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मसाला फ़िल्मों में दिलचस्पी नहीं हैः अभय देओल

१६ फ़रवरी २०१०

बर्लिनाले में देव बेनेगल की फ़िल्म 'रोड, मूवी' को दर्शकों ने हाथों हाथ लिया. फ़िल्म में अभय देओल, तनिष्ठा चैटर्जी, और सतीश कौशिक ने काम किया है. बर्लिन में सचिन गौड़ ने अभय देओल से उनके करियर के बारे में लंबी बात की.

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आम ज़िंदगी के किरदार ही करना चाहते हैं अभयतस्वीर: AP

'रोड, मूवी' में आपने विष्णु का क़िरदार निभाया. कैसा अनुभव था इस फ़िल्म में काम करना और फ़िल्म में अपने रोल के बारे में भी बताइए.

विष्णु एक एडवेंचरस लड़का है. वह छोटे शहर में पला बढ़ा है लेकिन उसके बड़े ख़्वाब हैं. वह सीधा सादा है लेकिन जब उसे एडवेंचर का मौक़ा मिलता है तो वह उसे स्वीकार कर लेता है. ट्रक से यात्रा पर निकल पड़ता है जहां जीवन के कई पहलुओं से वह दो चार होता है. फ़िल्म के निर्देशक देव बेनेगल ने भी मेरा उत्साह बढ़ाया और चरित्र को अच्छे से समझने और उसमें अपना इनपुट डालने के लिए प्रोत्साहित किया.

विष्णु इस फ़िल्म में एक यात्रा पर निकल पड़ता है. फ़िल्म पूरी होने के बाद निजी तौर पर और प्रोफ़ेशनली आपने क्या महसूस किया. अपने या ज़िंदगी के बारे में कुछ नया जानने को मिला?

Berlinale 2010
बर्लिनाले में निर्देशक देव बेनेगल के साथ अभय देओलतस्वीर: DW

हर फ़िल्म में ऐसा होता है. इसलिए एक्टिंग मुझे पसंद है क्योंकि ये प्रोफ़ेशन ही ऐसा है कि आप ख़ुद से सवाल पूछ ही लेते हैं कि अगर मैं होता तो इस स्थिति में क्या करता. फ़िल्म करने से आपकी सोच का दायरा बढ़ जाता है, अलग अलग क़िरदारों, लोगों और अनुभव के बारे में. हर फ़िल्म के बाद मुझे लगता है कि मैं कुछ और परिपक्व हुआ हूं.

सोचा न था, मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर, एक चालीस की लास्ट लोकल, देव डी और अब रोड, मूवी. कुछ हट कर फ़िल्में करने में ही आपको दिलचस्पी है. इसकी कोई ख़ास वजह?

यह तो मैंने ख़ुद ही चुना है. मुझे हमेशा वह स्क्रिप्ट अच्छी लगती है जिसमें कुछ ओरिजनल हो. कुछ ऐसा जो मैंने पहले कभी देखा न हो. साथ ही जब मैं कोई स्क्रिप्ट पढ़ता हूं तो मेरी कोशिश होती है कि उस क़िरदार से ख़ुद को जोड़ कर देख सकूं. अगर वास्तविकता हो तो फिर दर्शकों को भी फ़िल्म देखना अच्छा लगता है.

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बर्लिन में लगा है फ़िल्मों का मेलातस्वीर: AP

कभी लार्जर दैन लाइफ़ वाली लव स्टोरी, जिसके लिए बॉलीवुड जाना जाता है, उसमें काम करने का मन नहीं किया?

मैं ओरिजनल फ़िल्में करना चाहता हूं जबकि बॉलीवुड फ़िल्में फ़ार्मूला के साथ ही चलती हैं. मुझे लार्जर दैन लाइफ़ जैसे क़िरदार निभाने में दिलचस्पी नहीं है. मैं असल ज़िंदगी जैसे रोल करना चाहता हूं. लेकिन इतनी कोशिश रहती है कि फ़िल्म से दर्शकों का मनोरंजन ज़रूर होना चाहिए. इसलिए मैंने देव डी और ओए लक्की, लक्की ओए में काम किया.

'देव डी' आधुनिक देवदास की कहानी के रूप में पेश की गई. इमोशनल अत्याचार गाना आजकल के युवाओं की भाषा में अभिव्यक्ति थी. क्या फ़िल्म बनाते समय उम्मीद थी कि युवा पीढ़ी को इतना अपील करेगी यह फ़िल्म?

पूरी यूनिट को विश्वास था कि यह फ़िल्म ज़रूर चलेगी. इमोशनल अत्याचार गाने के बारे में सब मान कर चल रहे था कि यह हिट रहेगा. 80-90 साल पहले लिखा गया उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है. भारत में उदारीकरण के बाद लोगों के पास काफ़ी पैसा है जिससे कुछ युवा ग़लत रास्ते पर भी जा रहे हैं. हमने यही सोचा कि क्यों न इसे आज के ज़माने के देवदास के रूप में पेश किया जाए.

फ़िल्मों में काम करने की वजह दर्शकों के साथ जुड़ना हो सकती है, अलग विषयों को पर्दे पर दिखाना हो सकती है. आपके एक्टर बनने की वजह क्या रही?

फ़िल्मों में काम करने में मेरी शुरू से दिलचस्पी थी, लेकिन मैंने अपने आप को रोका. मेरे परिवार में बहुत लोग फ़िल्मों में है और सब मान कर चल रहे थे कि मैं भी इस लाइन में आऊंगा. 10-11 साल की उम्र से ही मैंने विदेशी निर्देशकों की फ़िल्में देखी. जैसे स्टेनली क्यूबरेक, टैरी गिलियम का काम मुझे प्रेरणादायी लगा तो पीटर सैलर्स और जैक निकलसन का अभिनय पसंद आया. इन्हीं से प्रेरणा लेकर मैंने विभिन्न भूमिकाओं के ज़रिए अपने व्यक्तित्व को और जानने के लिए फ़िल्मों में क़दम रखा.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की फ़िल्में सराही जा रही हैं. नए निर्देशक हैं जो अलग विषयों पर फ़िल्में बना रहे हैं. कलाकारों को नई भूमिकाएं करने को मिल रही हैं. इस बदलाव पर आपकी क्या राय है?

अच्छा तो लगता है. भारतीय फ़िल्मों का दायरा बढ़ रहा है लेकिन यह बदलाव धीरे धीरे आ रहा है. ऐसा नहीं है कि सब कुछ एकदम से बदल गया है. बॉलीवुड फ़िल्मों के बारे में अन्य देशों के लोग जानना चाहते हैं लेकिन कहानी से ख़ुद को जोड़ कर नहीं देखते. अगर बॉलीवुड को विश्व मंच पर और आगे जाना है तो हमें भी वैसे ही विषय उठाने होंगे जिन पर दूसरे देशों में फ़िल्में बन रही हैं. जिन कहानियों का कथानक वैश्विक हो, जो सभी दर्शकों को अपील करे. अगर ऐसा होता है तो फिर हमें नए दर्शक ज़रूर मिलेंगे.

किस फ़िल्म में अभय देओल वैसे ही क़िरदार के रूप में सामने आए हैं जैसे वह निजी ज़िंदगी में हैं? अगर नहीं तो अभय देओल असल जीवन में कैसे हैं?

हर कैरेक्टर जो मैंने पर्दे पर उतारा है, उसमें मेरे व्यक्तित्व के कुछ पहलू ज़रूर हैं. 'ओए लक्की लक्की ओए' में मैंने एक महत्वाकांक्षी युवक की भूमिका निभाई है. असल ज़िंदगी में भी मैं महत्वाकांक्षी हूं. 'देव डी' फ़िल्म में मैं पारो के लिए ऑब्सेसिव था. बचपन में मैं भी बहुत ज़िद्दी रहा हूं. 'रोड, मूवी' में विष्णु एक सीधा सादा लड़का है लेकिन वह चाहता है कि उसकी ज़िंदगी में कुछ नया हो. इससे मैं ख़ुद को जोड़ कर देख पाया. तो मेरा व्यक्तित्व झलकता ज़रूर है भूमिकाओं में. अगर मुझे कोई एक क़िरदार ही चुनना है तो मैं 'मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर' कहना चाहूंगा.

संपादनः ए कुमार