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राजस्थान के चापलूस मंत्री का इस्तीफा

१० फ़रवरी २०११

कार्यकर्ताओं के सामने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को इंदिरा गांधी का रसोइया बताने वाले राजस्थान के मंत्री ने इस्तीफा दिया. विवाद और खिसियाहट के बाद अमीन खान को मजबूर होकर इस्तीफा देना पड़ा.

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चापलूसी की नसीहततस्वीर: AP

चापलूसी की कांग्रेसी संस्कृति का महिमामंडन करते हुए राजस्थान के ग्राम विकास और पंचायती राज मंत्री अमीन खान ने सीधे राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का जिक्र कर दिया. पाली जिले में कार्यकर्ताओं को चापलूसी की नसीहत दी. खान ने कहा कि प्रतिभा पाटिल ने पार्टी से कभी कोई पद नहीं मांगा, लेकिन गांधी परिवार के प्रति उनकी वफादारी और इंदिरा गांधी के साथ उनकी नजदीकी को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति बना दिया गया.

स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक खान ने कहा, ''प्रतिभा पाटिल इंदिरा गांधी के लिए चाय और खाना बनाया करती थीं.'' अपनी ईमानदारी, वफादारी और समर्पण की वजह से वह अब राष्ट्रपति हैं. खान ने कार्यकर्ताओं के सामने जोर देकर कहा कि वे भी पार्टी और पार्टी नेताओं के प्रति ऐसा ही सेवा और समर्पण का भाव रखें.

Die indische Präsidentin Pratibha Patil
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिलतस्वीर: picture alliance / dpa

चापलूसी के यह दोहे मंगलवार को सुनाए गए, बुधवार को विवाद हुआ और पूरी पार्टी खिसिया गई. खान भी बयान से मुकर गए, कहने लगे कि उन्होंने वफादारी का उदाहरण जरूर दिया लेकिन राष्ट्रपति जिक्र नहीं किया. विवाद को ठंडा करने की कोशिश में खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आगे आना पड़ा. गहलोत ने तुरंत पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके सचिव अहमद पटेल के सामने हाजिरी लगाई और सफाई दी.

दिल्ली पहुंचे गहलोत ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को भी फोन किया और अपने मंत्री के बयान पर अफसोस जताया. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने खुद अमीन खान से इस्तीफा देने को कहा. अमीन ने भी वफादारी का परिचय दिया और तुरंत राज्यपाल शिवराज पाटिल को इस्तीफा सौंप दिया.

वैसे भारत की राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद और चापलूसी की जड़ें दशकों पुरानी हैं. देश की कई बड़ी पार्टियां ऐसी हैं जो सिर्फ एक ही परिवार के हाथ में रहती हैं. जो पार्टियां परिवारवाद से कुछ दूर हैं उनके में भी नेताओं के पांव छूना, जूते साफ करना, बड़े पोस्टरों में निवेदकों के रूप में छपे छुटभैये नेताओं के फोटो की भरमार रहना, आम बात है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का यह भी एक चेहरा है.

रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह

संपादन: ए कुमार

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