मो यान यानी शब्दों का जादुई चितेरा
११ अक्टूबर २०१२मो यान का मतलब है मुंह मत खोलो. चीनी लेखक मो यान का नाम ही उनका सबसे सटीक परिचय है. बेशक उनका लेखन राजनीतिक है लेकिन राजनीति साहित्य पर हावी नहीं होती. और दावे तो वो कतई नहीं करते. 2009 के फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में उन्होंने कहा था, "एक लेखक को समाज के अंधेरे पक्ष और मानव जीवन की विद्रूपताओं की आलोचना करनी चाहिए. बहुत से लोग हैं जो सड़क पर निकलकर नारे लगाते हैं, लेकिन हमें उन लोगों की आवाजों को भी सुनना चाहिए जो अपने कमरे में छिपकर साहित्य के जरिए बोलते हैं."
1955 में पैदा हुए मो यान का जीवन भी उनके लेखन की तरह आकस्मिक, अविश्वसनीय घटनाओं से भरा है. उनका असली नाम गुआन मोये है और वे लेखक बनने से पहले चीन की लाल सेना में भी काम कर चुके हैं. बंदूक थामे थामे मो यान ने कलम की राह पकड़ ली और आज पूरी दुनिया उनके लेखन की दीवानी है.
मो यान का साहित्य जिनता चीन में लोकप्रिय है उससे ज्यादा यूरोप में प्रसिद्ध है. स्वीडिश अकादमी ने पुरस्कार देते वक्त उनके बारे में लिखा है, "कल्पना, यथार्थ, इतिहास और सामाजिक संदर्भों के मेल से मो यान ने ऐसी दुनिया रची है जो अपनी जटिलता में विलियम फाकनर और गाब्रिएल गार्सिया मार्केज जैसी लगती है. इसी बिंदु पर वो चीनी लेखन की पुरानी शैली और परंपरा से खुद को अलग भी साबित करते हैं."
मो यान के लेखन में इतिहास सिर्फ बीते हुए वक्त की तरह नहीं आता, बल्कि वर्तमान से मुठभेड़ करता नजर आता है. उसे नये सिरे से गढ़ता, बनाता है. 1911 की चीनी क्रांति, जापान-चीन का युद्ध, 50 के दशक में चीन की कम्युनिष्ट पार्टी का असफल भूमि सुधार ये सब मो यान के लेखन का हिस्सा हैं. 60-70 के दशक में हुई चीन की सांस्कृतिक क्रांति के पागलपन से भी यान लिखने की प्रेरणा पाते हैं.
मो यान की रचनाओं में "विद ब्रेस्ट्स एंड वाइड हिप्स", "रिपब्लिक ऑफ वाइन" और "लाइफ एंड डेथ आर वियरिंग मी आउट" प्रमुख हैं लेकिन आजकल चर्चा सबसे ज्यादा "फ्रॉग" की हो रही है. 2009 में प्रकाशित हुई इस रचना में यान ने चीन सरकार की एक संतान नीति को आडे़ हाथों लिया है. कैसे चीनी अधिकारी जबरन लोगों का गर्भपात कराते थे इसका बेबाक चित्रण मो यान ने इस रचना में किया है. हालांकि वो सरकारी दमन से खुद को बचा पाने में सफल रहे हैं.
अब जबकि मो यान को साहित्य की दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार मिल चुका है, उसके दुरुपयोग की भी आशंका जताई जा रही है. जानकार मानते हैं कि चीन सरकार मो यान के नोबल जीतने का इस्तेमाल अपनी सामाजिक और आर्थिक नीतियों की हिफाजत के लिए कर सकती है. ये एक लेखक की जितनी बड़ी मजबूरी है उससे बडी त्रासदी है.
मो यान से पहले चीनी लेखक गाओ शिंगजियान को भी साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार मिल चुका है. लेकिन गाओ और मो यान के बीच बड़ा फर्क है. गाओ चीन की कम्युनिष्ट तानाशाही के खिलाफ लिखते रहे हैं जबकि मो यान का लेखन "चीनी समाजवाद" के समर्थन में है. जाहिर है, गाओ को उनके लेखन की कीमत भी चुकानी पड़ी है. उनकी किताबों को चीन में प्रतिबंधित कर दिया गया था. बाद में उन्होने भागकर फ्रांस में शरण ली थी. मो यान इस मामले में अपवाद हैं कि उन्हें जितनी सराहना और सहयोग चीन की दमनकारी सरकार से मिला उतना ही प्यार उन्हें पश्चिमी दुनिया में भी मिला. मो यान सही अर्थों में पूरब पश्चिम का मेल हैं.
वीडी/एमजे (रॉयटर्स)