रिश्तों को कमजोर कर सकती हैं सोशल साइटें
२३ सितम्बर २०१०यह बात एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी की रिसर्च में सामने आई है. केंद्रीय पेनसिल्वेनिया की हैरिसबर्ग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलजी ने इस संबंध में एक प्रयोग किया. शोधकर्ताओं ने एक हफ्ते के लिए फेसबुक, ट्विटर, इंस्टेंट मैसेजिंग और इस तरह की सभी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों का प्रयोग पूरी तरह बंद कर दिया. उसके बाद उन्हें पता चला कि इन वेबसाइटों के कितने नुकसान हैं.
इस प्रयोग को शुरू करने वाले एरिक डार कहते हैं, "इस दौरान छात्रों को अहसास हुआ कि अगर फेसबुक और इंस्टेंट मैसेजिंग पर सही तरीके से काबू न रखा जाए तो ये जिंदगी पर हावी हो सकते हैं."
इस शोध के दौरान 800 छात्रों वाले कॉलेज ने छात्रों और अध्यापकों से सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करने को कहा. ज्यादातर लोगों ने इस शोध का हिस्सा बनना मंजूर किया और उन्होंने पाया कि असल में तकनीक उनकी जिंदगियों पर हावी हो चुकी है.
डार एक ऐसे छात्र के बारे में बताते हैं जिसने इस दौरान 21 घंटे तक फेसबुक एक बार देख लेने की चाह को महसूस किया. उसने सुबह 2 बजे से 5 बजे तक ही फेसबुक को छोड़ा, वह भी सोने के लिए. डार कहते हैं कि मुझे तो यह लत ही लगती है.
इस प्रयोग के तहत जो लोग फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया साइटों को देखने की इच्छा महसूस करें, उन्हें अपने फोन के जरिए ऐसा करने की इजाजत दी गई. और इसके बाद सामने आए नतीजों से कुछ लोग तो हैरान भी नजर आए. डार बताते हैं, "इस दौरान ज्यादातर छात्रों ने धूम्रपान करने वालों जैसी तलब महसूस की. जैसे धूम्रपान करने वाले सिगरेट पीने के लिए क्लास से गायब हो जाते हैं वैसे ही वे लोग फेसबुक देखने के लिए क्लास से गायब हुए." लेकिन काफी छात्रों ने यह भी महसूस किया कि सोशल नेटवर्किंग से दूर रह कर वे तनाव रहित रहे और उन्हें अन्य काम करने के लिए ज्यादा वक्त मिला. कुछ छात्र अपने दोस्तों से असल में मिल पाए.
एक छात्रा अमांडा जुक कहती हैं कि वह फेसबुक का इस्तेमाल बहुत ज्यादा नहीं करती हैं लेकिन उन्हें भी इसे न देख पाने पर थोड़ी सी खीज महसूस हुई.
उन्होंने कहा कि उनके लिए तो इस प्रयोग का कुछ ज्यादा फायदा नहीं हुआ लेकिन उनकी एक दोस्त को शायद कुछ फायदा हुआ क्योंकि वह तो फेसबुक की लत की शिकार है. जुक ने कहा, "मेरी दोस्त ने कुछ हफ्तों तक फेसबुक से दूर रहने का फैसला कर लिया है ताकि वह स्कूल के काम के साथ तालमेल बिठा सके. ऐसा करने में इस प्रयोग ने उसकी काफी मदद की."
डार बताते हैं कि अभी इस शोध के नतीजों का विश्लेषण किया जा रहा है लेकिन एक बात तो जाहिर है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल के साथ साथ संचार के पुराने तरीकों को भी लगातार इस्तेमाल करते रहना चाहिए.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार