मलेरिया से शुरू करनी होगी नई जंग
३ नवम्बर २०१२मलेरिया को काबू में करने की ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय कोशिशें अफ्रीका में ही सिमटी हैं. हर साल करीब साढ़े छह लाख लोग यहां मलेरिया के शिकार होते हैं और इस तरह से यह बीमारी यहां महामारी की तरह फैली हुई है. हालांकि जिन 3.3 अरब लोगों के इस बीमारी की चपेट में आने का खतरा है उनमें से 2.5 अरब लोग अफ्रीकी इलाके से बाहर के हैं. इनमें ज्यादातर एशिया में रहते हैं. सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि बीमारी के उपचार की ज्यादातर दवाएं अब धीरे धीरे नाकाम साबित हो रही हैं. मलेरिया के मच्छरों में उसे रोकने की दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती जा रही है.
सिडनी में इसी हफ्ते मलेरिया पर बड़े वैज्ञानिकों और सेहत से जुड़े जानकारों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ. इस दौरान मलेरिया पर काबू के लिए सख्त राजनीतिक नेतृत्व और क्षेत्रीय सहयोग को जरूरी बताया गया. मलेरिया से लड़ने के लिए रोल बैक मलेरिया नाम से एक अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा है. अभियान की निदेशक फातुमाता नाफो ट्राओरे ने एशिया पर फिर से ध्यान देने की मांग की और बताया कि अफ्रीका के बाद यह क्षेत्र इस बीमारी का दूसरा सबसे बड़ा घर है.
ट्राओरे के मुताबिक, "लगातार चली आ रही आर्थिक अस्थिरता और विकास के लिए मिल रही सहायता में बदलाव को देखते हुए इस इलाके को सख्त राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत है.
रोल बैक मलेरिया ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिल कर एशिया, प्रशांत, अमेरिका, मध्यपूर्व और यूरोप में मलेरिया को काबू में करने पर एक खास रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दो अरब से ज्यादा लोग एशिया प्रशांत क्षेत्र में मलेरिया के खतरे से जूझते हैं. अमेरिका में यह संख्या 16 करोड़ और मध्यपूर्व में 25 करोड़ है. 2010 में अफ्रीका से बाहर करीब 3.4 करोड़ मलेरिया के मरीज सामने आए. इनमें 46000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. एशिया प्रशांत में कुल 20 ऐसे देश हैं जहां मलेरिया महामारी की तरह फैली हुई है. मलेरिया की चपेट में आने वाले 80 फीसदी और मरने वालों में 91 फीसदी लोग इन्हीं देशों के हैं. भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, म्यांमार और पापुआ न्यू गिनी इनमें सबसे ऊपर हैं.
सिडनी सम्मेलन में शामिल हुए अमेरिका के विदेश मंत्री बॉब कार ने अगले चार सालों में एशिया प्रशांत में मलेरिया से लड़ने के लिए 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद देने का एलान किया है. सम्मेलन में मलेरिया को रोकने वाली दवाइयों के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने पर खास ध्यान था. प्रतिरोधक क्षमता का पता कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम में चला है और रिपोर्ट कहती है कि हाल के वर्षों में जो मलेरिया के खिलाफ कामयाबी मिली है वह इसकी वजह से धूल में मिल सकती है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मलेरिया से प्रभावित 43 देशों में मलेरिया के मामलों में 2000 के मुकाबले 50 फीसदी की कमी आई है. इस प्रगति के बावजूद अब भी हर साल 21.6 करोड़ लोग पूरी दुनिया में मलेरिया के शिकार हो रहे हैं और करीब 6.5 लाख लोगों की हर साल मलेरिया के कारण मौत हो जाती है. इनमें से ज्यादातर अफ्रीका के बच्चे हैं जिनकी उम्र 5 साल से कम है.
एनआर/एमजे (एएफपी)