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भ्रष्टाचार से झल्लाई जर्मन कंपनियां

११ अगस्त २०१२

जर्मनी की राजनीतिक पार्टियों पर भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का दबाव पड़ रहा है. 30 से ज्यादा कंपनियों ने सरकार से अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधी समझौते को लागू करने की मांग की है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

नौ साल पहले संयुक्त राष्ट्र की भ्रष्टाचार निरोधी संधि (सीएससी) पर 160 देशों ने दस्तखत किये. समझौते के तहत हर देश भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करेंगे. समझौता यह भी कहता है कि दस्तखत करने वाले देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मिल जुल कर भ्रष्टाचार से लड़ेंगे.

भारत समेत कई देशों ने इसे 2011 में लागू किया. भ्रष्टाचार के मामले में भारत 95 नंबर पर है. जर्मनी में भारत की तुलना में भ्रष्टाचार बहुत कम है. वह 14वे स्थान पर है. दस्तखत करने वाले कई दूसरे देशों ने अब तक समझौते को लागू किया नहीं है. इनमें सऊदी अरब, सूडान, सीरिया और जर्मनी भी हैं. समझौते में बर्लिन की गैर मौजूदगी जर्मन कंपनियों को खल रही है. 30 से ज्यादा कंपनियों के प्रमुख सरकार पर संधि को संसद से पास करा कर लागू करने का दवाब बना रहे हैं.

अधिकारियों ने जर्मनी की हर राजनीतिक पार्टी के बड़े नेताओं को पत्र लिखा है. सत्ताधारी गठबंधन की पार्टी सीडीयू और एफडीपी के साथ विपक्ष की एसपीडी, ग्रीन और लेफ्ट पार्टी को खत भेजा गया है. निजी कंपनियां जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग से भी सीएससी को जल्द से जल्द स्वीकार करने की मांग कर रही हैं.

Deutschland Geschäftsführer von Transparency International Christian Humborg
तस्वीर: picture-alliance/dpa

चिट्ठी में कहा गया है, "इससे लागू करने में नाकामी से जर्मन कारोबार की प्रतिष्ठा आहत हुई है." पत्र लिखने वालों में जर्मनी की कुछ सबसे बड़ी कंपनियां हैं. इनमें डॉयचे बैंक, कॉमर्ज बैंक एंड अलायंज, सीमेंस, डॉयचे टेलीकॉम, कार निर्माता डायम्लर, गैस कंपनी लिंडे, दवा कंपनी बायर, ऊर्जा कंपनी इयोन और खुदरा कारोबार करने वाला मेट्रो ग्रुप शामिल है.

फ्रैंकफर्ट स्कूल ऑफ फाइनेंस एंड मैनेजमेंट में भ्रष्टाचार और नियम पालन के विशेषज्ञ युर्गेन पाउथनेर इसे जरूरी बताते हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में पाउथनेर ने कहा, "कंपनियों की, हर व्यक्ति की और पूरे देश की विश्वसनीयता ऐसे नियमों और उनके पालन से बहुत ज्यादा आर्थिक तौर पर जुड़ी रहती है."

उनके मुताबिक नेताओं का रिश्वत से दूर रहना नियम पालन का एक अहम पहलू है, "जर्मनी जैसा एक लोकतांत्रिक देश के पास अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता होनी ही चाहिए और इसे खुद को बेवजह आलोचना का विषय नहीं बनाना चाहिए." उनके मुताबिक सीएसी के भ्रष्टाचार निरोधी नियम अन्य देशों में जर्मन कंपनियों के व्यापार में मदद करेंगे.

भ्रष्टाचार का विरोध करने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने जर्मन कारोबारियों की चिट्ठी का स्वागत किया है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशलन जर्मनी के निदेशक क्रिस्टिआन होमबुर्ग ने कहा, "यह अच्छा है कि वे ऐसे विषय पर साथ आए हैं जिसे ट्रांसपेरेंसी कई सालों से उठा रही है. जर्मनी में संसद सदस्यों को रिश्वत देने का अपराध करने वाले तत्वों को कसा जाना चाहिए ताकि जर्मनी अहम अंतरराष्ट्रीय समझौत को लागू कर सके."

नौ साल पहले जब सीएसी बना, तब जर्मनी ने इस पर दस्तखत किये. लेकिन संसद ने अभी तक इसे पास नहीं किया है. इसका कारण सीएसी के कड़े नियम भी हो सकते हैं. एक नियम के मुताबिक जनप्रतिनिधि अगर घूस लेते हुए पकड़े गये तो उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी होगी. फिलहाल जर्मनी में नेताओं का वोट खदीरना या बेचना अपराध है. लेकिन यह बुंडेस्टाग के प्राथमिक चरणों या समितियों की बैठक में ही होता है.

जर्मनी के भ्रष्टाचार कानून की अपनी सीमाएं हैं. पार्टी कार्यसमिति को दिये गए जनप्रतिनिधियों के सुझाव कानून के दायरे में नहीं आते. अब तक अगर कोई सदस्य वर्किंग ग्रुप में वोटों को प्रभावित करने के लिए रिश्वत का सहारा लेता है तो यह गैरकानूनी नहीं है. हुमबोर्ग को लगता है कि कार्रवाई से बचने के लिए ही जर्मन नेता संधि को लागू नहीं कर रहे हैं.

लेकिन इस बार कारोबारियों ने कुछ ज्यादा ही दबाव डाल दिया है. उद्योगपतियों की चिट्ठी में नेताओं से अंतरात्मा की आवाज सुनने को कहा गया है. नेताओं के स्वाभिमान को ललकारते हुए पूछा गया है, "ईमानदारी से चुने गये अधिकारियों को सख्त नियमों से डरने की जरूरत नहीं है."

अप्रैल में काउंसिल ऑफ यूरोप ग्रुप ऑफ स्टेट्स अंगेस्ट करप्शन (जीआरईसीओ) ने जर्मनी से कहा कि वह जून अंत तक भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून मजबूत करे. लेकिन जून बीत गया, नेताओं के कान में जूं तक नहीं रेंगी. अब जीआरईसीओ एक आयोग को बर्लिन भेजने वाला है ताकि नेताओं पर दबाव बढ़ाया जा सके.

रिपोर्टः आर्न्ड रीकमान/ओ सिंह

संपादनः एन रंजन

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