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मलयेशिया ने चुना रियालिटी शो में यंग इमाम

३१ जुलाई २०१०

टेलीविजन शो पर बाकायदा लंबी प्रतियोगिता और 10 हफ्तों की कवायद के बाद मलयेशिया में यंग इमाम चुन लिया गया. शुक्रवार को 26 साल के असीरफ को ताज पहनाया गया. मलयेशिया में इस शो ने लोकप्रियता के रिकॉर्ड तोड़ दिए.

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तस्वीर: AP

मोहम्मद असीरफ मोहम्मद रिजवान ने आखिरी दौर में 27 साल के हिजबुर रहमान उमर जुहदी को पछाड़ दिया और आखिरकार इस मुकाबले को जीत लिया. लगातार 10 हफ्तों तक इसमें से एक एक कर प्रतियोगी निकलते गए और मुकाबला सख्त होता गया.

मुकाबला जीतने के बाद असीरफ ने कहा, "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. मैं अपने माता पिता, अपनी पत्नी और अपने गांव वालों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, जिनकी वजह से मैं यहां तक पहुंच पाया." काले रंग के सूट के ऊपर उन्होंने काला चोगा पहन रखा था.

मलयेशिया के इस्लामी टेलीविजन चैनल ऐस्ट्रो ओएसिस पर इस कार्यक्रम के फाइनल का सीधा प्रसारण किया गया. असीरफ को जैसे ही विजेता घोषित किया गया, उन्होंने अपने मुकाबिल को गले में भर लिया. इसके बाद असीरफ को सफेद रंग की टोपी पहनाई गई.

Malaysia Imam Muda Casting Show
मुख्य जज हसन महमूद अल हफीजतस्वीर: AP

इंडियन आइडल, बिग बॉस और इस तरह के चर्चित रियालिटी शो की तरह मलयेशिया में इमामों का रियालिटी शो हुआ, जिसमें 10 लोगों ने हिस्सा लिया. उन्हें इस्लाम धर्म के बारे में लिखित परीक्षाएं और दूसरे टेस्ट देने पड़ते थे. कुरान की आयतों की तिलावत और कुर्बानी के तरीकों तक पर उनका टेस्ट लिया गया. हर हफ्ते एक एक कर प्रतियोगी बाहर होते गए. मई में शुरू हुआ यह मुकाबला इस कदर दिलचस्प हो गया कि दुनिया भर में इसकी चर्चा होने लगी.

इमामों का काम मस्जिदों में नमाज पढ़ाने के अलावा कई दूसरे धार्मिक कर्मकांडों को पूरा करना होता है. इसमें शादी के वक्त निकाह पढ़ाना, जानवरों की कुर्बानी करना और मौत के बाद जनाजे की नमाज पढ़ाना भी शामिल है. मलयेशिया में लगभग तीन करोड़ की आबादी है, जिसमें 60 फीसदी मुसलमान हैं. दुनिया भर में चर्चा के बाद यंग इमाम नाम का यह शो बेहद लोकप्रिय हो गया और इसके आयोजक कामयाबी पर खुश हैं.

आम तौर पर इमाम बुजुर्ग मौलवी हुआ करते हैं लेकिन इस शो के जरिए युवाओं को इस्लाम धर्म की ज्यादा जानकारी देने का लक्ष्य रखा गया था. लगभग 1000 आवेदनों में से 10 प्रतियोगियों को चुना गया, जिनका हर हफ्ते टेस्ट होता रहा. उन्हें एक मस्जिद के अंदर ही रहना था और मोबाइल फोन से लेकर इंटरनेट और टेलीविजन देखने तक पर पाबंदी थी.

असीरफ ने कहा कि मुकाबला जीतने के बाद उसका पहला उद्देश्य एक यंग इमाम क्लब बनाना है. उन्होंने कहा, "इस मुकाबले का उद्देश्य निजी जीत नहीं, बल्कि समाज और इस्लाम की जीत हासिल करना है. इसकी वजह से युवा वर्ग धर्म के नजदीक आया है." मुकाबला जीतने के बाद असीरफ को हज के लिए मक्का भेजा जाएगा. उन्हें सऊदी अरब की अल मदीना यूनिवर्सिटी में एक वजीफा मिलेगा और बाद में मस्जिद में इमाम नियुक्त किया जाएगा.

इस मुकाबले का आयोजन ऐसे वक्त में हुआ है, जब मलयेशिया में चीनी और भारतीय मूल के लोगों ने चिंता जताई है कि देश में इस्लाम को लेकर सख्ती बरती जा रही है. उनका आरोप है कि बहुसंस्कृति वाले समाज का इस्लामीकरण करने की योजना बनाई जा रही है. हाल ही में अल्लाह शब्द को लेकर भी वहां विवाद हुआ था और इस्लाम से बाहर इसके इस्तेमाल पर बखेड़ा खड़ा हो गया था.

रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल

संपादनः उ भट्टाचार्य