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रीमेक क्भी असली नहीं हो सकताः आमिर खान

६ सितम्बर २०१०

तमिल फिल्म गजनी की हिंदी रिमेक में प्रमुख भूमिका निभाने वाले आमिर खान का कहना है कि रीमेक कभी असली नहीं हो सकता. आमिर का कहना है कि असल फिल्म बनाते समय उभरी भावनाओं को हासिल कर पाना मुश्किल होता है.

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आमिर खान की बाततस्वीर: AP

आमिर का कहना है "कलाकार रीमेक बनाते समय काफी छूट ले लेते हैं और उसमें जान डालने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन रीमेक कभी भी वास्तविक जैसी नहीं बनती." आमिर रेडियो मिर्ची की पुरानी जीन्स फिल्म फेस्टिवल में शम्मी कपूर की फिल्म तीसरी मंजिल की खास स्क्रीनिंग देखने आए थे. करीब दो दशक पहले 1991 में आई आमिर खान की हिट फिल्म दिल है कि मानता नहीं भी हॉलीवुड की इट हैप्पेन्ड वन नाइट पर आधारित थी. आमिर का कहना है, "मैं अगर कभी कोई फिल्म बनाता हूं तो तो सबसे पहले फिल्म की कहानी और उसके पात्रों को समझने की कोशिश करता हूं. कई बार रीमेक महान फिल्मों के प्रति सम्मान देने का भी एक तरीका होता है. शेक्सपीयर के नाटकों पर आज भी फिल्में बनती हैं लेकिन लोग उसमें अपनी मर्जी के हिसाब से बदलाव करते हैं."

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अनुषा रिजवी के साथ आमिरतस्वीर: AP

आमिर खान मानते हैं कि हिंदी फिल्मों को लिए 1950 और 1960 का दशक सबसे सुनहरा दौर था. इस दौर में हिंदी सिनेमा से जुड़े सारे लोग काफी प्रतिभाशाली और महान थे. आमिर का कहना है, "उस दौर के लोगों में फिल्मों में काम करना एक जुनून था. काश मैं भी तीसरी मंजिल, गाइड जैसी फिल्मों में काम कर पाता ये लिस्ट बहुत आगे जाती है."

हालांकि आमिर ये भी मानते हैं कि एक दौर के सिनेमा की दूसरे दौर से तुलना नहीं की जा सकती. आमिर मानते हैं कि ऐसा नहीं कि इस दौर के लोगों में टैलेंट की कमी है और कई बार पुरानी चीजें भावनात्मक वजहों से भी अच्छी लगती हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन

संपादनः ए जमाल

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