मुसलमानों को आरक्षण की सिफ़ारिश
१९ दिसम्बर २००९अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने शुक्रवार को संसद में पूर्व चीफ़ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय धार्मिक और भाषीय अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट को पेश किया. रिपोर्ट में मुख्य मांगों में अनुसूचित जाति के दर्जे को धर्म से अलग करने की सिफ़ारिश की गई है. साथ ही 1950 के उस अनुसूचित जाति क्रम को भी ख़त्म करने को कहा गया है जिसके तहत इस दायरे से अब भी मुसलमानों, ईसाइयों, जैनियों और पारसियों को अलग रखा गया है.
मूल रूप से इस क्रम में अनुसूचित जाति के दर्जे को हिंदू धर्म तक ही सीमित रखा गया था, बाद में इसमें बौद्ध और सिखों को शामिल किया गया. आरक्षण के कोटे पर आयोग का कहना है कि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारी नौकरियों और 10 प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों और 5 प्रतिशत आरक्षण अन्य अल्पसंख्यकों को दिया जाना चाहिए.
दस प्रतिशत के कोटे को भरने के लिए योग्य उम्मीदवारों की कमी की स्थिति में यह अवसर दूसरे अल्पसंख्यकों को दिए जा सकते हैं लेकिन किसी भी सूरत में 15 प्रतिशत के इस साझे कोटे के तहत किसी बहुसंख्यक उम्मीदवार को नौकरी नहीं दी जानी चाहिए.
वैसे आयोग की सदस्य सचिव आशा दास ने उन दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की सिफ़ारिश पर विरोध जताया जो इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते हैं. उनका कहना है कि ऐसे लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग में जगह दी जानी चाहिए और वे उस वर्ग की सुविधाओं और आरक्षण का लाभ ले सकते हैं. कम से कम सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़े लोगों की व्यापक सूची तैयार होने तक ऐसा किया जाना चाहिए.
आयोग ने दास की आपत्तियों को ख़ारिज किया है. आयोग का कहना है कि मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में बहुत कम प्रतिनिधित्व मिली है. कभी कभी यह न के बराबर देखने को मिला है.
यह आयोग 2004 में बनाया गया जिसने 2005 में अपना काम शुरू किया. इस आयोग को सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से एक क़दम आगे माना जा रहा है जो सिर्फ़ मुसलमानों के पिछड़ेपन पर तैयार की गई थी. इस आयोग ने मई 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री के सौंप दी थी. बीजेपी को छोड़कर अन्य कई पार्टी की काफ़ी समय से मांग थी कि इस रिपोर्ट में संसद में पेश किया जाए और इसकी सिफ़ारिशों को लागू किया जाए. कई पार्टियों के सांसद की यह भी मांग रही है कि सरकार यह भी बताए कि इसने इस रिपोर्ट पर क्या क़दम उठाए. यानी वह कार्रवाई रिपोर्ट भी पेश करे.
उधर ख़ुर्शीद ने यह स्पष्ट किया कि कार्रवाई रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य नहीं है क्योंकि रंगनाथ आयोग को जांच आयोग अधिनियम के तहत नहीं बनाया गया.
रिपोर्ट: पीटीआई/ए कुमार
संपादन: ओ सिंह