ये जीत मेरी जिंदगी का सबसे महान पल: सचिन
३ अप्रैल २०११मलिंगा के गेंद पर आउट होने के बाद सचिन इतने भारी कदमों और दुखी मन से पैवेलियन की ओर लौट रहे थे कि आभास होने लगा कि स्वप्न अब चकनाचूर हो चुके हैं. एक घाव हमेशा के लिए हरा छूट गया है. लेकिन साथियों के ये मंजूर न था. वो जिद्दी बच्चे की तरह मैदान पर उतरे और पूरा जोर लगाकर चमचमाता कम ले उड़े.
धोनी के विजयी छक्के ने क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन की मुराद पूरी कर दी. मास्टर ब्लास्टर को सबसे बड़ा तोहफा दे दिया. वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद खुद सचिन भी अपनी भावुकता छुपा नहीं सके, आंखें नम हो गई और चेहरे पर अद्वितीय भाव आ गए. मास्टर ब्लास्टर ने कहा, ''वर्ल्ड कप जीतना एक अद्भुत बात है. यह मेरी जिंदगी का सबसे गर्व भरा लम्हा है. मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं मांग सकता था.''
सचिन 1992, 1996, 1999, 2003 और 2007 के वर्ल्ड कप भी खेल चुके हैं. पिछले पांच महामुकाबलों में वह रनों का अंबार लगाते रहे लेकिन ट्रॉफी को बांहों में भरने का मौका नहीं मिला. अब उम्र भी जवाब देने लगी थी, समय हाथ से निकला जा रहा था. तय था कि इसी बार कप जीते तो जीते वरना यह सपना अधूरा ही रहेगा.
लेकिन 38वें जन्मदिन से 22 दिन पहले सचिन की यह ख्वाहिश भी पूरी हो गई. साथी खिलाड़ियों ने वादा निभाया और ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी टीमों को परास्त करते हुए विश्व कप जीत लिया. विजयी लम्हे ने तेंदुलकर में ऐसा उत्साह भरा कि वो मैदान पर तिरंगा ओढ़े दर्शकों का अभिवादन करते घूमने लगे. पहले उन्होंने धोनी को गले लगाया. फिर सचिन और युवराज देर तक एक दूसरे से लिपटे रहे. जैसे एक दूसरे से कह रहे हों, देखो हमने कर दिखाया. खुद तेंदुलकर और कुछ साथी खिलाड़ियों को आंखें भर आईं. जब सचिन से पूछा गया कि क्या वह रो रहे हैं, तो जवाब था, ''आज मुझे इससे भी कोई परहेज नहीं है. ये खुशी के आंसू होंगे.''
गौतम गंभीर, हरभजन सिंह, युवराज सिंह और विराट कोहली ने खुलकर कहा कि विश्वकप का यह पुष्प क्रिकेट के सूर्य को समर्पित है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल