मां के पेट में होगा बच्चे का ऑपरेशन
२४ अगस्त २०११यूक्रेन के डॉक्टर विक्टर ओशोविस्की इस बेहद जटिल प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर गर्भ में पल रहे बच्चे को कोई बीमारी हो, तो इसके लिए मां के ऑपरेशन की जरूरत नहीं, सीधे बच्चे का ऑपरेशन किया जा सकता है.
यूक्रेन में पढ़ाई करने के बाद जर्मनी के माइंस यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे डॉक्टर ओशोविस्की ने डॉयचे वेले को बताया कि जानवरों, खास तौर पर भेड़ों पर इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है. उनका कहना है कि गर्भ के अंदर अगर जुड़वां बच्चे हैं और दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं, तो दोनों के बचने की गुंजाइश बहुत कम होती है. डॉक्टर ओशोविस्की का कहना है, "पैदा होने तक ऐसे 80 फीसदी मामलों में बच्चों की जान चली जाती है क्योंकि उनका रक्त प्रवाह कुछ अजीब होता है. लेकिन अब गर्भ के अंदर ही ऑपरेशन करके उन्हें अलग किया जा सकता है. दोनों की जान बचाई जा सकती है."
मेडिकल साइंस की यह कामयाबी गर्भ के अंदर बीमार पड़ने वाले करोड़ों बच्चों को बचा सकती है. दुनिया भर में हर साल ढाई लाख से ज्यादा बच्चे बीमारी की वजह से जीवित पैदा ही नहीं होते और भारत में भी हर एक लाख में पांच बच्चा इसका शिकार होता है. बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चों की संख्या तो इससे कई गुना ज्यादा है.
अमेरिका में अजन्मे बच्चे का पहले भी ऑपरेशन हो चुका है. मशहूर डॉक्टर माइकल हैरिसन ने ऐसा ऑपरेशन किया है, जिसमें पहले मां के पेट में चीरा लगाया जाता है, फिर गर्भाशय का ऑपरेशन किया जाता है. लेकिन यूरोप सहित दुनिया के कई हिस्सों में इसे स्वीकार नहीं किया गया. डॉक्टर ओशोविस्की का कहना है, "यूरोप के अंदर जर्मनी में इस रिसर्च की सबसे बेहतर संभावना है."
कितना मुश्किल ऑपरेशन
गर्भ के अंदर ऑपरेशन बेहद जटिल प्रक्रिया है. डॉक्टरों को विशेष उपकरणों को गर्भाशय में उस जगह पहुंचाना होता है, जहां एक झिल्ली के अंदर बच्चा सुरक्षित रूप से विकास कर रहा होता है. इस झिल्ली में द्रव भी होता है. उस द्रव तक उपकरण पहुंचने के बाद ही बच्चे का ऑपरेशन संभव है. मामूली सी चूक से झिल्ली नष्ट हो सकती है, जिसके साथ बच्चा भी खत्म हो सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक बीमार बच्चे को जीवित पैदा करना बेहतर है, या उसकी बीमारी ठीक करते हुए उसे गंवा देना.
डॉक्टर ओशोविस्की एमनियोटिक सैक (गर्भाशय में बच्चे को सुरक्षित रखने वाली झिल्ली) की जटिलता समझाते हैं, "कुछ जानवर इस झिल्ली को दोबारा पैदा करने में सक्षम होते हैं, लेकिन मनुष्यों में यह संभव नहीं. अगर ऑपरेशन के दौरान चूक से यह झिल्ली फट जाती है, तो मां की जान भी जाने का खतरा होता है." उनका कहना है, "यह कोई आसान काम नहीं. गर्भाशय में एक महीन छेद बनाना होता है. लेकिन इतने छोटे छेद से आप सब कुछ नहीं देख सकते. अगर छेद बड़ा होगा, तो आसानी होगी लेकिन उसमें जोखिम बढ़ जाता है. हम बीच का रास्ता तलाश रहे हैं."
कैसी कैसी बीमारी
डॉक्टरों को इस ऑपरेशन से आपस में जुड़े जुड़वां बच्चों के ऑपरेशन पर सबसे ज्यादा उम्मीद है. दूसरा हर्निया का ऑपरेशन है. इसके अलावा अजन्मे बच्चे के फेफड़ों का ऑपरेशन गर्भ के अंदर किया जा सकता है. दिल का भी ऑपरेशन संभव है. कई बार बच्चे के दिल में खून का सही प्रवाह नहीं होता और कभी कभी उनके हृदय में मामूली सा छेद होता है. इनका ऑपरेशन उनके गर्भ में रहते हुए ही किया जा सकता है.
गर्भ के अंदर भ्रूण में कभी कभी विकार स्वरूप ट्यूमर विकसित हो जाता है. कई बार इन ट्यूमरों का आकार बड़ा हो जाता है और वे अजन्मे बच्चे को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. यहां तक कि ट्यूमर में भ्रूण से अधिक रक्त जमा हो जाता है. ऐसे मामलों में ऑपरेशन कर ट्यूमर को रक्त सप्लाई करने वाली धमनियों से रक्त प्रवाह रोका जा सकता है.
कुछ मामलों में भ्रूण का रीढ़ झिल्ली और द्रव से नहीं ढंका होता है. इसकी वजह से बच्चे में विकार पैदा होता है और वह चमड़े की बीमारी के साथ पैदा होता है. उनके जननांग भी ठीक से काम नहीं करते और उन्हें चलने फिरने में भी मुश्किल होती है. डॉक्टर विक्टर ओशोविस्की इस जटिलता पर भी काम कर रहे हैं.
कब होगा ऑपरेशन
बच्चा लगभग नौ महीने तक मां के पेट में रहता है. डॉक्टरों का कहना है कि पहले के तीन महीने बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और इस दौरान मां को सबसे ज्यादा एहतियात रखने की जरूरत है. इसी दौरान उन्हें बीमारी का भी खतरा रहता है. डॉक्टरों का कहना है कि बीमारी का पता लगने के बाद जितना जल्दी हो सके, इसका ऑपरेशन किया जाना चाहिए और जल्द ऑपरेशन का बेहतर नतीजा निकलता है.
कितना नैतिक ऑपरेशन
भ्रूण के ऑपरेशन और इसकी नैतिकता का सवाल उठना लाजिमी है. एक बड़ा खेमा इस ऑपरेशन के खिलाफ है. उनका कहना है कि गर्भ के दौरान मां के पेट के अंदर किसी तरह का ऑपरेशन करना अनैतिक है और इस दौरान यदि मां या बच्चे को कुछ हो जाता है, तो इसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता. लेकिन दूसरे खेमे का मानना है कि अगर गर्भ में पल रहा बच्चा खुद एक जान है, तो उस जान को भी सेहतमंद होने का अधिकार है और ऐसे में ऑपरेशन किया जाना चाहिए. यूरोप में ऐसे ऑपरेशनों को अमल में लाने से पहले एक नैतिक कमेटी से मंजूरी लेनी पड़ती है.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः महेश झा