मुस्लिम चरमपंथ में फंसता जर्मनी
६ सितम्बर २०११जर्मनी में कुछ जगहों पर इस्लाम के उग्र रूढ़िवादी स्वरूप का विकास हो रहा है और कुछ ऐसे धार्मिक नेता उभर रहे हैं, जो मुस्लिम समुदाय को बहुसंख्यक लोगों से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं. सुरक्षा जानकारों का कहना है कि इनके अलावा ऑनलाइन वीडियो आग में घी का काम कर रहे हैं.
9/11 के आतंकवादी हमले में जर्मनी के हैम्बर्ग शहर का बड़ा हाथ रहा है, जहां शुरुआती साजिश रची गई. लेकिन इसके बाद भी जर्मनी कभी भी चरमपंथ का बड़ा अड्डा नहीं बना. यूरोप के अंदर ब्रिटेन और फ्रांस को आतंकवादियों के निशाने पर माना जाता है, जर्मनी को नहीं.
लेकिन सिक्योरिटी एक्सपर्ट का कहना है कि अब तस्वीर बदल रही है. खास तौर पर 2006 के बाद कई युवा पाकिस्तान में आतंकवादी ट्रेनिंग के लिए जा रहे हैं और उसके बाद जर्मनी के अंदर भी स्थिति बदल रही है, जहां तुर्क मूल के लोग बहुत ज्यादा संख्या में रहते हैं.
कोसोवो के एक युवक ने मार्च में फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर दो अमेरिकी सैनिकों की गोली मार कर हत्या कर दी और दो को घायल कर दिया. अभी पिछले हफ्ते उसने स्वीकार किया कि इंटरनेट पर इस्लामी दुष्प्रचार की वजह से वह यह कदम उठाने को बाध्य हुआ लेकिन उसे पता है कि इंटरनेट पर जो कुछ दिया जा रहा है, वह सच नहीं है.
यूरोप में बढ़ता आतंकवाद
जानकारों का कहना है कि किसी जमाने में ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के मुसलमान या फ्रांस में अफ्रीकी मूल के लोगों ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया, जिसमें अब यूरोप के धर्म परिवर्तन कर चुके मुसलमानों के अलावा तुर्क और कुर्द और दूसरे यूरोपीय मुसलमान भी शामिल हो गए हैं. यूरोप भर में पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले और जरायम पेशा लोगों ने भी इस धारा में प्रवेश कर लिया है.
इंटरनेट पर अब जर्मन भाषा में भी इस्लामी दुष्प्रचार मौजूद है, जो कभी सिर्फ उर्दू, पश्तो, इंग्लिश और अरबी भाषाओं में हुआ करता था. जर्मनी के ज्यादातर लोग अफगानिस्तान में राष्ट्रीय सेना की तैनाती के खिलाफ हैं.
सलफी स्कूल के कुछ प्रचारक सिर्फ मस्जिदों में नहीं, बल्कि खुलेआम भी लोगों के जेहन में जहर घोल रहे हैं. जर्मनी की घरेलू जांच एजेंसी के हैम्बर्ग प्रमुख मैनफ्रेड मुर्क का कहना है, "पहले वे मस्जिदों में छिपे रहते थे. लेकिन अब वे हिम्मत जुटा कर सामने आ रहे हैं. वे अपने विचार रख रहे हैं."
आभासी आतंकवादी संगठन
मुर्क का कहना है, "आतंकवाद की परंपरा मुख्य रूप से एक ग्रुप की परंपरा रही है. लेकिन अब देखा जा रहा है कि कोई जरूरी नहीं कि कोई ग्रुप हो, बल्कि इंटरनेट पर ऐसे ग्रुप बन रहे हैं." इंटरनेट पर दुष्प्रचार और सार्वजनिक तौर पर ऐसे नेताओं के भाषण से जर्मनी में स्थिति लगातार बिगड़ रही है.
