मां के दूध से वंचित बच्चे
७ मई २०१२पूर्वी एशिया और प्रशांत के लिए यूनिसेफ के पोषण सलाहकार फ्रांस बेगिन ने कहा है, "पूरे पूर्वी एशिया में स्तनपान की गिरती दर चिंताजनक है. थाईलैंड में केवल पांच फीसदी महिलाएं बच्चों को अपना दूध पिला रही हैं जबकि वियतनाम में 10 फीसदी. चीन जैसे देश में भी केवल 28 फीसदी बच्चो को ही मां का दूध नसीब हो रहा है." बेगिन ने ध्यान दिलाया कि मां के दूध पिलाने का स्थायी विकास में सीधा और अप्रत्यक्ष दोनों तरीके से बड़ा योगदान होता है.
संयुक्त राष्ट्र की बाल विकास संस्था यूनीसेफ ने दूध पिलाने वाली मांओं की कम होती संख्या और आर्थिक विकास के बीच सीधा संबंध जोड़ा है. यूनिसेफ के मुताबिक आर्थिक विकास के कारण ज्यादा से ज्यादा महिलाएं नौकरी के लिए घर से बाहर निकल रही हैं और इसका सीधा असर बच्चों की सेहत पर पड़ रहा है. इसके साथ ही शिशुओं के लिए डिब्बाबंद दूध और खाने पीने की दूसरी चीजें बनाने वाली कंपनियों की आक्रामक प्रचार नीति भी मांओं का मन बदल रही है. बेगिन ने कहा, "बेबी फूड कपनियां पूर्वी एशिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों को अपना निशाना बना रही हैं. यह कंपनियां मांओं को दूध पिलाना छोड़ कर अपना सामान खरीदने के लिए मना ले रही हैं यह जानते हुए भी कि इससे बच्चे को नुकसान होगा."
यूनिसेफ ने पूर्वी एशिया में निजी क्षेत्र से अपील की है कि वो मां बनने वाली कर्मचारियों को पर्याप्त मातृत्व अवकाश की व्यवस्था सुनिश्चित करें और उन्हें बीच बीच में अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए छुट्टी मिलती रहे. इसके साथ ही बेबी फूड बनाने वाली कंपनियों से भी अपील की गई है कि वो मां के दूध की जगह दी जाने वाली चीजों के प्रचार में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करें. इन मानकों में यह तय किया गया है कि मां के दूध पिलाने के ज्यादा से ज्यादा बढावा दिया जाए और लोगों को बताया जाए कि बच्चों के लिए इससे उत्तम कोई और चीज नहीं. बोतल में तैयार दूध और दूसरी डिब्बाबंद चीजें कभी भी मां के दूध की जगह नहीं ले सकतीं.
अंतरराष्ट्रीय मानक बेबी फूड पर पाबंदी नहीं लगाते लेकिन उसके प्रचार के लिए कुछ नियम तय कर देते हैं. यूनिसेफ ने कुछ एशियाई देशों में इन मानकों के पालने के लिए कानून बनाए जाने की सराहना की है. यूनिसेफ ने खासतौर से भारत का जिक्र करते हुए कहा है, "भारत में शिशुओं के खाने पीने की चीजों के प्रचार पर पाबंदी है, इसलिए इस तरह की चीजें कम बिकती हैं और जबरदस्त आर्थिक विकास के बावजूद स्तनपान की दर में कमी नहीं आई है." कुछ साल पहले भारत के भी कुछ शहरी हिस्सों में इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ने लगी थी लेकिन स्तन कैंसर और समय पर खुली सरकार की नींद ने लोगों को इस बारे में जागरुक किया.
एनआर/एएम (डीपीए)