रूसी एस-400 सिस्टम में क्या खास है?
अमेरिकी प्रतिबंधों की चिंता किए बिना भारत रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है. आखिर ऐसा क्या खास है इसमें.
बेहतर होते रिश्ते
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ साझा बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देश बहुत तेजी से एक दूसरे के करीब आए हैं. उन्होंने कहा, "वक्त के साथ हमारे देशों के संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं."
क्या है एस-400
रूस में तैयार एस-400 एक ऐसा सिस्टम है जो बैलेस्टिक मिसाइलों से बचाव करता है. यह ना सिर्फ दुश्मन की तरफ से दागी जाने वाली मिसाइलों का पता लगाता है बल्कि उन्हें हवा में ही मार गिराने की क्षमता भी रखता है.
सिर्फ पांच मिनट
एस-400 एक मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम है जिसे पांच मिनट के भीतर तैनात किया जा सकता है. इसमें कई तरह के रडार, ऑटोनोमस डिटेक्शन और टारगेटिंग सिस्टम और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम लगे हैं.
100 टारगेट
यह सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी से और 30 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर उड़ने वाले सभी तरह के विमानों और बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलों का पता लगा सकता है. यह एक साथ 100 हवाई टारगेट्स को भांप सकता है.
अमेरिका की चिंता नहीं
भारत इस सिस्टम के लिए 5 अरब डॉलर तक खर्च करने को तैयार है. हालांकि अमेरिका ने साफ कहा है कि रूस से रक्षा समझौता करने पर भारत को प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं. लेकिन भारत इससे बेपरवाह दिख रहा है.
भारत की जरूरत
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए अहम मानता है. पाकिस्तान भारत का पुराना प्रतिद्वंद्वी है तो चीन से साथ हजारों किलोमीटर लंबा सीमा विवाद अनसुलझा है.
और किसके पास?
चीन ने भी रूस से एस-400 सिस्टम की छह बटालियन खरीदने के लिए 2015 में एक समझौता किया था, जिसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हो गई. तुर्की और सऊदी अरब जैसे देश भी रूस से एस-400 सिस्टम खरीदना चाहते हैं.
अमेरिकी सिस्टम से बेहतर
अमेरिका निर्मित एफ-35 जैसे लड़ाकू विमान भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं हैं. एस-400 एक साथ ऐसे छह लड़ाकू विमानों से निपट सकता है. एस-400 को अमेरिका के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम से ज्यादा प्रभावी माना जाता है.
जांचा परखा
यह डिफेंस सिस्टम 2007 से काम कर रहा है और मॉस्को की सुरक्षा में तैनात है. लड़ाई के कई मोर्चों पर इसे परखा जा चुका है. 2015 में रूस ने इसे सीरिया में तैनात किया था. क्रीमिया प्रायद्वीप में भी इसे तैनात किया गया.