भ्रष्टाचार की मार गरीबों पर
३ दिसम्बर २०१३भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाले संगठन ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक 70 प्रतिशत देशों में सरकारी अधिकारियों के साथ गंभीर परेशानी है. सर्वेक्षण जिन 177 देशों में किए गए उनमें ऐसा कोई भी देश नहीं जिसमें यह परेशानी न हो. संगठन के प्रमुख शोधकर्ता फिन हाइनरिष ने बताया कि सूची में सबसे भ्रष्ट देशों में गरीबों की हालत सबसे खराब है. हाइनरिष कहते हैं कि अगर इन देशों ने भ्रष्टाचार खत्म नहीं किया तो वह आर्थिक विकास में भी पिछड़ जाएंगे. सूची के सबसे आखिर में सोमालिया है. यहां की सरकार भी सही तरह से अपना काम नहीं कर पा रही और खाना, पानी जैसी सेवाओं के लिए लोगों को घूस देनी पड़ती है.
हाइनरिष का कहना है कि संघर्ष की वजह से भी भ्रष्टाचार बढ़ता है. अफगानिस्तान में भ्रष्टाचार को लेकर बेहतरी ना के बराबर है. हाइनरिष ने कहा, "पश्चिमी देशों ने सुरक्षा के साथ साथ वहां कानून का राज स्थापित करने में भी निवेश किया है, लेकिन पिछले कुछ सालों में हुए सर्वेक्षण बताते हैं कि वहां के लोग दुनिया में सबसे ज्यादा घूस देने वाली जनसंख्या में से हैं." उत्तर कोरिया में भी एक तानाशाही है और वहां से भाग रहे लोग बताते हैं कि भुखमरी की वजह से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. हाइनरिष के मुताबिक वहां खाना उसी को नसीब होता है जो पार्टी में किसी कार्यकर्ता को जानता हो.
इस बीच म्यांमार जैसे देशों की हालत में सुधार हुआ है. लोकतांत्रिक सरकार और कानूनी सुधारों की वजह से वहां के प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता बढ़ी है और जिम्मेदारी भी. ट्रांसपैरेंसी देशों को घटते भ्रष्टाचार के साथ 1 से 100 के बीच अंक देता है. इसके लिए विश्व बैंक, अफ्रीकी विकास बैंक और विश्व भर में शोध संगठनों से जानकारी ली जाती है. हालांकि ट्रांसपैरेंसी का खुद कहना है कि घूसखोरी गैर कानूनी है और इसके आंकड़े जुटाना आसान नहीं है.
रैंकिंग में अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया और सोमालिया के अलावा इराक, सीरिया, लीबिया, सूडान, दक्षिण सूडान और चाड सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं जबकि डेनमार्क, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स सबसे कम भ्रष्ट देशों में शामिल हैं. जर्मनी इस साल भी सबसे कम भ्रष्ट देशों के बीच शीर्ष दस में शामिल नहीं हो पाया. यहां के राजनीतिज्ञों का मानना है कि नई गठबंधन सरकार को पारदर्शिता पर और ध्यान देना होगा और इसे बढ़ाने के लिए नए ढ़ांचे तैयार करने होंगे. भारत की हालत पिछले साल जैसी ही है. 2012 की तरह इस साल भी भारत 94वें स्थान पर है.
एमजी/एनआर(एपी, एएफपी)