महिला संस्था में ईरान, सऊदी अरब एक मजाक
१० नवम्बर २०१०बुधवार को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में ये देश चुने जाएंगे. न्यूयार्क में यूएनओ के मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस में शिरीन एबादी ने कहा कि ईरान के चुने जाने की काफी संभावना है. उनका कहना था कि इस संस्था के बोर्ड में ईरान और सऊदी अरब का होना एक मजाक है.
महासचिव बान की मून की पहल पर सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था का गठन किया गया था और जनवरी से वह अपना काम शुरू करेगा. चिली की पूर्व राष्ट्रपति मेशेल बाशेलेट को इसका प्रधान बनाया गया है. शिरीन एबादी की राय में संस्था अपना काम शुरू कर रही है. यह इतिहास की एक निर्णायक घड़ी है. कैसे कोई ऐसा देश इसके बोर्ड में हो सकता है, जिसने महिलाओं के साथ भेदभाव दूर करने के कन्वेंशन की पुष्टि न की हो? कैसे ऐसे देश महिलाओं के अधिकारों की बात कर सकते हैं?
शिरीन एबादी इस समय ब्रिटेन में निर्वासन में जी रही हैं. उन्होंने कहा कि ईरान में एक महिला के जीवन की कीमत पुरुषों की तुलना में आधी है. उन्हें पुरुषों के मुकाबले आधा मुआवजा दिया जाता है, अदालत में दो महिलाओं की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती है. उनका कहना था कि सऊदी अरब में महिलाओं के मानवाधिकार की स्थिति ईरान से भी बदतर है.
सऊदी अरब में महिलाएं कार नहीं चला सकती, किसी पुरुष रिश्तेदार की अनुमति के बिना उन्हें कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार नहीं है. लेकिन उभरते देश के रूप में सऊदी अरब को चुनाव लड़े बिना ही महिला संस्था के बोर्ड में सदस्यता मिल रही है.
संयुक्त राष्ट्र का प्रशासन इस विवाद से हाथ झाड़ने की कोशिश कर रहा है. महासचिव बान की मून के प्रवक्ता फरहान हक ने कहा है कि सदस्य देशों को इस सिलसिले में फैसला लेना है. साथ ही उन्होंन कहा कि उनकी अपेक्षा है कि सभी सदस्य देश मौलिक अधिकारों का आदर करेंगे.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: एन रंजन