महंगाई से बचें भारत और चीन: लागार्द
७ जुलाई २०११अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की नई प्रमुख ने कहा कि भारत और चीन जैसी आर्थिक तरक्की ज्यादातर देशों में नहीं दिखाई पड़ रही है. लेकिन दोनों एशियाई देशों को अपने आर्थिक विकास पर इतराने से बचना चाहिए. लागार्द ने नई दिल्ली और बीजिंग को महंगाई को नियंत्रित करने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि महंगाई और आर्थिक विकास की गर्मी कहीं दोनों को झुलसा सकती है.
दूसरी तरफ आर्थिक संकट में उलझे देशों के सामने राजस्व घाटे के अलावा बेरोजगारी और आर्थिक असमानता की चुनौतियां भी खड़ी हैं. फ्रांस की पूर्व वित्त मंत्री के मुताबिक, "कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि वैश्विक मंदी अब भी जारी है. विकास की संभावनाओं के बावजूद कई देशों में तरक्की नहीं हो सकी है. देखने वाली बात है कि ऐसे देशों में बेरोजगारी की दर काफी ऊंची बनी हुई है, इसलिए आर्थिक जगत के खिलाड़ियों को अभी काफी कुछ करने की जरूरत है."
पद संभालने के बाद पहली बार पत्रकारों को संबोधित कर रही लागार्द ने उम्मीद जताई कि 2011 और 2012 में वैश्विक अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती रहेगी, "साफ तौर पर हम वापसी करने जा रहे हैं. हालात सुधर रहे है और बेहतर हो रहे हैं. लेकिन वापसी आसान है. कुछ देशों के लिए भविष्य की विकास दर 4.5 फीसदी दिखती है तो भारत और चीन इससे कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं."
ऐसा नहीं है कि आर्थिक मुश्किलें सिर्फ स्पेन, पुर्तगाल, ग्रीस और आयरलैंड के सामने हैं. ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश भी डगमगाते हुए खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं. लागार्द के मुताबिक इस तरह का असमानता मुश्किल खड़ी कर सकती है.
"साफ तौर पर दो श्रेणियों में बंटी हुई यह स्थिति भिन्न भिन्न मुद्दों को उठाती है. कई जगहों पर धन, मार्गदर्शन और सुझाव दिए जाने की जरूरत है. मदद के साथ जरूरी होने पर सवाल भी पूछने होंगे. एक श्रेणी में राजकीय कर्ज आता है, जिससे जापान से लेकर अमेरिका तक की विकसित अर्थव्यवस्थाएं जूझ रही हैं. यूरो जोन और खासकर ग्रीस जैसे देशों को केंद्र में रखना है."
दूसरी तरफ महंगाई के थपेड़े खाते हुए भारत और चीन हैं. तीसरा मोर्चे पर गरीब देश हैं, जिन्हें बाहर से जरूरी सामान आयात करने में भारी मुश्किल हो रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन की कीमतों में लगी आग ने भी गरीब देशों की हालत बुरी कर दी है. वहां कृषि उत्पाद महंगे होने लगे हैं. तेल के दाम की वजह से सरकारी खजाना खाली होता जा रहा है. आयात सस्ता करने के लिए टैक्स घटाए जा रहे हैं, जिसके चलते राजस्व भी कमी हो रही है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल