यूरोप में पनप रहा है अलगाववाद
२१ मई २००८सत्रह फ़रवरी को कोसोवो ने आज़ादी का एलान कर दिया और इसके साथ ही यूरोप में अलगावादी आंदोलनों की मुहिम ने नया रंग ले लिया।
बास्क मामला चल रहा है कई सालों से
स्पेन में दो अलगवादी गुट हैं। एक बास्क सेपरेटिस्ट मूवमेंट, जिसका प्रतिनिधित्व कर रहा है बास्क मातृभूमि और स्वाधीनता गुट – इटा। स्पेन में तानाशाह फ़्रांसिसको फ़्रैंको के समय बास्क भाषा पर प्रतिबंध लगाए गए, और बास्क अल्पसंख्यकों का बुरी तरह दमन किया गया। उसी समय हुआ इटा का जन्म। स्पेन के लोकतंत्र बनने और बास्क इलाके को काफ़ी हद तक ऑटोनोमी हासिल होने के बावजूद, इटा आज भी उत्तरी स्पेन और दक्षिण पश्चिमी फ़्रांस में एक अलग देश स्थापित करने की मांग कर रहा है और इस मुद्दे पर आए दिन वहां हिंसा होती रहती है।
कैटालोनिया प्रांत भी चाहता है आज़ादी
उधर स्पेन का उत्तर पूर्वी प्रदेश कैटालोनिया भी स्वतंत्रता की आवाज़ें उठा रहा है। वहां के नेता 2014 में इस मुद्दे पर जनमत संग्रह की मांग भी कर रहे हैं। ये दोनों ही इलाक़े स्पेन के सबसे समृद्ध प्रदेशों में हैं और वे यूरोपीय संघ से सीधे आर्थिक रिश्ते चाहते हैं। यही वजह है कि कोसोवो ने जब आज़ादी का एलान किया तो इन दोनों क्षेत्रों ने उसका स्वागत किया लेकिन स्पेन सरकार ने इसके विरोध में आवाज़ उठाई। स्पेन के पीपुल्स पार्टी के प्रवक्ता इग्नाशियो आस्टरलोआ ने कहा था कि वे नहीं चाहते कि स्पेन में भी बॉल्कन देशों जैसी स्थिति पैदा हो।
स्कोटलैंड में अलगाववादी पार्टी की जीत
यूनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन ने भी कोसोवो की आज़ादी को समर्थन तो दे दिया है लेकिन प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्रॉउन को चिंता इस बात की है कि कहीं दूसरे इलाक़े भी आज़ादी की मांग न करने लगें। दरअसल यूनाइटेड किंगडम भी कुछ इसी तरह के मुद्दे का सामना कर रहा है। स्कॉटलैंड पूरी आज़ादी की मांग कर रहा है। वहां हुए चुनाव जीतने के बाद स्कौटिश नैश्नल पार्टी के नेता ऐलेक्स सैलमंड ने कहा कि स्कोटलैंड के राजनीतिक इतिहास में पहली बार स्कौटलैंड की राष्ट्रिय स्वतंत्रता का मौका सामने आया है।
अब योजना है कि 2010 में स्कोटलैंड में आज़ादी के मुद्दे पर जनमत संग्रह की। कोसोवो की आज़ादी के बाद सैलमंड ने कहा कि स्कोटलैंड की आज़ादी से इंगलैंड एक अनमना परिवारजन तो खो देगा, लेकिन बदले में उसे एक अच्छा पड़ोसी ज़रूर मिलेगा।
बेलजियम में भी बटवारे की मांग
ऐसा ही एक दिलचस्प मामला बेल्जियम का भी है। इसकी राजधानी ब्रसेल्स को यूरोप की राजधानी भी कहते हैं। लेकिन यहां भी डच बोलने वाले फ़्लेमिशों और फ़्रांसीसी बोलने वाले वालून संप्रदाय के बीच बहुत अनबन है। फ़्लेमिश बहुसंख्यक फ़्लैन्डर्ज़ आर्थिक रूप से शक्तिशालि है, और औटोनोमी चाहता है। पिछले साल जब फ़्लैन्डर्ज़ को ज़्यादा ताकत देने के मुद्दे पर बेल्जियम के फ़ेडेरल ढांचे को बदलने की बात हुई, तो बहस छिड़ गई, और ये देश बंटवारे के करीब पहुंच गया।
फैल रहा है प्रांतवाद
प्रांतवाद यूरोप में तेज़ी से फैल रहा है। रोमानिया और बुलगारिया में हंगेरियन और तुर्क मूल के अल्पसंख्यक संप्रदाय हैं – ये भी राजनीतिक स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं। साइप्रस तो पहले ही तुर्क और ग्रीक हिस्सों में बंट चुका है, जिसे फिर से मिलाने पर तेज़ी से बात चल रही है। और सबसे अस्थिर हालात बाल्कन इलाके की है।
उधर पूर्व सोवियत रूस पहले ही पंद्रह देशों में बंट चुका है। लेकिन रूस से कई हिस्से अब भी अलग होने की मांग कर रहे हैं। चेचन्या उनमें से एक है। छोटे से देश अज़बैजान में भी अर्मेनियाई मूल के लोग अलग होने की मुहिम चला रहे हैं।
एक समय माना जाता था कि आर्थिक एकीकरण राजनीतिक एकता लाने में कामयाब होगा। लेकिन यूरोप के मामले में उल्टा ही हो रहा है।