मालिकों के क्रूर तौर तरीके और पिसती महिलाएं
१० अक्टूबर २०१०वह महिला नौकरानी के तौर पर सऊदी अरब के एक रईस परिवार में काम कर रही थी. उसने बताया कि जब भी उससे कोई गलती होती तब परिवार का कोई व्यक्ति कील को गरम करके उनके शरीर के किसी अंग में ठोक देता था.
अफ्रीका और एशिया की हज़ारों महिलाएं मध्य पूर्व या अरब देशों में काम करती हैं और अक्सर उनका शोषण होता है. कई बार उनके साथ बलात्कार भी किया जाता है. लेबनान की सरकार अब कई कदम उठा रही है ताकि इस तरह के शोषण पर रोक लगाई जाए.
लेबनान में इस वक्त विदेशी मूल की दो लाख महिलाएं घरेलू नौकर के तौर पर काम करती हैं. ये महिलाएं इथोपिया, नेपाल, श्रीलंका या भारत जैसे देशों से वहां पहुंची हैं. लेबनान में कई ऐसी एजेंसियां हैं जो इन महिलाओं को घरों में काम पर रखवाती हैं. वहां अरबी भाषा बोली जाती है जबकि इन महिलाओं की मातृभाषा कुछ और होती है.
फादर मार्टिन मैकडर्मट लेबनान की राजधानी बेरुत में एक सहायता केंद्र चलाते हैं. उनकी टीम में कई लेबनानी वकील हैं जो मालिक और नौकरानियों के बीच विवादों में बीच बचाव कराते हैं. वह बताते हैं कि नौकरानियों को पिटाई, घर बाहर न जाने देने से लेकर वेतन न देने और बलात्कार जैसे हालात का सामना भी करना पड़ता है. मैकडर्मट बताते हैं कि लेबनान के कानून में इन महिलाओं के अधिकारों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. वह कहते हैं, "नौकरी पर रखने वाले का इन महिलाओं पर पूरा नियंत्रण रहता है. अक्सर हमें पता चलता है कि कोई नौकरानी छत से गिर गई है. ऐसे में हमें यह नहीं पता चलता कि उसने आत्महत्या की है या किसी ने उसे जानबूझ कर गिरा दिया या फिर वह भाग जाना चाहती थी. इससे पता चलता है कि पूरी व्यवस्था में खामी है."
2008 में मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने लेबनान में घरेलू नौकरानियों पर एक रिपोर्ट पेश की. इसके मुताबिक हर हफ्ते एक ऐसी महिला की मौत होती है. सबसे ज्यादा मौतों का कारण है नौकरानियों का चौथी या पांचवीं मंजिल से गिरना. वैसे अफ्रीकी और एशियाई मुल्कों से आने वाली ये महिलाएं पूरी तरह से अपने मालिक पर ही निर्भर होती हैं. किसी लेबनानी नागरिक की तरफ से जिम्मेदारी लिए जाने के बाद ही कोई महिला इस तरह काम करने के लिए देश में प्रवेश कर सकती है.
फादर मैकडर्मट कहते हैं कि अक्सर ये महिलाएं बहुत गरीब और अनपढ़ होती हैं और वे सपना देखती हैं कि इस तरह नौकरी करके वह अपने देश में रहे रहे परिवार के लिए पैसा भेज पाएंगी. वह कहते हैं, "नौकरी पर रखने वाले का नाम इन महिलाओं के वीजा पर लिखा रहता है. वे अपने मालिक को छोड़ भी नहीं सकतीं क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें सरकारी अधिकारियों की अनुमति की जरूरत होती है. पासपोर्ट ज्यादा मामलों में मालिक अपने पास रखते हैं और इसकी वजह से वे घर छोड़ने की हालत में भी नहीं होती हैं."
फादर मैकडर्मट की मांग है कि ऐसी महिलाओं को हर हफ्ते एक दिन छुट्टी का मिले ताकि वे शोषण होने की स्थिति में अपने लिए मदद मांगने कहीं जा सकें. लेबनान में ऐसे बहुत ही कम मामलों में मालिकों को सजा हुई. ह्यूमन राइट्स वॉच के नदीम हूरी कहते हैं कि महिलाएं अक्सर खुद भी अपने हालात पर बात करने से हिचकती हैं क्योंकि उन्हें शर्म आती है और वे इस बात से डरती हैं कि वतन वापस जाकर उनका परिवार क्या कहेगा.
हूरी बताते हैं, "एक बात यह भी है कि मालिक एशिया और अफ्रीका से आने वाली महिलाओं को कम आंकते हैं. शोषण का एक कारण नस्लवाद भी है. लेबनान में अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना बहुत मुश्किल है. मालिक कई मामलों में अपने नौकरों या दूसरे कर्मचारियों को वेतन देर से दे सकता है या उनसे ज्यादा काम करवा सकता है. फिर भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती."
वैसे हाल के महीनों में लेबनान की सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है. शोषण का शिकार होने वाली महिलाओं के लिए एक हॉटलाइन बनाई गई है. साथ ही एक आर्दश कॉन्ट्रैक्ट तैयार किया गया है जिस पर मालिक और नौकरानी, दोनों को दस्तख्त करना जरूरी है.
ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे मानवाधिकार संगठन फिर भी सवाल उठाते हैं कि वाकई मालिक अपनी ही नौकरानी के साथ इस पर दस्तख्त करता है. अब तक यह कॉन्ट्रैक्ट सिर्फ अरबी भाषा में ही है. किसी अन्य भाषा में नहीं.
अगर सरकार की कोशिश का वाकई कोई नतीजा निकलता है तो इससे लेबनान में ऐसी नौकरानियों के लिए हालात बेहतर होंगे. इस बात में शक नहीं कि जहां एक तरफ से ये महिलाएं अपने परिवारों को पैसा भेज उनकी मदद कर रही हैं, वहीं लेबनान के लोगों के भी किफायती दामों पर अच्छे नौकर मिल जाते हैं.
रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न
संपादनः वी कुमार