जर्मनी के सुरक्षा विशेषज्ञों की नजर खास तौर पर एक परिवर्तित मुसलमान पियरे फोगल पर है, जिसने इस्लाम धर्म स्वीकारने के बाद सऊदी अरब में पढ़ाई की है. किसी जमाने में पेशेवर बॉक्सर रह चुका फोगल अब सार्वजनिक तौर पर अपने भाषणों में आग उगलता है और मुस्लिमों को दूसरे लोगों से दूर रहने की सलाह देता है.
इसी तरह पूर्व रैप सिंगर डेनिस मामाडू उर्फ डेसो डॉग्ग अब मुसलमानों के गाने गाता है और उसका मानना है कि इस्लाम को पश्चिम से खतरा है. इसी तरह तुर्क जर्मन धार्मिक गुरु मोहम्मद सिफ्ती का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है.
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी एफेयर्स के गुइडो श्टाइनबर्ग का कहना है, "डेसो डॉग्ग बेहद अहम हो गया है. वह आपको सच में फंसा सकता है. वह बड़े उकसाने वाले गाने गाता है."
पाकिस्तान से तार
जर्मनी में 2007 के बाद से इंटरनेट इस्लामी चरमपंथ का दुष्प्रचार तेजी से बढ़ा है. समझा जाता है कि यह पाकिस्तान के वजीरिस्तान प्रांत से इसके तार जुड़े हैं, जो अल कायदा का गढ़ माना जाता है और जहां जर्मनी के युवा आतंकवाद की ट्रेनिंग लेने जाते रहे हैं.
इंटरनेट पर जो कुछ उपलब्ध है, उसमें उज्बेकिस्तान के इस्लामी मूवमेंट से जुड़े लोगों का भी हाथ है, जहां अल कायदा का अच्छा खासा प्रभाव है. लंदन के किंग्स कॉलेज में वॉर स्टडीज के प्रोफेसर पीटर नॉयमन का कहना है, "हमने इस इलाके से दर्जनों संदेश आते देखे हैं." उनका कहना है कि यूरोप के जिन चरमपंथियों को युद्धभूमि के योग्य नहीं समझा जाता है, उन्हें वापस यूरोप भेज दिया जाता है ताकि वे दुष्प्रचार कर सकें.
नेताओं का इम्तिहान
जर्मनी में बढ़ रहे इस्लामी आतंकवाद के बीच नेताओं का बड़ा इम्तिहान आ गया है. उनके सामने 40 लाख मुस्लिम आबादी का सामना करने की चुनौती है, जिनमें से सबसे ज्यादा तुर्क मूल के लोग हैं. किसी जमाने में समझा जाता था कि ये लोग प्रवासी मजदूर हैं, जो बाद में अपने घर लौट जाएंगे. लेकिन दशकों के बाद ऐसा नहीं हुआ और वे जर्मनी में ही घुल मिल गए हैं और यहां के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह बन गए हैं.
हैम्बर्ग में काम कर रहे तुर्क मूल के युवक आकिफ शाहीन का कहना है कि ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोग दुष्प्रचार करने वालों पर भरोसा नहीं करते हैं. उनका कहना है कि सालाफी मुसलमानों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से फोगल जैसे नेता भी बढ़ रहे हैं.
शाहीन का कहना है, "मुख्यधारा के मुसलमान चाहते हैं कि ऐसे लोग खामोश हों क्योंकि वे मुंहफट हो रहे हैं और अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि मुख्यधारा में उनकी क्या जगह बन रही है." उनका कहना है कि अच्छी भाषा जानने की वजह से सलाफियों को फायदा पहुंच रहा है.
"जब फोगल यहां हैम्बर्ग में भाषण दे रहा था, तो कम से कम 500 लोग जमा थे. वे या तो उसके समर्थक रहे होंगे या फिर उसे जानने के लिए पहुंचे होंगे. यह हमारे लिए नई बात है."
रिपोर्टः रॉयटर्स/ए जमाल
संपादनः एन रंजन