मेक्सिको के तेल रिसाव हादसे का एक साल
२० अप्रैल २०११2010 में 153 दिनों तक सुर्खियों में छाया रहा मेक्सिको का तेल रिसाव संकट 20 अप्रैल यानी आज के ही दिन रात को 9 बजकर 53 मिनट (भारतीय समय के मुताबिक 21 अप्रैल सुबह करीब साढ़े आठ बजे) पर हुआ था. मेथेन गैस की वजह से एक चिंगारी ने रिग में धमाका किया और दो दिन बाद रिग डूब गया.
एक साल बाद
अमेरिकी इतिहास के सबसे बड़े तेल रिसाव हादसे को एक साल पूरा हो गया है. इस हादसे में पर्यावरण को जितना नुकसान हुआ, वह कई साल के बराबर था. हादसे का असर फ्लोरिडा, मिसीसिपी, अलाबामा और खासतौर पर लुइजियाना के जीवन पर भी पड़ा. वहां की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं और लोगों के लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया.
कुएं ने 40 लाख टन बैरल तेल उगला. लेकिन अब कुछ लोग कहते हैं कि हालत उतनी बुरी नहीं है जितनी आशंका जताई जा रही थी. लुइजियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर एडवर्ड ओवर्टन कहते हैं, "हालात भयानक हैं, लेकिन दुनिया खत्म नहीं हुई है. कुछ लोगों को लगा था कि इस हादसे ने दशकों तक के लिए खाड़ी में जिंदगी को तबाह कर दिया है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है."
जो हुआ, उसका क्या
लेकिन खाड़ी में रहने वाले लोगों को इस तरह की बातें कोई खास राहत नहीं पहुंचा रही हैं. लाखों लोगों की रोजी रोटी इस तेल के साथ रिस गई. पांच लाख से ज्यादा लोगों ने मुआवजे का दावा किया है. ओबामा प्रशासन के दबाव में बीपी ने 20 अरब डॉलर का एक फंड बनाया है जिसमें से मुआवजा दिया जाएगा.
लेकिन लोगों का डर बस यहीं तक नहीं है. लुइजियाना में एक कंपनी के मैनेजर एरल वोएसिन कहते हैं, "मछुआरे चिंतित हैं कि समुद्र की गहराई में अब भी तेल है."
राष्ट्रीय वन्य जीवन संघ के मुताबिक तेल रिसाव ने पर्यावरण को इस कदर प्रभावित किया है कि उसकी भरपाई होते होते सालों लग जाएंगे. इस हादसे में हजारों समुद्री जीवों और पक्षियों की मौत हुई. सबसे ज्यादा असर कछुओं पर हुआ. ब्लूफिन टूना मछली, जो सिर्फ खाड़ी में जनन करती है, उस दौरान जनन के लिए इलाके में ही थी. तेल रिसाव की वजह से टूना के नए बच्चों की संख्या में 20 फीसदी तक की कमी आ सकती है.
जले पर नमक
जिमी खाड़ी में तो तेल रिसाव का असर साफ साफ नजर आता है. यह झींगों, मछलियों और घोंघों के लिए जनन की जगह है. तटों पर तेल के निशान अब भी देखे जा सकते हैं. कुछ इलाकों में घास मर चुकी है. जमीन से तेल अब भी उसी तरह निकल रहा है जैसे एक साल पहले निकल रहा था. वन्य जीवन संघ की संयोजक मॉरा वुड कहती हैं, "जब तेल निकलता है, तो यह जले पर नमक छिड़कने जैसा है. वन्य जीवन के लिए जीने की जगह हमारी सबसे बड़ी चिंता है."
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ईशा भाटिया