मजदूरों की मुश्किल
२३ अक्टूबर २०१३रूस और पूर्व सोवियत संघ के सदस्य रहे किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान में हजारों मजदूर ब्लैक सी रिसॉर्ट के चारों ओर पसीना बहा रहे हैं ताकि अगले साल 7 फरवरी को खेलों की शुरूआत हो तो कोई कमी न रहे. सोची में प्रवासी मजदूरों को मुफ्त कानूनी सहायता देने वाले संगठन मेमोरियल से जुड़े सेम्योन सिमोनोव का कहना है, "हर गुजरते दिन के साथ मजदूरों की शिकायतें बढ़ रही हैं, इसके साथ ही अधिकारियों का दमन भी बढ़ता जा रहा है." नई अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष थॉमस बाख अक्टूबर के आखिर में पहली बार सोची के दौरे पर जा रहे हैं. पिछले महीने ही थॉमस बाख का इस पद के लिए चुनाव हुआ. समोनोव ने उम्मीद जताई है कि बाख मजदूरों के अधिकारों के मसले को रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के सामने उठाएंगे.
"मुझे बच्चे का खर्च उठाना है"
रोमन कुजनेत्सोव को जब उनके बाकी साथियों की तरह ही कंपनी से कई महीने तक पैसा नहीं मिला तो अपनी मांग तेज करने के लिए उन्होंने एक अनोखा कदम उठाया. कजाकिस्तान की सीमा पर बसे रूसी शहर ओरेनबुर्ग के इस मजदूर ने अपना मुंह सिल लिया और सोची प्रेस सेंटर के सामने एक तख्ती लेकर खड़ा हो गया जिस पर लिखा था, "मुझे अपने बच्चे का खर्च उठाना है." कुजनेत्सोव के दोस्त किरिल कुजमुक ने बताया कि कुछ ही देर बार कुजनेत्सोव को गिरफ्तार कर लिया गया. कुजमुक ने स्थानीय अखबार कोमोसोल्सकाया प्रावदा ने कहा, "यहां की हालत देख कर हम हैरान हैं."
सिम्यूनोव ने समाचार एजेंसी डीपीए से कहा, "निराशा में उठाए इस कदम के जरिए उसने सोची की बड़ी समस्याओं की तरफ लोगों का ध्यान खींचा है." कुजनेत्सोवा रूसी नागरिक हैं और अवैध तरीके से काम पर रखे प्रवासी मजदूरों की तुलना में उनकी स्थिति थोड़ी बेहतर है. प्रवासी मजदूरों को तो महज पेट भरने लायक ही मजदूरी मिल रही है. निर्माण कंपनियां अपने कर्मचारियों को महीनों तक भुगतान नहीं करने के लिए जानी जाती हैं. ये कंपनियां मजदूरों के पासपोर्ट और दूसरे कागजात भी अपने पास रख लेती हैं ताकी उन्हें ब्लैकमेल कर सकें. अपनी दुर्दशा के बारे में शिकायत करने वाले मजदूरों को आमतौर पर उनके देश वापस भेज दिया जाता है.
प्रति घंटे दो यूरो
मानवाधिकार कार्यकर्ता सोची के हालत की तुलना कतर से करते हैं. कतर में 2022 में वर्ल्ड कप होना है और उसकी तैयारियों में लगे मजदूरों की हालत पर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी हो हल्ला मचा है. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक सोची में मजदूरों को प्रति घंटे दो यूरो से भी कम का वेतन मिल रहा है और उन्हें एक शिफ्ट में 12 घंटे तक मजदूरी करनी पड़ती है और बीच में खाने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिलता. एक परिवार के रहने लायक घर में 200 से ज्यादा लोगों को रखा गया है और वह भी बहुत बुरी हालत में. मजदूरों पर बहुत ज्यादा दबाव है. ऐसी रिपोर्टें हैं कि प्रदर्शन करने वाले लोगों को कड़ी सजा मिलती है. इसके अलावा "समलैंगिक दुष्प्रचार" पर पाबंदी के कारण रूस की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हो रही है. रूस पर लोकतांत्रिक सिद्धांतों को तोड़ने और हालत सोवियत युग से भी बुरी स्थिति में पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं.
इस बीच पर्यावरणवादियों ने दावा किया है कि ब्लैक सी रिसॉर्ट के आस पास पर्यावरण का बहुत ज्यादा नुकसान किया जा रहा है. 2014 के खेलों के लिए निर्माण का सारा काम इसी जगह हो रहा है. रूस अब तक इन आलोचनाओँ को अंदरूनी मामले में दखल कह कर खारिज करता रहा है. राजनीतिक विश्लेषक एलेक्सेई माकार्किन ने 2008 में चीन के ओलंपिक खेलों का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका मानना है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की अपील का कोई असर नहीं होगा.
एनआर/आईबी (डीपीए)