''मीनारों की मनाही इस्लामोफ़ोबिया''
३० नवम्बर २००९मुस्लिम जगत में इस जनमतसंग्रह की कड़ी निंदा की जा रही है. खुद स्वित्ज़रलैंड में भी सरकार हैरान है. 57.5 फ़ीसदी लोगों ने मीनारों के निर्माण पर रोक लगाने के पक्ष में वोट दिया है. पाकिस्तान की कट्टरपंथी जमाते इस्लामी पार्टी के वाइस प्रेसीडेंट ख़ुर्शीद अहमद का कहना है कि मीनारों को बनाने की मनाही पश्चिम के लोगों में इस्लाम के प्रति ग़ैर ज़रूरी डर की भावना का इज़हार है. उनके मुताबिक इससे मुसलमानों के प्रति भेदभाव का भी पता चलता है.
पाकिस्तान दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्लामी मुल्क है.
स्वित्ज़रलैंड में दक्षिणपंथी स्विस पीपल्स पार्टी की पहल पर ये जनमत संग्रह हुआ था. पार्टी का कहना है कि मीनारें धार्मिक विशेषताओं वाले वास्तुशिल्प नहीं हैं बल्कि वे मौलिक अधिकारों को चुनौती देने वाली राजनैतिक धार्मिक सत्ता वर्चस्व हासिल करने की प्रतीक है.
पाकिस्तानी धार्मिक दलों ने स्विस फ़ैसले को मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानून का भी गंभीर उल्लंघन करार दिया. उनका कहना है कि ये इस्लाम और पश्चिम के बीच टकराव भड़काने की कोशिश है.
यूरोप में दक्षिणपंथी पार्टियों और संगठनों ने लोगों के फ़ैसले का स्वागत किया है. लेकिन धर्मसंकट में आ गई है स्वित्ज़रलैंड सरकार. उधर स्वीडन के माइग्रेशन और शरण नीति मामलों के मंत्री टोबियास बिलश्ट्रोम ने जनमत संग्रह के फ़ैसले पर हैरानी जताते हुए कहा कि इस तरह की चीज़ें वोट से तय करना बड़ा अजीब है. उनके मुताबिक स्वीडन में आमतौर पर ये सिटी प्लानिंग यानी शहर नियोजन का हिस्सा है कि कहां क्या बनना है, कौन सी इमारत कितनी ऊंची बननी है आदि. स्वीडन इस समय यूरोपीय संघ का अध्यक्ष देश भी है. मंत्री ने कहा कि इस तरह का रिफ्रेंडम स्वीडन में कराना बहुत मुश्किल है. इस बीच फ्रांस और जर्मनी सहित कई देशों ने स्विस मतदाताओं के इस फ़ैसले की निंदा की है और कहा है कि ये अनुदारवादी रवैया है.
स्वित्ज़रलैंड की आबादी सत्तर लाख की है, जिसमें से तीन लाख से अधिक मुसलमान हैं. ये अधिकतर बोसनिया, कोसोवो या तुर्की के हैं, जिनकी जीवनशैली आधुनिक है. इन्हें कतई कट्टर धार्मिक नहीं कहा जा सकता. देश में मस्जिद हैं, जिनमें से चार मस्जिदों में मीनारें हैं. लेकिन स्वित्ज़रलैंड में अजान पर पाबंदी है. अब तक इस पाबंदी का कोई विरोध नहीं हुआ था. आम तौर पर धार्मिक समुदायों के बीच कोई समस्या नहीं है.
ऐसी बात नहीं है कि स्वित्ज़रलैंड में मीनारों वाले मस्जिद बनने वाले थे, जिन्हें रोकने के लिए यह जनमत संग्रह ज़रूरी हो गया था. इसके विपरीत इस पूरे प्रकरण से यूरोपीय समाज में इस्लाम के प्रति प्रकट या अप्रकट पूर्वाग्रहों को अनुदारवादी राजनीति के हित में भुनाने की कोशिश की गई है, जिनका परिणाम देश से परे तक काफ़ी दूरगामी हो सकता है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस जोशी
संपादन: उज्जवल भट्टाचार्य