों में वहां की अर्थव्यवस्था ने 8 प्रतिशत की सालाना दर से प्रगति की है. भूटान का कहना है कि वह ऐसी आर्थिक प्रगति चाहता है जिसका फायदा हर नागरिक को हो. भूटान की नीतियां सबको मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छ पहाड़ी माहौल प्रदान करती हैं. साथ ही देश की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बरकरार रखने के लिए भी कदम उठाए जाते हैं.
भूटानी प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में कहा, "यह समझने के लिए बहुत ज्यादा समझदारी की जरूरत नहीं है कि सीमित संसाधनों वाली इस दुनिया में भौतिकवादी वृद्धि के पीछे लगातार दौड़ते जाना और पर्यावरण को भी बचाए रखना, संभव नहीं है. यह खतरनाक और मूखर्ता है. चीन और भारत भारत भी अमेरिका की बराबरी करना चाहते हैं, लेकिन जरा सोचिए, अगर दुनिया का हर व्यक्ति इसी तरह लालची बनेगा, तो दुनिया का क्या होगा."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एन रंजन