ममता की जीत पर जर्मन अखबार
२१ मई २०११भारत के पश्चिम बंगाल चुनावों में ममता बैनर्जी ने वह जीत हासिल कर ली जिसके कई नेताओं ने सपने देख रखे थे. तृणमूल कांग्रेस की 56 साल की मुखिया ममता ने 34 साल से सत्ता पर बैठी कम्युनिस्ट पार्टी को उनके गढ़ से उखाड़ फेंका. बर्लिनर त्साइटुंग लिखता है
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ममता बैनर्जी की जीत का स्वागत किया है क्योंकि वह अब तक केंद्र में रेल मंत्री रही हैं. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि मनमोहन सिंह की खुशी कितनी देर टिकी रहेगी क्योंकि ममता बैनर्जी कड़वाहट भरी प्रांतीय नेता हैं जो पहले तो कांग्रेस के साथ थी लेकिन फिर उससे पीठ भी कर ली. उनकी नाराजगी गांधी परिवार की राजनैतिक विरासत से है जो पार्टी को एक फैमिली बिजनेस की तरह चला रही है. मेहनती, बुद्धिमान नेता जो किसी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते उन्हें कभी ऊपर आने का मौका नहीं मिलता है.
समाजवादी नौएस डॉयचलांड अखबार कहता है, उन्हें पार्टी के लोग दीदी कहते हैं. दीदी बड़ी बहन को कहा जाता है. 56 साल की कुंवारी, रग रग से नेता है. इस क्रोधित नेता ने कई साथी सांसदों की नींव हिला दी है. लगता है कि ममता के लिए राजनीति ही उनका परिवार है.
मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार से आई बैनर्जी ने इतिहास, शिक्षा शास्त्र और कानून में ग्रेजुएशन किया है. राजनीति में करियर उन्होंने 1970 में कांग्रेस के छात्र संगठन के साथ शुरू किया. 1997 में वह कांग्रेस से अलग हो गई क्योंकि कांग्रेस वामपंथी पार्टी के लिए संवेदनशील थी. सिर्फ चुनावी रैलियों में ही वह गांवों के गरीबों और किसानों के लिए नहीं खड़ी हुईं उन्होंने हर एक लिए लोकतंत्र, चावल और नौकरी का वादा किया लेकिन साथ ही उद्योगों और निवेशकों का भी ध्यान रखने का वादा किया. वह कोलकाता को लंदन और दार्जिलिंग को भारत का स्विटजरलैंड बनाएंगी.
यही ममता न तो किसी प्रभावशाली अमीर परिवार से आती हैं और न ही किसी बड़े संगठन से हैं, हालांकि यह भारत के लोकतंत्र में फायदा करता है. उनका अपनी मां से भी साधारण संबंध है. बर्लिनर टागेसत्साइटुंग लिखता है
2007 में वह अचानक मशहूर हुईं जब उन्होंने टाटा के कार कारखाने के विरोध में किसानों का साथ दिया. ममता ने वामपंथियों को पीछे धकेल दिया. जब 2008 में टाटा पीछे हट गए तो इसका ठीकरा सीपीआईएम के सिर फूटा. बैनर्जी पहले तो केंद्र सरकार में रेल मंत्री बनी क्योंकि कांग्रेस को उनके टेके की जरूरत थी. हालांकि रेल मंत्री के तौर पर वह कुछ नहीं कर पाई बस रेल और घाटे में चली गई. यह साफ नहीं है कि वह कैसे पश्चिम बंगाल में उद्योग और खेती दोनों को एक साथ मजबूत करने का वादा पूरा करेंगी. लेकिन पश्चिम बंगाल के लोग मगरूर वामपंथियों की बजाए दीदी के साथ अपना भविष्य दांव पर लगाना चाहते हैं.
पाकिस्तान के बारे में समाचार पत्रिका श्पीगेल लिखती है कि पाकिस्तान दो मई से दो हिस्सों में बंट गया है. एक हिस्सा जो कि बहुमत है, वह उत्तेजित है और बिन लादेन की एबटाबाद में छिपने की कहानी को अमेरिकी झूठ मानता है और दूसरे गुस्साए हुए हैं. वह बिन लादेन की मौत पर शोक तो नहीं कर रहे लेकिन पाकिस्तानी सेना और ताकतवर आईएसआई की प्रतिष्ठा गिरने से नाराज हैं.
वे कहते हैं कि एक संप्रभु और परमाणु हथियारों से संपन्न देश पाकिस्तान को यही पता नहीं था कि उनकी जमीन पर अमेरिकी कंमाडो कार्रवाई कर रहे हैं या फिर सरकार को इस बारे में पता तो था लेकिन वह मानने को तैयार नहीं हैं. एबटाबाद में सेना और उग्रवादी एक साथ रह रहे थे ऐसा पाकिस्तान में और कहीं नहीं है. एक बात को लेकर बिन लादेन के विरोधी और समर्थक सहमत हैं कि सेना जो कि देश का गर्व है, वह विफल रही.
जांचकर्ताओं का कहना है कि लादेन के घर से मिले पांच कंप्यूटर, 110 डीवीडी और यूएसबी स्टिक बहुत अहम हैं. इनके जरिए न केवल आतंकी संगठन की आंतरिक संरचना की जानकारी मिलेगी बल्कि अल कायदा के सदस्यों के फोन नंबर और नाम भी मिलेंगे.यह कहना है फोकस पत्रिका का.
अमेरिकी सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक कुल 2.7 टेराबाइट का डेटा मिला है. यह 22 करोड़ पन्नो के पुस्तकालय के बराबर है. सीआईए का कहना है कि अब तक जांचे गए डिजिटल डेटा मुताबिक बिन लादेन को अमेरिका पर फिर से किसी तरह हमला करने का जुनून था. 11 सितंबर के दस साल पूरे होने पर उसने बड़े आतंकी हमले की मांग की थी वह भी अमेरिका में दबाए गए अल्पसंख्यकों के नाम पर. खासकर एफ्रो अमेरिकी और लातिन लोगों को इसमें शामिल किया जाना था. साथ ही हार्ड डिस्क में एक और राज भी था और वह था आधुनिक पोर्न फिल्मों का कलेक्शन.
शिकागो में पाकिस्तानी और कनाडा के व्यापारी पर मुकदमा शुरू हुआ है जो मुंबई हमलों में शामिल बताया जाता है. दो होटलों एक कैफे और यहूदी केंद्र पर हुए हमले में 166 लोग मारे गए थे. फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग लिखता है
हालांकि किसी मुख्य व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चल रहा है लेकिन मुकदमा बहुत विस्फोटक है क्योंकि सरकारी वकील लश्कर ए तैयबा और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के अधिकारियों की मुबंई हमलों में भागीदारी साबित करना चाहते हैं. ऐसे दो लोगों पर भी आरोप लगाए गए हैं जिनकी पहचान अमेरिका ने पाकिस्तानी अधिकारियों के तौर पर की है. इस मामले के संकेत मिलता है कि अमेरिका पाकिस्तान पर ज्यादा दया नहीं दिखा रहा. अप्रैल के अंत में उन्होंने आरोप सार्वजनिक किए और उसमें आईएसआई नाम का इस्तेमाल करने से परहेज किया. हालांकि इसके बावजूद इस्लामाबाद सरकार इस मुकदमे के कारण होने वाली शर्मिंदगी से नहीं बच सकी है.
प्रेस समीक्षाः अना लेहमान/आभा एम
संपादनः प्रिया एसेलबॉर्न