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मुश्किल से निकलते हैं दुर्लभ धातु

४ जून २०११

रोजमर्रा में काम आने वाली बहुत सी चीजों के अस्तित्व की उच्च तकनीकी वाले धातुओं के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती. सेल फोन हो, एलईडी टेलिविजन स्क्रीन, हर रोज काम आने वाले औजार हों या कारें और हवाई जहाज.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

अक्षय ऊर्जा के विकास के साथ भी उनका महत्व बढ़ रहा है. मसलन आधुनिक पवन चक्कियों के लिए बड़ी मात्रा में नियोडिम की जरूरत होती है. किन जगहों पर और किन परिस्थितियों में इन हाइटेक धातुओं का उत्पादन होता है.

हाईटेक धातुएं

इन हाइटेक धातुओं का जितनी अलग अलग जगहों पर इस्तेमाल होता है, उतनी ही अलग अलग जगहों पर उसका उत्पादन भी होता है. उनमें साझा सिर्फ इतना ही है कि उन्हें खदानों से प्राप्त किया जाता है. कुछ तांबा, जिंक या अल्युमिनियम जैसे जाने माने धातुओं को निकालते समय साथ में निकलते हैं. उनमें इंडियम भी शामिल है जिसके बिना आज पतली परत वाली फोटो वोल्टाइक संयंत्र बनाना संभव नहीं. इसके अलावा गैलियम, जेरमेनियम, थेलुर, सेलेन या स्केलियम भी शामिल भी है.

चूंकि इन धातुओं का उत्पादन तभी संभव है जब उनके साथ जुड़े मुख्य धातुओं को भी निकाला जाए, वे बहुत हद तक विश्व बाजार में कीमत के विकास पर निर्भर हैं. यह खासकर रेनियम के उदाहरण से साफ हो जाता है.

Pierre und Marie Curie
तस्वीर: dpa

दुर्लभ धातु

रेनियम अत्यंत दुर्लभ धातु है. विश्व भर में हर साल उसका सिर्फ 50 टन उत्पादन होता है. उसका इस्तेमाल खासकर विमानों का टरबाइन बनाने में होता है क्योंकि उसकी मदद से अत्यंत मजबूत और उच्च तापमान को सहने वाला इस्पात बनाया जाता है. उसका उत्पादन मोलिबडेनम बनाते समय होता है. मोलिबडेनम स्वयं विशालकाय खदानों से तांबा निकालने की प्रक्रिया में पैदा होता है. दुनिया की सबसे बड़ी तांबा खदानें चिली में हैं. कोडेल्को नॉर्टे और इस्कोंडिदा दुनिया भर में सबसे बड़ी मानव निर्मित खदानें हैं. आखेन के तकनीकी विश्वविद्यालय के खनन विशेषज्ञ हरमन वोत्रूबा बताते हैं कि इतनी बड़ी खानों के बावजूद रेनियम का उत्पादन मुश्किल क्यों हैं, "तांबे की खानों में सिर्फ 0.005 से 0.05 फीसदी तक मोलिबडेनम होता है. इसका मतलब यह हुआ कि एक टन मोलिबडेनम पाने के लिए हजारों टन खुदाई करनी होगी."

और रेनियम तो और भी कम होता है. मोलिबडेनम में सिर्फ 2 फीसदी. और इसके अलावा शुरू से बहुत सारा मूल्यहीन कचरा भी अलग करना पड़ता है. इसकी वजह से रेनियम का उत्पादन बहुत ही मुश्किल प्रक्रिया बन जाती है. वोत्रूबा बताते हैं, "अंततः यह करोड़ों टन पत्थर हो सकता है जिसकी आपको एक टन रेनियम पाने के लिए खुदाई करनी होगी, खान से निकाल कर ले जाना होगा और कहीं रखना होगा."

और यह प्रक्रिया तभी लाभप्रद होती है जब तांबे और मोलिबडनम की बाजार में कीमत उचित हो. हालांकि पिछले सालों में तांबे की कीमत बढ़ है लेकिन मोलिबडेनम की कीमत स्थिर है.

कीमत का सवाल

इसलिए मोलिबडेनम का उत्पादन करने वाले कुछ उद्यमों का कहना है कि वे तांबे से मोलिबडेनम नहीं निकालेंगे क्योंकि कीमत अच्छी नहीं है. इसका मतलब यह होगा कि हमें रेनियम भी नहीं मिलेगा.

दूसरे हाइटेक धातुएं छोटी खदानों में भी मिलती हैं.मसलन तंताल. इसका उपयोग माइक्रो कंडेसर बनाने में किया जाता है जो आजकल हर सेलफोन में मिलता है. ऑस्ट्रेलिया के अलावा रवांडा और कांगो में तंताल की महत्वपूर्ण खानें हैं. वहां खनिक बहुत खराब परिस्थितियों में जमीन के अंदर से अयस्क निकालते हैं, कुदाल, फावड़ा और बेलचे से. खान के अंदर कई बार तो हाथ से अयस्क निकाला जाता है. इस में अक्सर बच्चों से भी काम लिया जाता है. खान विशेषज्ञ वोत्रूबा का कहना है कि खरीदार देशों के लिए खानों की काम की परस्थितियां नैतिक मुश्किलें खड़ी कर रही हैं.

"काम के दौरान सुरक्षा के पोशाक उपलब्ध नहीं हैं. बहुत सारी दुर्घटनाएं होती हैं. खनन अवैध रूप से बिना किसी लाइसेंस के होता है. अकसर मजदूरों का शोषण होता है क्योंकि खराब वेतन और खराब कीमतें हैं. स्थानीय पुलिस, सैनिक, दादे और इलाके के छापामार मजदूरों से वसूली भी करते हैं. हर कोई वहां आता है और कहता है कि तुम कमा रहे हो, तुमसे पैसा चाहिए."

रोजगार भी उपलब्ध

दूसरी ओर इस तरह की छोटी खानें लाखों लोगों को रोजगार भी दे रही हैं. "वे हीरा, सोना, तंताल या वोल्फराम निकाल रहे हैं. यह अप्रशिक्षित मजदूरों का काम है. काम कुछ हद तक कबीलों, परिवारों या गांवों के बीच बंटा है और लोग एक तरह से अपनी ही खानों में काम कर रहे हैं. वहां जो पैसा कमाया जा रहा है वह भी इलाके में ही रहता है. लोग वहां से बड़े शहरों के स्लमों में नहीं जा रहे हैं."

मंगोलिया का एक उदाहरण दिखाता है कि पुराने ढर्रे पर हो रहा खनन भी लोगों की समृद्धि और विकास में योगदान दे सकता है. "वहां एक गांव से 30 बच्चे विश्वविद्यालय में पढ़ने जाते हैं. इसके लिए छोटी खानों के जरिए कमाई हुई है. नहीं तो वे कभी पढ़ने का खर्च नहीं जुटा पाते. "

हाइटेक उत्पादनों के लिए जरूरी दुर्लभ धातुएं रिसाइकलिंग के जरिए भी निकाली जा सकती हैं, लेकिन यह तकनीक अभी शुरुआती दौर में है. मांग बढ़ रही है और उसे पूरा करने के लिए भूशास्त्री और खान इंजीनियर दुनिया भर में धरती की गोद में छिपे भंडारों को खोजने में लगे हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए जमाल