ये खेल ऊट पटांगा..
१४ सितम्बर २०१०सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन इस तरह के तमाम ऊटपटांग खेलों की एक भरीपूरी प्रतियोगिता आयरलैंड में हुई. कॉर्क शहर में पैडी गेम्स के नाम से हुई इस प्रतियोगिता में ऐसे अजब गजब खेल देखने को मिले जिन्हें खेलने के बारे में बचपन का खलिहर दिमाग ही सोच सकता है. मसलन लंगड़ी दौड़ यानी एक पैर में खपच्ची बांध कर दौड़ना, जुगाली की गई घास से बनी गेंद को मुंह से अधिकतम दूरी तक फेंकना इस खेल को नाम मिला काऊ पैट स्पिटिंग, कूल्हे से कुश्ती लड़ना, इसे नाम दिया गया बेली बैशिंग, झल्ला कर मोबाइल फोन फेंकना, मनमर्जी डांस करना और मनमाफिक गुलाटी लगाना इसे नाम दिया गया बॉग रोल जिम्नास्टिक्स.
मजेदार बात यह कि पूरा आयोजन किसी खाली दिमाग की उपज नहीं बल्कि सार्थक और योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम दिया गया. अब लगे हाथ इसकी सार्थकता और योजना की बात भी जान ली जाए.
यह कवायद आयरलैंड के एक वकील और रोमांचक खेलों के शौकीन कॉलिन क्रॉल के दिमाग की उपज है. कॉलिन स्वयं विषमताओं भरी शख्सियत हैं जो बेहतरीन वकील होने के साथ तीन पैर की मैराथन में विश्व रिकॉर्ड बना चुके हैं और 2006 में जापान में सूमो वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने वाले पहले आयरिश नागरिक हैं. तीन पैरों के मैराथन में दो खिलाड़ियों के एक एक पैर एक साथ बांध दिए जाते हैं और उन्हें दौड़ लगानी होती है.
पैडी गेम्स के पीछे उनके तीन मकसद थे. मंदी से जूझ रहे देशवासियों को हल्के फुल्के अंदाज में तनाव से निजात दिलाना, खेलों को बाजारवाद की जंजीरों से मुक्त कराना और खेल आयोजनों को सिर्फ कुलीन वर्ग की पंहुच के बजाय आम आदमी के दायरे तक ले जाना. जिससे कि लोग उन कामों को भी कर सकें जिन्हें करने की सिर्फ सोचते ही रह जाते हैं, जगहंसाई के डर से कर नहीं पाते और खेल कमाई का नहीं बल्कि मनोरंजन का ही साधन बने रहें.
इस कवायद में कॉलिन कामयाब भी रहे क्योंकि पैडी गेम्स में 35 देशों के 270 प्रतियोगियों ने हिस्सा लिया और समूचे यूरोप में मंदी की मार से सर्वाधिक पीड़ित आयरलैंड के 3000 दर्शकों ने हर तरह की फिक्र को दरकिनार कर इनका लुत्फ उठाया. इतना ही नहीं पदक तालिका में इंग्लैंड, हंगरी, फ्रांस और नीदरलैंड के बाद आयरलैंड का नाम देखकर दर्शकों का पैसा वसूल भी हो गया. हालांकि मेडल प्राप्ति और गिनती दोनों ही महज खानापूर्ति थे. इनका कोई खास महत्व नहीं था.
अब कॉलिन की हसरत है कि इन खेलों की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता हो. जिससे खेलों को मार्केटिंग प्रोफेशनल्स के चंगुल और धनकुबेरों की पॉकेट से बाहर निकालकर खांटी खेल ही बना कर रखा जा सके.
रिपोर्टः डीपीए/निर्मल
संपादनः ए जमाल