रूस का नया नौसैनिक सिद्धांत
२८ जुलाई २०१५मैं जब पांच साल का था तो मैंने अपनी मां से विनती की थी, "जब सैनिक आएं तो मुझे टेबल के नीचे छुपा देना." वो 70 का दशक था, मैं सोवियत संघ में रहता था, शीत युद्ध का समय था. किसी दिन सैनिकों द्वारा पश्चिम से देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती किए जाने का डर पश्चिम के हमले के डर से ज्यादा था. हो सकता है कि इसकी वजह मेरी शांतिवादी परवरिश रही हो, लेकिन इस डर में मैं अकेला नहीं था. मैं किसी को नहीं जानता था जो सेना में भर्ती होना चाहता हो. मैं किसी को नहीं जानता था जिसे सेना पर नाज हो.
हर रविवार को सरकारी टेलिविजन में दिखाए जाने वाले सेना समर्थक प्रोग्राम के बावजूद, स्कूल में सैन्य शिक्षा पर अनिवार्य कोर्स के बावजूद, हर साल होने वाले स्कूली सैनिक परेड के बावजूद. 70 के दशक का प्रोपेगैंडा वह नहीं कर पाया जो आज के प्रोपेगैंडा ने कर दिखाया है. रूस के लोगों को अपनी सेना से प्यार हो गया है. रूसी जनमत सर्वे संस्थान के अनुसार 86 प्रतिशत लोगों को भरोसा है कि उनकी सेना जरूरत पड़ने पर उनकी रक्षा कर सकती है. 40 प्रतिशत सम्मान का अनुभव करते हैं, 59 प्रतिशत गर्व और उम्मीद का. देश का बड़ा बहुमत सेना को सम्मानजनक संस्थान मानता है जो युवा लोगों को विकास का मौका देता है.
शायद इन 86 प्रतिशत लोगों को रविवार को खुशी हुई होगी जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने नौसेना की नई सैन्य अवधारणा पेश की. संदेश यह है कि रूस शांतिप्रिय देश है, वह किसी को धमकाता नहीं, वह किसी पर हमला नहीं करता. लेकिन वह हमेशा तैयार रहता है और कोई यदि उस पर हमला करे तो वह छोड़ेगा नहीं. और उसके बाद सटीक नेविगेशन और तेज रॉकेटों से लैस तेजी से घूमने वाले जहाज. यह सब तर्कसंगत है और नई सैनिक अवधारणा के अनुकूल है. पिछले साल सेना प्रमुख ने कहा था कि 2020 तक रूस की सेना को 11,00 नई बख्तरबंद गाड़ियां मिलेंगी, 30 जहाज और पनडुब्बी तथा 14,000 गाड़ियां. लेकिन पश्चिमी प्रतिबंध और बढ़ता आर्थिक संकट इस योजना को खतरे में डाल सकते हैं.
इसके अलावा सरकारी ऑर्डरों के लिए संसाधनों की लूट को रोकना पड़ा. व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में सरकारी धन की लूट को आतंकवाद के समर्थन के बराबर घोषित करने की धमकी दी और साथ ही शिकायत की थी कि हथियारों की कीमत उनके निर्माण के दौरान ग्यारह गुना बढ़ जाती है. जब यह समस्या समाप्त हो जाएगी और रूस की योजनाओं के लिए धन की गारंटी होगी, रूस के लोग अपनी सेना पर नाज कर सकेंगे. तब उन्हें इस बात का डर नहीं रहेगा कि सेना द्वारा फेंका गया रॉकेट छोड़ते ही फट तो नहीं जाएगा, जैसा कि रविवार को हुआ.