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"मानवाधिकार बने इंटरनेट सुविधा"

२० जून २०११

अरब जगत की क्रांति में इंटरनेट और सोशल मीडिया के रोल को देखते हुए इंटरनेट सुविधा को मानवाधिकार बनाने की मांग बढ़ती जा रही है. बॉन में दुनिया भर के मीडिया जमावड़े के दौरान इंटरनेट और मानवाधिकार के आपसी तालमेल पर चर्चा.

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DWGMF Erik Bettermann, Opening Erik Bettermann, Director General of Deutsche Welle opens the Global Media Forum 2011. Erik Bettermann (Director General of Deutsche Welle) © Deutsche Welle/ K. Danetzki
एरिक बेटेरमनतस्वीर: DW

नोबेल शांति पुरस्कार देने वाली संस्था नॉर्वे की नोबेल कमेटी के अध्यक्ष थॉर्बयॉर्न यागलैंड ने जर्मनी में ग्लोबल मीडिया फोरम के उद्घाटन के मौके पर कहा, "इंटरनेट तक पहुंच को बुनियादी अधिकार बनाने की बात चल रही है लेकिन मैं कहता हूं कि यह एक मानवाधिकार है."

हालांकि उन्होंने कहा कि इस अधिकार का इस्तेमाल सही तरीके से होना चाहिए और यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यकों का औजार नहीं बन जाना चाहिए. हाल में ट्यूनीशिया और मिस्र में हुई क्रांतियों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "इंटरनेट ने लाखों लोगों के लिए आजादी लाई है."

Dr. Monika Schwall-Düren, Opening Dr. Angelica Schwall-Düren (Minister for Federal Affairs, Europe and the Media, State of North Rhine-Westphalia, Germany) starts the website www.einewelt.nrw of the State Northrine- Westphalia. Format: Artikelbild Bildrechte: Deutsche Welle/K. Danetzki, alle Rechte bei der Deutschen Welle
अंगेलिका श्वाल-ड्यूरेनतस्वीर: DW

यागलैंड ने इंटरनेट को मानवाधिकार के बेहद पास बताते हुए कहा कि मानवाधिकार दूसरे अधिकारों से बिलकुल अलग है क्योंकि यह कानून से परे है. उन्होंने मानवाधिकार को नैसर्गिक अधिकार बताते हुए कहा, "अगर मानवाधिकार सब को नहीं मिलेगा, तो अंत में यह किसी को नहीं मिलेगा क्योंकि हम सब एक दूसरे से किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं."

नोबेल पुस्कार में तरजीह

उन्होंने साफ किया कि नोबेल शांति पुरस्कार देते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का खास ख्याल रखा जाता है. पिछले साल चीन के लियू शियाओबो को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की वजह से नॉर्वे और चीन में ठन गई लेकिन यागलैंड का कहना है कि आज के जमाने में राष्ट्रीयता से आगे बढ़ कर अंतरराष्ट्रीयता की बात सोचनी होगी और कोई भी मुल्क अपना अंदरूनी मामला बता कर किसी मुद्दे से कन्नी नहीं काट सकता. उन्होंने कहा कि अब किसी राष्ट्र के तय कानूनों से काम नहीं चलने वाला, बल्कि हमें अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों के बारे में सोचना होगा.

100 से अधिक देशों से आए मीडिया प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए बॉन शहर के मेयर युर्गन निम्श ने भी सोशल मीडिया की अहमियत बताई. अरब राष्ट्रों में हो रहे बदलाव में इंटरनेट और सोशल मीडिया के रोल पर उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया ही अब असली कार्यकर्ता है." उन्होंने हाल के दिनों में युद्ध और संकट क्षेत्रों में मारे गए पत्रकारों का जिक्र करते हुए कहा कि मौजूदा वक्त में पत्रकार मुश्किल काम कर रहे हैं.

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मानवाधिकार और मीडिया की भूमिका पर ही इस बार का सम्मेलन केंद्रित है

मीडिया का मुश्किल रोल

जर्मन प्रांत नॉर्थ राइन वेस्टफालियन की मीडिया और यूरोपीय मामलों की मंत्री अंगेलिका श्वाल-ड्यूरेन ने मीडिया के मुश्किल औऱ महत्वपूर्ण रोल का जिक्र करते हुए कहा, "मीडिया का रोल बढ़ गया है. वह हम जैसे नीति निर्माताओं पर इस बात का दबाव बढ़ाते हैं कि हम अपना काम बेहतर ढंग से करें."

श्वाल-ड्यूरेन ने भी मानवाधिकार को वैश्वीकरण का हिस्सा बनाने पर जोर देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र की चाबी साबित हो सकती है, "नियम और कायदे बनाने वालों की यह जिम्मेदारी है कि वे बेहतर मानवाधिकार के लिए नियम बनाएं."

Titel: DWGMF Juergen Nimptsch Opening Beschreibung: Juergen Nimptsch, Mayor of Bonn, at the Deutsche Welle Global Media Forum Format: Artikelbild Bildrechte: Deutsche Welle/K. Danetzki, alle Rechte bei der Deutschen Welle
बॉन के मेयरतस्वीर: DW

जर्मनी के विदेश प्रसारण सेवा डॉयचे वेले के चौथे ग्लोबल मीडिया फोरम में इस बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार के मुद्दे पर ही चर्चा हो रही है. यहां भारत सहित दुनिया भर के मीडियाकर्मी हिस्सा ले रहे हैं. अलग अलग पैनलों में बहस की लंबी सीरीज शुरू हो रही है, जिसमें मानवाधिकार मामलों के जानकारों से लेकर अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लोग हिस्सा ले रहे हैं.

तीन दिनों तक चलने वाले इस फोरम का उद्घाटन करते हुए डॉयचे वेले के महानिदेशक एरिक बेटेरमन ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का स्वागत किया और कहा, "अब तो हर साल हमें यह पारिवारिक मिलन की तरह लगने लगा है."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, बॉन

संपादनः ए कुमार

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