यौनकर्मियों का विवाह, उम्मीद की किरण
१० मार्च २०१२गुजरात के इस गांव का नाम ही यौन कर्मियों का गांव पड़ गया है. इस गांव में 42 साल की रोशनी बेन (नाम बदला हुआ) बिना खिड़की वाली झोपड़ी में अकेली रहती हैं और एक दिन में पचास रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाती. गरीबी और अनिश्चितता के बीच उनका जीवन झूलता रहता है. वहीं पद्मा सारानिया 25 साल के आस पास हैं और उन्हें एक तरह से जात बाहर कर दिया गया है क्योंकि उन्हें एड्स हो गया है. उन्हें गांव के कुएं से पानी लेने की अनुमति नहीं.
घर की मारी
ये दोनों महिलाएं इस गांव की सौ यौनकर्मियों में शामिल हैं, जिन्हें अपना शरीर बेचने के लिए मजबूर किया गया. वाडिया गांव में सरानिया जाति के 750 लोग रहते हैं. इस समुदाय की महिलाओं को कई साल से अपने ही घर के लोग देह व्यापार में धकेल रहे हैं. 12 साल की नाबालिग लड़कियों को भी उनके अपने भाई, पिता, चाचा इस धंधे में धकेल देते हैं. गांव के बाहर सीमा पर पड़ोस के गांवों और ट्रक चलाने वालों के साथ कई पुरुष दलाली करते देखे जा सकते हैं. अधिकतर परिवार भारत की आजादी से पहले से ही इसी व्यापार में लगे हैं. चूंकि शरीर बेचने वाली महिला की लड़की शादी के लायक नहीं मानी जाती इसलिए गांव में देह व्यापार चलता रहा लेकिन अब ये लोग इससे दूर जाना चाहते हैं. 11 मार्च 2012 के दिन इस गांव की 32 लड़कियों में से कुछ की शादी और कुछ की सगाई होगी. जो उनके सामाजिक बहिष्कार को एक तरह से खत्म करने की दिशा में में पहला कदम होगा.
बंजारा समुदाय के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन के संयोजक मित्तल पटेल कहते हैं, "भारत की आजादी के बाद से अब पहली बार ऐसा होगा कि इस गांव की महिलाएं देह व्यापार की बेड़ी को तोड़ेंगी. अब चूंकि उनके लिए लड़के तैयार हो गए हैं तो वेश्यावृत्ति अपने आप खत्म हो जाएगी. हमें उम्मीद है कि इस गांव की महिलाओं के लिए यह शादियां सामाजिक क्रांति होंगी. इस संगठन के लोगों ने दूसरे गांव के पुरुषों और लड़कों को मनाया कि वह इस समुदाय की लड़कियों से शादी करें."
रोजगारोन्मुखी
स्थानीय सरकार ने इस कदम का समर्थन करते हुए वादा किया है कि इन महिलाओं और लड़कियों का जीवन बेहतर बनाने के लिए पुनर्वास कार्यक्रम चलाए जाएंगे. पहले राज्य सरकार ने देह व्यापार खत्म करने के लिए इन परिवारों को खेती की जमीन दी थी लेकिन सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण यह योजना पानी में चली गई. पटेल ने कहा, "हम हर लड़की को पांच हजार रुपये देंगे, घर के लिए जमीन देंगे और उन्हें रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दिलाएंगे. ये लड़कियां बाकी लड़कियों के लिए एक आदर्श होंगी कि कैसे वह देह व्यापार से बाहर निकल सकती हैं. यह प्रोजेक्ट हमारे लिए हमेशा चलता रहेगा."
संगठन पद्मा जैसी महिलाओं को कढ़ाई और पारंपरिक हस्तकलाएं सिखा रहा है ताकि वह हर दिन के कम से कम दो सौ रुपये कमा सकें.
पद्मा कहती हैं, "यह महिलाएं अपने लिए सपोर्ट सिस्टम बना रही हैं. मेरी तरफ से मैंने उन्हें जागरूक किया है कि कैसे वह भी एचआईवी पॉजिटिव हो सकती हैं. उनकी सोच में धीमे धीमे बदलाव आ रहा है."
धमकियां भी
वैसे तो अधिकतर गांव के लोग इस सामुहिक विवाह को लेकर खुश हैं लेकिन इन महिलाओं के लिए काम करने वाले संस्था के सदस्यों को धमकी भरे संदेश भी मिल करे हैं. शारदा भाटी को धमकियां मिल रही हैं लेकिन वो कहती हैं, "महिलाएं इस दमन को खत्म करना चाहती हैं. वह हमारे साथ हैं और करीब करीब आधा गांव हमारे साथ है. इसलिए हम पीछे नहीं हटेंगे."
वाडिया वैसे तो देश के सबसे विकसित माने जाने वाले राज्य गुजरात में है. यह गांव दिखाता है कि देश की महिलाओं और लड़कियों को दुर्व्यव्हार से लेकर बच्चों के देह व्यापार तक क्या क्या झेलना पड़ता है. हालांकि यहां हो रहे सुधार दूसरे ऐसे मामलों के लिए भी उम्मीद की किरण बनेंगे. राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ जातियों को इस तरह की मुश्किलें कई दशकों से झेलनी पड़ रही हैं.
एक यौनकर्मी कहती हैं, "हमारे समुदाय पर लगा श्राप खत्म हो रहा है. हमारे गांव की ओर लोग बुरी नजर से कभी नहीं देखेंगे और हमारी लड़कियों को अब अपमानजनक जिंदगी नहीं बितानी होगी. वे सामान्य लड़कियों की तरह सम्मानजनक जीवन बीता सकेंगी."
रिपोर्टः डीपीए/आभा एम
संपादनः एन रंजन